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Election in 5 States: चुनाव प्रचार की अवधि और सीमित होगी इस बार! कोरोना के चलते बन रहे हैं आसार

निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक इस बार 2020 में हुए बिहार आदि राज्यों और 2021 में हुए बंगाल आदि राज्यों के विधानसभा चुनावों के समय से भी कम समय पूरी चुनावी प्रक्रिया और प्रचार के लिए दिया जा सकता है.

चुनाव आयोग चुनाव आयोग
हाइलाइट्स
  • 5 राज्यों में हो रहे हैं विधानसभा चुनाव

  • कोरोना के बढ़ते के चलते हो सकते हैं निर्णय

कोविड और ओमिक्रॉन संक्रमण के मद्देनजर चुनाव प्रचार की अवधि घटने के आसार लग रहे हैं. निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक इस बार 2020 में हुए बिहार आदि राज्यों और 2021 में हुए बंगाल आदि राज्यों के विधानसभा चुनावों के समय से भी कम समय पूरी चुनावी प्रक्रिया और प्रचार के लिए दिया जा सकता है. वैसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के पांचवें भाग के पहले अध्याय में इस प्रक्रिया और उसकी अवधि का जिक्र है. इसके मुताबिक चुनाव के ऐलान और अधिसूचना जारी होने के बीच 21 दिनों का अंतराल होना चाहिए. अधिसूचना जारी होने और मतदान के बीच 25 दिनों का अंतराल होना समुचित है.

ये है अधिनियम-
अधिनियम के मुताबिक अधिसूचना के साथ ही नामांकन शुरू हो जाता है. नामांकन के लिए अमूमन सात दिन की अवधि होती है. नामांकन की अवधि पूरी होने के बाद नामांकन पत्रों की जांच अगले दिन होती है. इसके अगले दो दिन नाम वापस लेने का समय होता है. ये अवधि बीत जाने के अगले दिन उम्मीदवारों की फाइनल सूची जारी कर दी जाती है. यानी कायदे से अधिसूचना के बाद कम से कम 11 दिन इन प्रक्रियाओं में लगते हैं. इन चरणों के लिए जी दिन निर्धारित हैं उनमें अगर सार्वजनिक अवकाश आता है तो अगले दिन ही प्रक्रिया पर अमल होगा. यानी यह भी प्रावधान है की उस दिन सार्वजनिक अवकाश न हो. इस निश्चित प्रक्रिया के बाद यानी उम्मीदवारों की अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद फिर अगले दो हफ्ते यानी 14 दिन तो मिलेंगे ही चुनाव प्रचार के लिए. 

कुल मिलाकर अधिसूचना जारी होने के बाद 25 दिन तो मतदान कराने तक के ही हो गए. अमूमन चुनाव कार्यक्रम की घोषणा और पहले चरण की अधिसूचना के बीच भी 21 दिन का वक्त होता है. यानी अधिनियम के अनुसार चुनाव की घोषणा और मतगणना के बीच तकरीबन 45 दिनों का वक्त होता है. निर्वाचन आयोग के पूर्व मुख्य आयुक्त एचएस ब्रह्मा के मुताबिक पिछले कुछ चुनावों में हालात ऐसे रहे कि ये अवधि न्यूनतम कर दी गई. यानी 45 को पहले 40 दिन किया गया फिर 35 दिनों में निपटाया गया. लेकिन कोविड संकट काल में 30 और 28 दिनों में भी चुनाव कराए गए हैं.

कम समय में हो सकते हैं चुनाव
अब यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधान सभा चुनाव में शायद ये अवधि न्यूनतम हो जाए. क्योंकि आयोग के आला अधिकारियों का कहना है कि अवधि घटने से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया या प्रचार पर कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. हां, इससे सुरक्षित चुनाव करवाने में जरूर मदद मिलेगी. क्योंकि मतदान केंद्रों की संख्या और मतदान की अवधि बढ़ाने के साथ साथ मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या में कमी की गई है. इससे शारीरिक दूरी के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मतदान आसान होगा. इसके अलावा अस्सी साल या इससे से अधिक आयु के बुजुर्ग मतदाता, दिव्यांग और कोविड जैसे लक्षणों या संक्रमण की आशंका या फिर चिकित्सकीय सलाह पर एकांत वास करने वाले मतदाताओं के लिए उनके घर पर ही बैलेटपेपर से मतदान कराने का इंतजाम भी होगा. 

मतदान की अवधि कम होने के साथ साथ लोकतंत्र के महापर्व की रंगत भी फीकी रहने के आसार हैं. क्योंकि चुनावी रैली, रोड शो, जुलूस जलसे, प्रचार अभियान पर भी सख्ती और पाबंदी रहेगी..पहले की तरह सड़कों और गलियों में पदयात्रा टाइप का जलवा जलाल शायद इन चुनावों में देखने को ना मिले. 

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