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सिर्फ पराली जलाने से नहीं बढ़ रहा है दिल्ली का प्रदूषण, और भी कई कारक हैं जिम्मेदार, सामने आई CSE की रिपोर्ट

Delhi Pollution: राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के ऊंचे स्तर के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब सरकार को पराली जलाने की प्रथा पर रोक लगाने का निर्देश दिया. हालांकि, CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली जलाने को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

Air pollution in Delhi Air pollution in Delhi
हाइलाइट्स
  • सिर्फ पराली जलाने से नहीं बढ़ा प्रदूषण

  • अक्टूबर में हुई कम बारिश भी जिम्मेदार

दिल्ली के प्रदूषण लेवल में नवंबर की शुरुआत से ही भारी बढ़ोतरी देखी गई. इस सर्दी के मौसम में यह पहली बार है जब 24 घंटों के भीतर अचानक 68 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और PM2.5 कंसंट्रेशन  313 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब को पार कर गया. यह "गंभीर प्लस" श्रेणी के बराबर था. 

वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कंसंट्रेशन रेंज के अनुसार, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपनी नई स्टडी में बताया है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए खेतों में जलने वाली पराली को ही जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है. अगर वाहन उत्सर्जन (व्हीकल एमिशन) सहित स्थानीय कारकों ने पहले से ही राष्ट्रीय राजधानी की हवा को जहरीला नहीं बनाया होता तो अकेले पराली जलाने से दिल्ली के वायु प्रदूषण के लेवल में इतनी खतरनाक वृद्धि नहीं हो सकती थी. 

सिर्फ पराली जलाने से नहीं बढ़ा प्रदूषण
इन दिनों दिल्ली-एनसीआर को जकड़ने वाले घातक शीतकालीन प्रदूषण के नए विश्लेषण को जारी करते हुए, सीएसई के कार्यकारी निदेशक, रिसर्च और एडवॉकेसी, अनुमिता रॉय चौधरी ने बताया कि इस सर्दियों के मौसम की शुरुआत पिछले साल नवंबर की तुलना में बहुत अधिक प्रदूषण स्तर के साथ हुई है. प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों, पराली जलाने की शुरुआत और उच्च स्थानीय प्रदूषण के संयोजन ने रिस्क को बढ़ा दिया और इससे पब्लिक हेल्थ को भी रिस्क है. 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि पराली जलने से प्रदूषण लेवल का बढ़ना नया नहीं है. लेकिन इससे कम समय में ही प्रदूषण बढ़ गया क्योंकि लोकल सोर्सेज से बेसलाइन प्रदूषण पहले से ही बहुत ज्यादा था. 
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल सर्दियों के शुरुआती चरण में "अचानक और तेजी से धुंध का बढ़ना" चिंता का विषय है. 2 नवंबर को, दिल्ली में PM2.5 का स्तर इस सीज़न में पहली बार 300 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर या 'गंभीर प्लस' स्तर को पार कर गया. यह बहुत अचानक वृद्धि थी क्योंकि 24 घंटों के भीतर लेवल 68 प्रतिशत तक बढ़ गया था.

अक्टूबर में हुई कम बारिश भी जिम्मेदार
विश्लेषण में बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान, अक्टूबर की शुरुआत से PM2.5 का स्तर लगातार बढ़ना शुरू हो जाता है. इस साल, सितंबर के मध्य से स्तर बढ़ना शुरू हुआ. आगे बताया है कि सितंबर और अक्टूबर के दौरान कम वर्षा के कारण इस साल खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की शुरुआत जल्दी हुई. 

2022-23 की पिछली सर्दियों के विपरीत, इस साल की शुरुआत में स्मॉग का सिलसिला शुरू हो गया है. सर्दियों की शुरुआत से पहले आखिरी बार 9 सितंबर, 2023 को 'अच्छा' PM2.5 AQI देखा गया था. 
यह देखना बाकी है कि इस सर्दी में अलग-अलग अवधि के साथ स्मॉग की और कितनी घटनाएं हो सकती हैं. जैसा कि ग्लोबल प्रैक्टिस है, गंभीर AQI के कम से कम तीन लगातार दिनों को एक स्मॉग एपिसोड माना जाता है.

पिछली सर्दियों में, ऐसे एपिसोड छह-10 दिनों तक दर्ज किए गए हैं, 2018 और 2021 के बीच की सर्दियों में, औसतन हर एक में तीन स्मॉग एपिसोड का अनुभव हुआ था. 2022-23 की सर्दियों के दौरान, 6-9 जनवरी तक केवल एक स्मॉग प्रकरण दर्ज किया गया था. इसके अलावा, दिवाली और 2022-23 के दिसंबर के अंत में स्मॉग का कोई एपिसोड नहीं देखा गया (जैसा कि पहले की सर्दियों में होता था). 

दिल्ली की जहरीली हवा के पीछे प्रमुख कारक
CSE की अर्बन लैब के विश्लेषण में दिल्ली की जहरीली हवा के पीछे प्रमुख कारकों को सूचीबद्ध किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल के इस समय के दौरान प्रदूषण के स्तर में यह वृद्धि असामान्य नहीं है और आमतौर पर उत्तर भारतीय राज्यों में किसानों द्वारा सर्दियों की फसल पर काम शुरू करने से पहले पराली जलाने से जुड़ी होती है.

इसमें कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर में धुएं की आवाजाही में मदद करने वाले मौसम संबंधी कारक भी दिल्ली के AQI बढ़ने का कारण है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पीएम10 में पीएम2.5 की हिस्सेदारी दहन स्रोतों के प्रभाव का एक महत्वपूर्ण संकेतक है. मोटा PM10 मुख्यतः धूल स्रोतों से आता है, वहीं छोटा PM2.5 वाहनों, उद्योग और खुले में जलने से आता है. इस साल पीएम10 में पीएम2.5 का प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है, जो दहन स्रोतों के उच्च प्रभाव का संकेत देता है. 2 नवंबर को, PM2.5 का अनुपात 60 प्रतिशत था - जो इस सीज़न में सबसे ज्यादा है, जो दहन स्रोतों के उच्च प्रभाव को दर्शाता है.

इसमें आगे कहा गया है कि SAFAR के अनुमान से पता चला है कि दिल्ली की PM2.5 कंसंट्रेशन में खेत की पराली की आग का प्रतिशत योगदान 2 नवंबर को 25 प्रतिशत को पार कर गया था. 2 नवंबर से पहले वाले सप्ताह में यह 10-20 प्रतिशत की सीमा में था. आने वाले दिनों में इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद है. पंजाब और हरियाणा में पराली का जलना रुका नहीं है. 

बढ़ रहा है NO2 का स्तर 
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि NO2 का स्तर - जो बड़े पैमाने पर वाहनों से आता है - भी क्षेत्र में बढ़ रहा है. यह वाहनों से हो रहे प्रदूषण के उच्च प्रभाव को इंगित करता है. पिछले साल अक्टूबर के पहले सप्ताह की तुलना में शहर भर में औसत NO2 60 प्रतिशत ज्यादा है. कुछ हाई ट्रैफिक वाले स्थानों पर 24 घंटे के मानक से तीन-चार गुना अधिक ट्रैफिक की सूचना मिल रही है. 

आईटीओ दिल्ली में सबसे प्रदूषित NO2 स्थान है, जिसका औसत 219 माइक्रोग्राम/घन मीटर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नेहरू नगर और सिरी फोर्ट दिल्ली में अगले सबसे प्रदूषित NO2 स्थान हैं.