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Digital Arrest in Ajmer: अजमेर में साइबर ठगों का भंडा फोड़, बुजुर्ग महिला को डिजिटल अरेस्ट कर ठगे थे 80 लाख... कैसे काम करती थी गैंग, कैसे करते थे ठगी, जानिए सब कुछ

पुलिस को शक है कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है वे एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा हैं. और इनके तार विदेश से भी जुड़े हो सकते हैं. क्या है यह गिरोह, कैसे करता है काम. आइए जानते हैं.

राजस्थान स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने डिजिटल अरेस्ट के मामले को लेकर ताबड़तोड़ छापेमारी की है. डिजिटल अरेस्ट करने वाले गिरोह के 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. साथ ही उनके कब्जे से 13 लाख रुपए से ज्यादा कैश सहित डेबिट कार्ड, पासबुक और अन्य सामग्री बरामद की है. 

गिरफ्तार आरोपियों से 13 लाख रुपये, 27 मोबाइल फोन, 43 डेबिट कार्ड, 19 पासबुक और 15 चेकबुक, 16 सिम कार्ड, 13 पैन कार्ड/आधार कार्ड, एक लैपटॉप और एक कार कुर्क की गई है. गिरफ्तार गैंग के शातिरों ने हाल ही में एक बुजुर्ग महिला को व्हाट्सएप पर डिजिटल अरेस्ट कर उससे मोटी रकम वसूल की थी. यह गैंग कैसे काम करता था और क्या है पूरा मामला, आइए जानते हैं.

क्या है पूरा मामला?
एसओजी (Special Operations Group) के अतिरिक्त महानिदेशक वी.के. सिंह ने बताया कि यह गिरफ्तार किए गए लोग एक साइबरक्राइम नेटवर्क का हिस्सा थे. जो पुलिस या अन्य किसी विभाग के अधिकारी बनकर लोगों को व्हाट्सएप कॉल करते थे. वे उन्हें डिजिटल अरेस्ट करके उनसे पैसे वसूला करते थे. 

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गिरफ्तार किए गए लोगों में कोई बैंक खाते खोलने और मैनेज करने का काम संभालता था, कोई ठगी के पैसों को क्रिप्टो करेंसी में बदलता था तो कोई नए लोगों को जोड़ने का काम करता था. ये आरोपी तब पकड़े गए जब इन्होंने अजमेर की एक वृद्ध महिला को 80 लाख रुपए का चूना लगाया. और महिला ने पुलिस में शिकायत की.

कैसे किया वृद्धा को डिजिटल अरेस्ट?
आरोपियों ने अजमेर के पंचशील में रहने वाली एक रिटायर्ड स्कूल टीचर उर्मिला माहेश्वरी को नवंबर में डिजिटल अरेस्ट किया था. महिला से 80 लाख रुपये की साइबर ठगी की गई. दरअसल आरोपियों ने मुंबई क्राइम ब्रांच के ऑफिसर के तौर पर 14 नवंबर को महिला को फोन किया. दूसरी तरफ मौजूद ठग ने महिला से कहा कि उसके आधार कार्ड का इस्तेमाल एक अकाउंट में 25 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए हैं.

पहले तो पीड़िता ने इस बात को नकारा लेकिन घबराकर उसने अपने बैंक खाते की सारी डीटेल्स ठगों के हवाले कर दीं. ठगों ने मामले को दबाने के नाम पर पीड़िता से 80 लाख रुपए अपने अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करवा लिए.  

एफआईआर के बाद एक्शन में आई पुलिस
पीड़िता ने क्रिश्चियन गंज थाने में शिकायत दर्ज की. मामला दर्ज होने के बाद इसे जयपुर के साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन के स्पेशल ऑपरेशन्स ग्रुप के हवाले किया गया. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मोहेश चौधरी के नेतृत्व में एसओजी की एक टीम गठित कर गहन पड़ताल की गई. 

ठगी गई राशी के मनी ट्रेल का विश्लेषण करने पर पाया गया की यह राशी 150 खातों में ट्रान्सफर की गई है. एसओजी अधिकारियों ने सभी खातों का समग्र विश्लेषण करने पर संदिग्ध खाता धारकों की पहचान की. जांच में यह भी पाया गया की ठगी की राशी विभिन्न खातों से होती हुई क्रिप्टो करेंसी में भी कन्वर्ट की जा रही थी. 

कैसे काम करता था गिरोह?
जांच में सामने आया कि राकेश, दिलीप, सुमर्थ, रजनेश, अंकित, राहुल और मनराज नाम के आरोपी ठगी का पैसा ट्रांसफर करने के लिए बैंक खाते उपलब्ध करवाते थे. इसके बाद आरोपी दिलखुश इन खाताधारकों से खातों की किट (पासबुक, चेकबुक, डेबिट कार्ड) इकट्टा कर आरोपी संजीत, चैनसिंह और संदीप तक पहुंचाता था. 

संजीत और चैनसिंह ठगी की राशी को बैंक से निकालकर उसे आरोपी तरुण, देवेन्द्र सिंह, विनेश कुमार और बृज किशोर को देकर यूएसडीटी (USDT) में कन्वर्ट करते थे, जो एक तरह की क्रिप्टो करेंसी है. क्रिप्टोकरेंसी की मौजूदगी के कारण पुलिस को शक है कि इस नेटवर्क के तार विदेश से जुड़े हो सकते हैं.