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Purnima Devi Barman: विलुप्त होते सारस पक्षी को बचाने का काम कर रही हैं डॉ. पूर्णिमा देवी... 10 हजार महिलाओं वाली हरगिला आर्मी को करती हैं लीड, मिल चुका है पर्यावरण से जुड़ा सबसे बड़ा अवार्ड

Dr Purnima Devi Barman: विलुप्त होते सारस पक्षी को बचाने के लिए डॉ. पूर्णिमा देवी काम कर रही हैं. वे 10 हजार महिलाओं वाली हरगिला आर्मी को लीड करती है. इस साल उन्हें पर्यावरण से जुड़ा सबसे बड़ा अवार्ड मिला है.

Dr Purnima Devi Barman Dr Purnima Devi Barman
हाइलाइट्स
  • 10 हजार महिलाओं वाली हरगिला आर्मी को करती हैं लीड

  • हरगिला को बचाने के लिए किया काम  

भारतीय वाइल्ड लाइफ बायोलॉजिस्ट डॉ. पूर्णिमा देवी बर्मन को इस साल चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड से सम्मानित किया गया है. डॉ बर्मन को एंटरप्रेन्योरल विजन केटेगरी में यूनाइटेड नेशन के पर्यावरण से जुड़े सबसे बड़े अवार्ड से सम्मानित किया गया है. यूएनईपी ने उन्हें 2022 का चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड दिया है. बता दें, डॉ. पूर्णिमा "हरगिला आर्मी" का नेतृत्व करती हैं. ये आर्मी ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क, यानि सारस पक्षी को विलुप्त होने से बचाने के लिए काम कर रही है. ये एक आंदोलन है, जिसमें सभी महिलाएं हैं. ये सभी जमीनी स्तर पर सारस पक्षी को बचाने का काम कर रही हैं. 

दादी सुनाया करती थी पशु-पक्षियों की कहानियां 

42 साल की डॉ. पूर्णिमा बर्मन अपनी दादी के घर के बारे में बताते हुए कहती हैं कि वे कुल 5 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार एक बड़ा सा चिड़िया का घोंसला देखा था. ये घोंसला चिड़िया ने पुराने कदम (बरफ्लॉवर) के पेड़ पर बनाया था. खेलने के लिए ये उनकी पसंदीदा जगह थी. वह इसके नीचे बैठकर घंटों बिता दिया करती थीं. देवी बर्मन कहती है, “मेरी दादी मुझे भगवान कृष्ण और राधा की कहानियां सुनाया करती थीं जिसमें वे कदम के पेड़ के बारे में बताया करती थीं. मुझे वह पेड़ बहुत अच्छा लगता था और जब वह गिराया गया तो वह मेरे लिए बहुत दुखी पल था.” 

डॉ. पूर्णिमा के पिता आर्मी में थे तो उनका ज्यादातर बचपन अपनी दादी के पास ही गुजरा था. वे बताती हैं कि उनकी दादी अक्सर उन्हें पशु-पक्षियों के बारे में बताया करती थीं. बस वहीं से देवी बर्मन के मन में इनके लिए प्यार उमड़ने लगा. इसीलिए देवी बर्मन ने अपना जीवन वन्य-जीवों के लिए बिता दिया.

हरगिला सारस को बचाने के लिए किया काम  

दरअसल, डॉ. पूर्णिमा कहती हैं कि सारस को हमारे समाज में एक अपशगुन या बैड लक की तरह देखा जाता है. लोगों का उनका आना पसंद नहीं होता है. इसलिए भी इनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. इसका सबसे पहला अनुभव उन्होंने 2007 में किया था. जब वे गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से सारस पर ही पीएचडी कर रही थीं. वे बताती हैं कि उन्हें एक गांव वाले के घर पर सारस के घोंसले के बारे में पता चला. वह जख्मी था. ऐसे में उन्होंने  गांव वालों को समझाने की कोशिश की की यह कोई अपशगुन नहीं लाते हैं बल्कि वातावरण को साफ रखने में मदद करते हैं.  जिसके बाद डॉ. पूर्णिमा को लगा कि आखिर ऐसी पीएचडी का क्या मतलब है जिससे वह इन पक्षियों को बचा न सकें. तब उन्होंने इन पक्षियों के ऊपर और बचाने के लिए काम शुरू किया. इसके लिए उन्होंने अपनी पीएचडी भी बीच में रोक दी.    

10 हजार से ज्यादा महिलाएं हैं हरगिला आर्मी में

बताते चलें, आज "हरगिला आर्मी" में 10,000 से अधिक महिलाएं हैं. वे घोंसलों की रक्षा करती हैं, घायल सारसों का पुनर्वास करती हैं, साथ ही साथ नवजात सारस के आगमन का जश्न भी मनाती हैं. इतना ही नहीं बल्कि उनकी "गोद भराई" की व्यवस्था भी करती हैं. हालांकि, डॉ. पूर्णिमा कहती हैं, “एक पुरुष प्रधान समाज में संरक्षण का काम करने वाली महिला होना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन हरगिला सेना ने दिखाया है कि महिलाएं कैसे बदलाव ला सकती हैं."