कहते हैं कि जो लोग कुछ कर गुजरने का सपना देखते हैं उनका कठिन परिस्थितियां भी रास्ता नहीं रोक पाती. अब्दुल कलाम भी ऐसे ही शख्स थे जो विपरीत परिस्थितियों से गुजरते हुए एक अलग मुकाम हासिल किया. अब्दुल कलाम का नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित किया जाएगा. उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें युगों युगों तक याद किया जाएगा. गरीब घर में जन्म लेने वाले कलाम ने अपनी पूरी जिंदगी में इतने महान काम किए कि लाखों करोड़ों लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं. कभी पायलट बनने का सपना देखने वाले कलाम पायलट तो नहीं बन पाए लेकिन मिसाइल बनाकर पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत रक्षा क्षेत्र में भी किसी से कम नहीं है. मिसाइल मैन अब्दुल कलाम की लोग मिसाल देते नहीं थकते. आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ अनसुनी और अनकही कहानियां कि कैसे वो अख़बार बेचने से लेकर मिसाइल बनाने और राष्ट्रपति बनने तक का सफर पूरा किया.
8 साल की उम्र में बेचा अखबार
15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम जिले के धनुष्कोडी गांव में एक बेहद ही गरीब परिवार में अब्दुल कलाम का जन्म हुआ. पांच भाई बहन में सबसे छोटे कलाम के पिता नाव चलाते थे. किसी तरह घर का गुजारा होता था. कलाम के परिवार में कोई पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन उन्हें पढाई का चस्का लगा. परिवार की आर्थिक हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि उन्हें पढ़ाई का खर्च दे सके. ऐसे में कलाम जब 8 साल के ही थे तब से ही पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए अखबार बेचने का काम शुरू कर दिया. जो कमाई होती थी उससे अपनी पढ़ाई पूरी करते और जो बचता था तो वो अपने परिवार को देते थे. पढ़ाई के प्रति उनका लगाव बढ़ता गया और वो रोज घण्टों तक पढ़ते रहते थे. शुरुआती पढ़ाई लिखाई रामेश्वरम से पूरी की. ग्रेजुएशन उन्होंने सेट जोसेफ से और मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजिनयरिंग की डिग्री प्राप्त की.
कॉलेज खत्म होने के बाद पहुंचे DRDO
मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजिनयरिंग करने के बाद अब्दुल कलाम ने डीआरडीओ में एयरोनॉटिकल डेवेलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट जॉइन किया. लेकिन शुरुआत से ही वो डीआरडीओ की नौकरी से संतुष्ट नहीं थे. इसी दौरान इसरो के फाउंडर और महान स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई से उनकी उनकी मुलाकात हुई. कलाम की मेहनत देखकर उनका डीआरडीओ से इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) में तबादला कर दिया गया.
ऐसे बने मिसाइल मैन
इसरो में अब्दुल कलाम ने साल 1970-80 के बीच पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और SLV-III प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया और उनकी मेहनत और गहरी समझ से दोनों प्रोजेक्ट ही कामयाब रहे. वो भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1998 में ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई. इसके बाद कलाम को मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा. उनकी उपलब्धि को देखते हुए 1981 में पद्म भूषण 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
2002 में बने राष्ट्रपति
अब्दुल कलाम 2002 में भारत के राष्ट्रपति बने. उनका सफल कार्यकाल 25 जुलाई 2007 तक रहा. हालांकि वो दूसरा कार्यकाल भी चाहते थे लेकिन अचानक चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। उन्होंने कई किताबें लिखी. जिसमें विंग्स ऑफ़ फायर, इण्डिया 2020, माय जर्नी, इग्नाइटेड माइंड आदि काफी फेमस है. अपने अंतिम सांस तक कलाम किसी न किसी रूप से देश की सेवा करते रहे. 27 जुलाई 2015 को हिमाचल प्रदेश के आईआईटी में लेक्चर देने के दौरान वो गिर पड़े. उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वो नहीं बच सके. उनकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई. उनकी पूरी जिंदगी प्रेरणा से भरी है. उनका कहा हुआ एक एक शब्द प्रेरणा से ओतप्रोत है.