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Delhi Murder Case: खुलेंगे राज! आफताब का होगा नार्को टेस्ट, जानें क्या है ये ट्रूथ सीरम जिससे सामने आएगा पूरा सच 

Delhi Murder Case: दिल्ली पुलिस ने साकेत कोर्ट में नार्को टेस्ट की इजाजत के लिए अर्जी लगाई थी, जिसके लिए मंजूरी मिल गई है. दरअसल आफताब जांच में साथ नहीं दे रहा है. पुलिस के मुताबिक वह जांच भटकाने की कोशिश कर रहा है. अब पुलिस नार्को टेस्ट के जरिए पूरा सच और मोबाइल, हथियार बरामद करना चाहती है.

दिल्ली मर्डर केस के आरोपी आफताब का होगा नार्को टेस्ट दिल्ली मर्डर केस के आरोपी आफताब का होगा नार्को टेस्ट
हाइलाइट्स
  • नार्को टेस्ट में सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन शामिल होता है

  • आफताब पूनावाला का अब नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराया जाएगा

Delhi Murder Case: अपनी प्रेमिका की हत्या करने वाला आफताब पूनावाला का अब नार्को-एनालिसिस टेस्ट (Narco Analysis Test) कराया जाएगा. दरअसल, आफताब पुलिस को गलत जानकारी दे रहा है और जांच को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में पूरे सच को जानने के लिए आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट होने वाला है. बुधवार को साकेत कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने नार्को टेस्ट की इजाजत के लिए अर्जी लगाई थी. जिसके बाद कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी है. नार्को टेस्ट के जरिए दिल्ली पुलिस पूरा सच और मोबाइल, हथियार बरामद करना चाहती है. 

नार्को टेस्ट क्या है?

नार्को एनालिसिस टेस्ट में सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन शामिल होता है, जिसे ट्रूथ सीरम (Truth Serum) भी कहा जाता है. इस दवा से किसी भी व्यक्ति की सोचने की शक्ति कम हो जाती है, जिससे वह बिना किसी प्रतिबंध के अपनी बात कहता है. यह तब होता है जब व्यक्ति कम आत्म-जागरूक हो जाता है और एक हिप्नोटिक स्टेट में चला जाता है. इससे सामने वाले को अच्छे से सभी प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं. 

 बता दें, यह टेस्ट किसी मनोवैज्ञानिक, जांच अधिकारी या फोरेंसिक एक्सपर्ट की निगरानी में ही किया जाता है. इसे जांच विभागों द्वारा थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट की जगह भी इस्तेमाल किया जाता है. ये एक तरह का थर्ड डिग्री का विकल्प होता है. 

कैसे होता है नार्को टेस्ट? 

ये टेस्ट तभी किया जाता है जब वह शख्स मेडिकली फिट होता है. व्यक्ति को हिप्नोटिक सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिसे थियोपेंटोन के नाम से भी जाना जाता है. इंजेक्शन की डोज व्यक्ति की उम्र, लिंग और अन्य चिकित्सीय स्थितियों पर निर्भर करता है. ये डोज सटीक होनी चाहिए क्योंकि गलत निर्धारित मात्रा से व्यक्ति मृत्यु या कोमा में भी जा सकता है. टेस्ट कराते समय अन्य सावधानियां भी बरतनी होती हैं. एक बार दवा इंजेक्ट करने के बाद, व्यक्ति को उस स्थिति में रखा जाता है जहां वे केवल स्पेसिफिक प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं.

क्या इस टेस्ट को करने की अनुमति होती है? 

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, एक आरोपी पर नार्को-एनालिसिस, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट अवैध हैं. हालांकि कोर्ट ने आपराधिक मामलों में सहमति पर और कुछ सुरक्षा उपायों के साथ इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दी है. जो लोग टेस्ट करना चाहते हैं, उनके पास टेस्ट के कानूनी, भावनात्मक या शारीरिक निहितार्थ होने चाहिए. विषय की अनुमति दर्ज की जानी चाहिए और साथ ही ये मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत किया जाना चाहिए. कोर्ट मानता है कि अनुच्छेद 20 (3) मुताबिक एक अभियुक्त को कभी भी अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. 

हालाँकि, नार्को एनालिसिस की सटीकता 100 फीसदी नहीं होती है. यह पाया गया है कि कुछ विषयों ने झूठे बयान दिए गए हैं. 

भारत में इससे पहले कब हुए हैं नार्को टेस्ट?

-भारत में पहली बार 2002 में गोधरा कांड मामले में नार्को एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया था. साल 2003 में अब्दुल करीम तेलगी को तेलगी स्टांप पेपर घोटाले में टेस्ट के लिए ले जाया गया था. हालांकि तेलगी के मामले में बहुत सारी जानकारियां जुटाई गई थीं, लेकिन सबूत के तौर पर इसके महत्व को लेकर संदेह जताया गया था. कुख्यात निठारी सीरियल कांड के दो मुख्य आरोपियों का गुजरात के गांधीनगर में नार्को टेस्ट भी हुआ था.

-वहीं साल 2007 के हैदराबाद ट्विन ब्लास्ट की घटना में, अब्दुल कलीम और इमरान खान का नार्को टेस्ट किया गया था. हालांकि, पुलिस जांच में कोई सफलता हासिल करने या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस शूटआउट पर 2005 के आतंकी हमले के संदिग्ध संबंध में विफल रही थी.

-इसके अलावा, कुर्ला में 2010 में नौ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी मोहम्मद अजमेरी शेख का भी नार्को टेस्ट किया गया था.