महाराष्ट्र में जब से MLC चुनाव हुए हैं उसके बाद से सियासी सरगर्मियां बढ़ गई हैं. उद्धव सरकार को जोर का झटका लगा है. शिवसेना के सीनियर नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे उन्हीं के खिलाफ खड़े हो गए हैं. लेकिन वे अकेले नहीं हैं बल्कि 2 दर्जन विधायकों को अपने साथ लेकर गायब हो गए हैं. बताया जा रहा है कि वे तकरीबन 20 विधायकों को लेकर गुजरात पहुंच गए हैं.
हालांकि, महाराष्ट्र में मंत्रियों द्वारा बागी तेवर दिखाने की प्रथा कोई नई नहीं है. 1978 में भी कद्दावर नेता शरद पवार ने कुछ ऐसा ही किया था.
महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत खास है 1978 का साल
दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में 1978 का साल काफी ख़ास माना जाता है. शरद पवार उस वक्त कांग्रेस से बगावत छेड़ते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल से अलग हो गए थे और प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट तैयार करके खुद सरकार के मुखिया बन गए थे. प्रदेश में पहली गठबंधन सरकार बनाने वाले शरद पवार अकेले नेता थे. बता दें, ये वही साल है जब पवार पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. तब वे केवल 38 साल के थे.
विधायकों को लेकर अलग हो गए थे पवार
इसके पीछे की पूरी कहानी की बात करें, तो साल 1977 में देश में लगी इमरजेंसी के हटने के बाद कांग्रेस सरकार के खिलाफ अच्छा-खासा माहौल बन गया था. जिससे महाराष्ट्र भी अछूता नहीं रहा. 1978 में जब महाराष्ट्र विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा उस वक्त पवार 40 विधायकों के साथ सरकार से अलग हो गए थे. पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं ने इस्तीफे सौंप दिए थे, जिसमें सुशील कुमार शिंदे, दत्ता मेघे और सुंदरराव सोलंकी जैसे बड़े मंत्री शामिल थे.
इसका असर ये पड़ा कि वसंतदादा पाटिल की सरकार के पाले से विधायक कम हो गए और सरकार अल्पमत में आ गई. जिसके कारण मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
महाराष्ट्र में पहली बार बनी गैरकांग्रेसी सरकार
महाराष्ट्र में पहली बार 18 जुलाई 1978 को गैरकांग्रेसी सरकार बनी. जिसमें जनता पार्टी, पवार की समाजवादी कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और शेतकरी कामगार पक्ष शामिल थे. इन सबको मिलाकर नाम रखा गया 'प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट'. हालांकि, पवार महाराष्ट्र को एक स्थायी सरकार नहीं दे सके. ये गठबंधन वाली सरकार कुल 18 महीने ही चल पाई.