
29 अक्टूबर 2005 का वह काला दिन जब दिल्ली में तीन सीरियल बम धमाके हुए थे. इसमें 60 से अधिक लोगों को मौत हुई थी. जबकि 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. इस घटना ने पूरे देश को दहला दिया था. आइए जानते हैं कहां-कहां धमाका हुआ था?
धनतेरस के दिन हुआ था धमाका
दिवाली से दो दिन पहले यानी धनतेरस के दिन सबसे पहला बम धमाका नई दिल्ली स्टेशन के करीब छोटे होटलों वाले इलाके पहाड़गंज के भीड़भाड़ वाले इलाके में शाम 5 बजकर 38 मिनट पर हुआ था. MS मेडिकोज नाम की शॉप के बाहर पार्क किसी दो पहिया वाहन में प्लांट किया गया था. पड़ोस के एक गोलगप्पे वाले की दुकान पर काफी भीड़ थी.
दूसरा धमाका गोविंदपुरी में शाम को ठीक 6 बजे हुआ, चलती बस में हुए धमाके ने सबको खौफ में ला दिया, कंडक्टर ने संदेहास्पद बैग देखा तो शोर मचाया, बैग खिड़की से बाहर फेंकने की कोशिश में फट गया, लेकिन कई जानें बच गईं और 4-5 लोग ही घायल हुए, बाकी यात्रियों को उतारा जा चुका था.
मच गया था हड़कंप
दो धमाकों की खबर सुनते ही दिल्ली में हड़कंप मच गया था. इसी बीच एक और धमाके की खबर आई. यह बम धमाका दिल्ली में महिलाओं की सबसे पसंदीदा मार्केट सरोजिनी नगर में हुआ, जहां 6 बजकर 5 मिनट पर चारों तरफ चीखपुकार का माहौल था, किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. लेकिन जब आंकड़े आए तब पता चला कि त्योहार मनाने की तैयारी कर रहे 62 लोग इन धमाकों में मारे गए, वहीं 210 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. सबसे भयावह था सरोजिनी मार्केट का ब्लास्ट, जिसमें करीब 50 लोग मारे गए थे. तीनों धमाकों के बाद दिल्ली में त्योहार की खुशियां मातम में बदल गई थीं.
सरोजिनी नगर में देखा था लावारिस बैग
सरोजिनी नगर में तो हादसा टाला भी जा सकता था, लाल चंद सलूजा की जूस की दुकान पर नौकर ने एक लावारिस बैग देखा, उसमें एक कुकर नजर आया. टाइमर दिखा तो सारे व्यापारी इकट्ठा हो गए, किसी की समझ में कुछ नहीं आया कि करना क्या है. व्यापारी नेता अशोक रंधावा भागते हुए पुलिस चौकी पहुंचे, लेकिन जब तक पुलिस आती, बम फट चुका था.
जूस की दुकान के मालिक लाल चंद सलूजा की भी धमाके में मौत हो गई. हालांकि मीडिया में ये भी रिपोर्ट उस वक्त छपी थीं कि बम किसी मारुति वैन में प्लांट किया गया था. ऐसा माना जाता है कि इन बम धमाकों में RDX का इस्तेमाल किया गया था. इन धमाकों के इतने साल बाद भी आज भी कई लोग ऐसे हैं जो अभी भी इसी आस में जी रहे हैं कि उनके अपने वापस लौट आएंगे. आज भी रोते हैं वो जिन्होंने अपनों को खो दिया था.
सीरियल ब्लास्ट का दिल्ली में ये पहला मामला था
सीरियल ब्लास्ट का दिल्ली में ये पहला मामला था, इससे पहले 2000 में लाल किले पर और 2001 में संसद हमला तो हुआ था, लेकिन इस बार आम आदमी को निशाना बनाया गया था. इसके बाद दिल्ली में फिर तीन साल बाद यानी 2008 में संसद हमले की बरसी पर 13 दिसम्बर को सीरियल ब्लास्ट किए गए, करोल बाग में 1, कनॉट प्लेस में 2 और ग्रेटर कैलाश में 2 ब्लास्ट किए गए थे. बाद में पुलिस ने तीन गिरफ्तारियां की और दावा किया कि ये धमाके भी इस्लामिक आतंकवादियों की साजिश थे, लश्कर ए तैय्यबा का हाथ बताया.
ब्लास्ट के पीछे लश्कर-ए-तोएबा का हाथ
दिल्ली के सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में हुए इन धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ माना गया. पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिल और मोहम्मद रफीक शाह ने मिलकर बम धमाके की साजिश रची थी. कोर्ट ने तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या, हत्या के प्रयास और हथियार जुटाने के आरोप तय किए थे.