चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अपने उत्तराधिकारी के रूप में सिफारिश की है. जिससे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज हो गई है. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, भारत में सबसे लंबे समय तक बतौर चीफ जस्टिस अपनी सर्विस देने वाले मुख्य न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के बेटे हैं. 2016 मे जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्ति ली थी.
वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं औरसाल 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर जज उनकी पहली नियुक्ति थी. उससे पहले 1998 से 2000 तक वह भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रहे. उन्होंने 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल कीन और फिर प्रतिष्ठित हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की.
220 से ज्यादा फैसलों का हिस्सा रहे हैं चंद्रचूड़
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सर्वोच्च न्यायालय में सबसे मशहूर न्यायाधीशों में से एक रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ अब तक 220 से ज्यादा फैसलों का हिस्सा रहे हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर निष्पक्ष होकर फैसले सुनाए हैं और तो और कई संवेदनशील मुद्दों पर भी वह बेबाकी से बोले हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ को उनके कई अहम फैसलों के लिए जाना जाता है जैसे कि वह अपने ही पिता के एक पूराने फैसले को बदलने से भी नहीं हिचके. आज हम उनके कुछ ऐसे संवेदनशील फैसलों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी वजह से लोगों का कानून में विश्वास आज भी बरकरार है.
धारा 377 को किया अपराधमुक्त करने पर
नवतेज जौहर बनाम भारत संघ मामले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि धारा 377 एक 'अकालवादी औपनिवेशिक कानून' था और यह समानता, अभिव्यक्ति की आजादी, लाइफ और प्राइवेसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता था. साथ ही, चंद्रचूड़ और बेंच ने एलजीबीटी समुदाय के लिए संवैधानिक अधिकारों की गारंटी देते हुए धारा 377 को खारिज कर दिया.
'लव जिहाद': हादिया मामला
हादिया मामला 2017-2018 का भारतीय सुप्रीम कोर्ट का वह मामला था जिसने हादिया और शफीन जहान के विवाह की वैधता की पुष्टि की. हादिया ने अपनी मर्जी से शफीन से शादी की थी और इस शादी को लव जिहाद बताते हुए, हादिया के परिवार ने चुनौती दी थी. इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ और बेंच ने माना कि हादिया बालिग है और उसे अपनी मर्जी से शादी करने का पूरा अधिकार है.
सबरीमाला मामले में लिया ऐतिहासिक फैसला
सबरीमाला मुकदमे (इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य) में जस्टिस चंद्रचूड़ ने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में जाने के अधिकार का समर्थन किया और कहा कि उन्हें प्रवेश नहीं करने देना संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है. एक महत्वपूर्ण पहलू में, उन्होंने कहा कि मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं को धार्मिक स्थान में प्रवेश करने से रोकना, अनुच्छेद 17 का उल्लंघन है जो "इनटचेबिलिटी" को गैर-कानूनी ठहराता है.
गर्भपात कानून में मैरिटल रेप को माना
29 सितंबर को महिलाओं को गर्भपात का अधिकार देने पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. इसमें कहा गया था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 22 से 24 हफ्ते तक गर्भपात का हक सभी को है. इस बेंच की अगुआई भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे. इस फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने मैरिटल रेप को भी मान्यता देते हुए कहा कि अगर किसी पति ने जबरदस्ती अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाए हैं तो उस पत्नी के भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा. इस तरह, गर्भपात के मामले में ही सही, कानून में पहली बार वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को मान्यता मिली.