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Durga Bhabhi: कौन थीं दुर्गा भाभी, जिनसे अंग्रेज भी खाते थे खौफ, भगत सिंह से लेकर चंद्रशेखर आजाद तक... सबकी की थीं मदद

Happy Birthday Durga Bhabhi: दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती देवी था. वह ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति में सक्रिय भागीदार थीं. 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में हुई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की थी.

दुर्गा भाभी (फाइल फोटो) दुर्गा भाभी (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को हुआ था

  • पिस्तौल चलाने में माहिर थीं दुर्गावती देवी

देश की आजादी में पुरुषों के साथ वीर महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया था. झांसी की रानी, अहिल्या बाई सहित कई महिलाओं की जाबांजी का भारतीय इतिहास गवाह है. इन महिलाओं में एक नाम दुर्गावती देवी का भी शामिल है. दुर्गावती देवी को हम दुर्गा भाभी के नाम से जानते हैं. दुर्गा भाभी भले ही भगत सिंह, सुख देव और राजगुरु की तरह फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन कंधें से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं. 

स्वतंत्रता सेनानियों के हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनीं. दुर्गा भाभी बम बनाती थीं तो अंग्रेजो से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को टीका लगाकर विजय पथ पर भी भेजती थीं. चलिए आज महिला स्वतंत्रता सेनानी दुर्गावती उर्फ दुर्गा भाभी के बारें में जानते हैं.

उत्तर प्रदेश के शहजादपुर गांव में हुआ था जन्म
दुर्गा भाभी के नाम से लोकप्रिय दुर्गावती देवी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले स्थित शहजादपुर गांव में पंडित बांके बिहारी के घर हुआ था. बचपन में वे लाड़-प्यार से पली-बढ़ी थीं. 11 साल की उम्र में ही उनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया जो खुद एक सम्पन्न परिवार से थे.

पति का हर कदम पर दिया साथ
भगवती चरण बोहरा के पिता रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे फिर भी वे आजादी की लड़ाई में शामिल होना चाहते थे. 1920 में वे क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए. दुर्गावती ने अपने पति का हर कदम पर भरपूर साथ दिया. 1923 में  उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की थी. दुर्गावती के ससुर और उनके पिता ने संकट के समय में काम आने के लिए बड़ी रकम उन्हें और उनके पति को दी थी जो दंपति ने क्रांतिकारी गतिविधियों में लगा दी थी.

1920 के दशक में जब भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी अंग्रेजों के जुल्म का जवाब उन्हीं की जुबान में देने की कोशिश कर रहे थे तो एक महिला होने के बाद भी दुर्गा भाभी ने अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर और फिर उनकी मौत के बाद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रियता से भाग लिया. 

जेम्स स्कॉट को खुद मारना चाहती थीं दुर्गा भाभी 
बोहरा बम बनाने में विशेषज्ञ थे तो दुर्गा देवी भी बम बनाना और पिस्तौल चलाना जानती थीं. 1926 में वोहरा ने भगत सिंह और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर नौजवान भारत सभा की स्थापना की, जिसमें सैकड़ों जवान शामिल हुए थे. 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में हुई बैठक की अध्यक्षता खुद दुर्गा भाभी ने की थी. बैठक में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने का फैसला किया गया, जिसका जिम्मा वे खुद लेना चाहती थीं, पर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी और भगत सिंह ने आगे आकर खुद ऐसा करने का फैसला लिया.

भगत सिंह से दुर्गा भाभी का रिश्ता
लाला लाजपत राय की मौत के बाद अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स और स्कॉट से बदला लेने के लिए आतुर दुर्गा भाभी ने ही अपने हाथ से खून निकाल कर भगत सिंह और उनके साथियों को टीका लगाकर रवाना किया था. 1928 में जब भगत सिंह और राजगुरु सॉन्डर्स को मारने के बाद अंग्रेजों के कड़ी चौकसी के बीच लाहौर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे तो कोई उन्हें पहचान न सके इसलिए दुर्गा भाभी की सलाह पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगत सिंह उनके पति, दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और राजगुरु नौकर बनकर सफलतापूर्वक वहां से निकल सके थे.  इतना ही नहीं 1929 में जब भगत सिंह ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद आत्मसमर्पण किया था तो दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और उनके साथियों की जमानत के लिए अपने सारे गहने तक बेच दिए थे. 

पति की मौत के बाद भी रहीं सक्रिय
28 मई 1930 को अपने साथियों के साथ वोहरा बम का परीक्षण करते हुए बम धमाके के हुए हादसे में शहीद हो गए. उनके गुजरने के बाद भी बच्चों की जिम्मेदारी के साथ दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी गतिविधियों से किनारा नहीं किया. इसके बाद अक्टूबर 1830 को ही उन्होंने गवर्नर हैली पर गोली चला कर हमला किया. 

इसमें हैली तो बच गया, लेकिन दूसरा सैन्य अधिकारी टेलर घायल हो गया था. इसके बाद भाभी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नल को भी गोली मारी जिसके बाद अंग्रेज उनके पीछे पड़ गए. जल्दी ही उन्हें मुंबई से गिरफ्तार भी कर लिया गया और वहां से छूटने के बाद भी उन्होंने अपना काम नहीं छोड़ा उनका काम साथियों को हथियार पहुंचाने का हो गया था.

चंद्रशेखर आजाद को पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही दी थी
दुर्गा भाभी को भारत की 'आयरन लेडी' भी कहा जाता है. बहुत ही कम लोगों को ये बात पता होगी कि जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारकर बलिदान दिया था, वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी. उस समय वह भी इलाहबाद में ही थीं .

अंतिम समय में गरीब बच्चों को पढ़ाती रहीं 
कई साथी क्रांतिकारियों की फांसी और पति के शहीद होने के बाद दुर्गा भाभी बिलकुल ही अकेली रह गई थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कुछ सालों तक अलग-अलग जगह पढ़ाने का काम किया फिर कांग्रेस में भी शामिल हुईं. बाद में वे गाजियाबाद में गरीब बच्चों को पढ़ाती रहीं और 15 अक्टूबर 1999 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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