दुनिया के सबसे अमीर इंसान एलन मस्क ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थाई सदस्यता का समर्थन किया है. एलन मस्क ने भारत को स्थाई सदस्यता ना दिए जाने को हास्यास्पद बताया. इस अरबपति ने अफ्रीका को भी एक सीट दिए जाने की वकालत की. चलिए हम आपको बताते हैं कि भारत क्यों बार-बार सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग करता है और खुद को इसका स्थाई सदस्य बनाए जाने का समर्थन क्यों करता है? ये भी बताते हैं कि कौन-कौन से ग्रुप हैं, जो यूएन सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग कर रहे हैं. सबसे पहले ये जान लेते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर इंसान ने सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर क्या कहा है.
एलन मस्क ने क्या कहा-
टेस्ला और स्पेसएक्स कंपनी के मालिक एलन मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया. जिसमें उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निकायों की समीक्षा करने की जरूरत है. समस्या यह है कि जिन देशों के पास बहुत ज्यादा ताकत है, वे इसे छोड़ना नहीं चाहते हैं. धरती पर सबसे ज्यादा आबादी होने के बाद भी भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता नहीं दिया जाना हास्यास्पद है. अफ्रीका को भी सामूहिक रूप से एक सीट दिया जाना चाहिए.
सुरक्षा परिषद में बदलाव की क्यों है जरूरत-
संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में बदलाव की इसलिए जरूरत है कि क्योंकि साल 1945 में इसकी स्थापना उस समय के भू-राजनीति के हिसाब से की गई थी. आज की मौजूदा भू-राजनीति उस समय के हिसाब से काफी अलग है. उस समय दुनिया में अमेरिका, रूस , ब्रिटेन, फ्रांस बड़ी शक्तियां थीं. लेकिन आज भारत, जर्मनी, जापान, ब्राजील और अफ्रीकी देश उभरकर सामने आ रहे हैं.
सुरक्षा परिषद में शीत युद्ध के बाद से ही बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही और इसकी मांग भी हो रही है. लेकिन अब तक इसमें कायमाबी नहीं मिली है. इस समय सुरक्षा परिषद में यूरोप का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व है, जहां दुनिया की कुल आबादी का सिर्फ 5 फीसदी लोग रहते हैं.
यूएन की इस सबसे अहम निकाय में अफ्रीकी देशों का कोई स्थाई सदस्य नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 फीसदी काम अकेले अफ्रीका देशों से संबंधित है. इसके अलावा दुनिया में शांति स्थापित करने वाले अभियानों में भारत अहम भूमिका निभाता रहा है. लेकिन सुरक्षा परिषद के सदस्य भारत की भूमिका को नदरअंदाज कर देते हैं.
सुरक्षा परिषद में भारत का क्या है तर्क-
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी के समर्थन में कई तर्क दिए जाते हैं. सबसे बड़ा तर्क तो ये है कि देश की आबादी 140 करोड़ है, जो दुनिया की जनसंख्या का 1/5वां हिस्सा है. इतनी बड़ी आबादी को नजरअंदाज करना किसी भी निकाय को ठीक ढंग से चलाने के लिए उचित नहीं है. इसके साथ ही ये भी तर्क दिया जाता है कि भारत दुनिया में उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है. आर्थिक तौर ताकतवर होता भारत सुरक्षा परिषद में इसके दावे को और भी मजबूत करता है.
भारत दुनिया का सबसे अहम संगठनों WTO, ब्रिक्स, जी20 जैसे आर्थिक संगठनों में प्रभावशाली माना जाता है. ऐसे में भारत का दुनिया के बड़े फैसलों में अहम भूमिका होनी चाहिए. इसलिए सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता मिलनी चाहिए. इतना ही नहीं, भारत दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सेना में सबसे ज्यादा सैनिक भेजता है. लेकिन भारत दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए फैसले नहीं ले सकता है.
सुरक्षा परिषद में कौन-कौन शामिल होना चाहता है-
दुनियाभर मे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग उठ रही है. इसमें कई ग्रुप शामिल होने की मांग कर रहे हैं. सबसे पहले जी-4 ग्रुप की बात करते हैं. इस ग्रुप में भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान शामिल हैं. ये देश स्थाई सदस्यता के लिए एक-दूसरे का समर्थन करते हैं. इस ग्रुप का मानना है कि सुरक्षा परिषद को अधिकत प्रभावी और तर्कसंगत बनाने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत है.
इस ग्रुप के अलावा एक ग्रुप एल-69 है. इसमें भारत, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के करीब 42 विकासशील देश शामिल हैं. इस ग्रुप ने यूएनएससी में फौरन सुधार की मांग की है. इसके अलावा अफ्रीकी समूह भी सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहे हैं. इस ग्रुप में 54 देश शामिल हैं. इस ग्रुप की मांग है कि अफ्रीका से कम से कम 2 देशों को वीटों की शक्तियों के साथ सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाया जाए.
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