
दिल्ली में नवरात्रि के समापन के बाद, जब भक्त पूजा की सामग्री लेकर यमुना किनारे पहुंचे, तो वहाँ एक अनोखा दृश्य देखने को मिला. पूजा-पाठ के बाद जब उत्साह के साथ पूजा सामग्री नदी में फेंकी जाती है, तो यमुना किनारे का परिदृश्य बदल जाता है. एक ओर श्रद्धालुओं का उत्साह और दूसरी ओर अनियंत्रित ढंग से फेंकी गई सामग्री का ढेर. लेकिन यहां मामला सिर्फ धार्मिक उत्सव का नहीं, बल्कि एक आर्थिक व्यवसाय का भी बन गया है, जहां गोताखोरों ने इस सामग्री फेंकने का नया तरीका अपना लिया है.
पूजा सामग्री एक नई चुनौती
नवरात्र खत्म होते ही पूरे दिल्ली में पूजा सामग्री को यमुना में फेंकने का प्रचलन शुरू हो गया. भक्त अपनी पूजा की सारी सामग्री- फूल, दीपक, चंदन, पॉलिथीन बैग आदि लेकर यमुना किनारे जमा हो जाते हैं और अपने विश्वास के अनुसार इन्हें नदी में फेंक देते हैं. हालांकि, यह परंपरा भी अपने साथ एक बड़ी समस्या लेकर आई है. यमुना किनारे का यह अनियंत्रित अपशिष्ट न केवल नदी की स्वच्छता पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.
फेंकवाना ही नहीं, कमाई भी!
इसी अवसर पर कुछ ऐसे लोग भी नजर आए जो इस आपदा में भी अपना नया व्यवसाय ढूंढ़ने में सफल रहे. यमुना किनारे पर कई गोताखोरों ने पुल पर खड़े होकर पूजा सामग्री फेंकने की व्यवस्था को अपना कारोबारी अवसर बना लिया है. ये गोताखोर न केवल लोगों की मदद से सामग्री फेंकते हैं, बल्कि इसके बदले में उनसे कुछ पैसे भी वसूल कर डॉलर में कमाई करते हैं.
पुल के नीचे कमाई का नया तरीका
यमुना किनारे सिर्फ गोताखोर ही नहीं, बल्कि स्थानीय महिलाएं भी इस व्यवसाय का हिस्सा बन गई हैं. कालिंदी कुंज के पास स्थित एक पुल के नीचे कुछ महिलाएं पानी में उतरकर पूजा सामग्री में छुपे हुए छोटे-मोटे वस्त्र और अन्य सामान से पैसे ढूंढ़ने का काम करती हैं. इन महिलाओं का कहना है कि इससे उन्हें रोजमर्रा के खर्चे में थोड़ी बहुत राहत मिल जाती है.
पर्यावरणविदों की चिंता
हालांकि, इस व्यवसायिक पहल ने जहां कुछ लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं, वहीं पर्यावरणविद इस बात को लेकर गंभीर चिंताएं जताते हैं. पंडित दुर्गा प्रसाद दुबे, जो एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद हैं, ने कहा, "यमुना में पूजा सामग्री फेंकना कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं होना चाहिए. यह नदी को और गंदा करने जैसा है. हमें ऐसा कोई शास्त्र दिखाओ जिसमें लिखा हो कि पूजा सामग्री को नदी में फेंकना है."
उनका यह भी मानना है कि यमुना जैसी महान नदी की स्वच्छता बनाए रखना हम सभी का कर्तव्य है. अगर हम धार्मिक भावनाओं को व्यापारिक मकसद में बदल देते हैं, तो पर्यावरण पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है.
दिल्ली की नदियों में से एक, यमुना, हमारे इतिहास और संस्कृति की गवाह है. लेकिन अगर हम उसे इस प्रकार प्रदूषित करने देंगे, तो भविष्य में इसका असर हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ेगा. इसलिए, चाहे व्यवसायिक लाभ के लिए भी हो या धार्मिक अनुष्ठान के लिए, हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यमुना की स्वच्छता बनी रहे. हमें पूजा सामग्री के सही निपटान के लिए न केवल सरकारी प्रयासों का समर्थन करना चाहिए, बल्कि अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को भी समझना होगा.