चुनाव से पहले जनता को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों पर नकेल कसने की कवायद संभव है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव से इसे लागू भी कर दिया जाएगा. निर्वाचन आयोग ने आदर्श चुनाव आचार संहिता में सुधारात्मक पारदर्शी बदलाव को लेकर जो पहल की है. उसका असर 6 राज्यों में हो रहे उपचुनाव पर सांकेतिक होगा. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इन सुधारों की सख्ती और बदलाव का असर दिख सकता है.
स्पष्ट कारण बताना होगा
आयोग ने सियासी दलों से राय मांगी है, क्यों न वादों को पूरा करने की संभाव्यता की जानकारी को आदर्श चुनाव आचार संहिता (एमसीसी) का हिस्सा बना दिया जाए. 19 अक्तूबर तक राजनीतिक दलों को राय देनी होगी. छह राज्यों में सात विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव की घोषणा के बाद आयोग ने यह चिट्ठी लिखी है. आयोग ने साफ कहा कि वादे पूरे करने के लिए धन कैसे और कहां से लाएंगे, कर्ज तो नहीं लेंगे, यह स्पष्ट बताना होगा.
प्रभावों की अनदेखी नहीं
निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि वह चुनावी वादों पर पूरी जानकारी न देने और उसके वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले अवांछनीय प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा, मौजूदा एनसीसी में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से पूछा जाता है कि वे वादों के कारण स्पष्ट करें. वित्तीय स्रोत और कमाई बताएं, जिससे वे उन्हें पूरा करेंगे, लेकिन देखा गया है कि यह घोषणा सामान्य और अस्पष्ट सी बन गई हैं, जिससे मतदाता सही जानकारी के साथ दल या प्रत्याशी नहीं चुन पाते.
आयोग ने कहा, यह सही है कि चुनावी घोषणा पत्र बनाना राजनीतिक दलों का अधिकार है, लेकिन उसमें सही और प्रमाणिक जानकारी मानक रूप में मौजूद हो. इसमें धन और उसके स्रोत की तार्किकता, खर्च की तार्किकता (क्या कुछ योजनाओं में कटौती होगी), दायित्वों पर प्रभाव, कर्ज लेने, वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन ऐक्ट की सीमा पर क्या असर होगा, समेत अन्य बातें शामिल होंगी. आयोग ने नया प्रारूप तैयार किया है, जिसे एमसीसी का हिस्सा बनाया जाएगा.
राजनीतिक दलों के हवाई वादों पर लगेगी लगाम
निर्वाचन आयोग ने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि आजकल आए दिन चुनाव होते हैं. राजनीतिक दलों की हवाई घोषणाएं अब आम हो गई है. इस कारण से राजनीतिक पार्टियों की ओर से दी गई जानकारियां पर्याप्त रहती हैं. इसके अलावा चुनाव कई चरण में होते हैं. राजनीतिक रोड की वजह से राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे से आगे बढ़कर हवा हवाई चुनावी वादे करने में पीछे नहीं रहती. जिसमें वह मतदाताओं को यह नहीं बताते कि इन योजनाओं पर होने वाला खर्च वह कैसे भरपाई करेंगे! क्या वह नए टैक्स लगाएंगे या फिर पुरानी योजनाओं में कटौती करेंगे कहीं से कर्जा उतार लेंगे या फिर किसी और स्रोत से धन जुटाएंगे. लिहाजा चुनाव आयोग अब राजनीतिक दलों की इस अंधाधुंध रोड पर लगाम कसने की तैयारी अगले चुनावों से ही करने जा रहा है.