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Emergency 1975: आपातकाल में पुलिस के डर से Karpoori Thakur और Ram Vilas Paswan को लगानी पड़ी थी दौड़, कार्यकर्ता के इशारे को गलत समझने से हो गया था खेल

Emergency in India: आपातकाल के दौरान बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था. इस गिरफ्तारी से बचने के लिए बिहार के नेता कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान नेपाल बॉर्डर पर रहने लगे. लेकिन इस दौरान उनके साथ एक ऐसा किस्सा हुआ था कि गिरप्तारी से बचने के लिए दोनों नेताओं को दौड़कर भागना पड़ा. हालांकि ये सबकुछ एक कार्यकर्ता के इशारे को गलत समझने की वजह से हुआ था.

आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान को दौड़ना पड़ा था आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान को दौड़ना पड़ा था

सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह ने अपनी किताब 'कितना राज कितना काज' में आपातकाल के दौरान के एक किस्से का जिक्र किया है. ये किस्सा कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान के पुलिस की गिरफ्तारी से बचने को लेकर है. एक कार्यकर्ता के गलत इशारे पर दोनों नेताओं को दौड़कर भागने पड़ा था. हालांकि जब बाद में कर्पूरी ठाकुर को पता चला कि कार्यकर्ता ने गलत इशारा दिया है तो उन्होंने उस कार्यकर्ता को खूब खरी-खोटी सुनाई.

क्या था पूरा किस्सा-
रामविलास पासवान ने कर्पूरी ठाकुर के साथ जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया था. उस दौरान लगे आपातकाल में सभी बड़े नेताओं को पुलिस पकड़ रही थी और जेल में डाल रही थी. इस गिरफ्तारी से बचने के लिए कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान ने एक तरीका निकाला. दोनों नेता आपातकाल के दौरान नेपाल में छिप गए. लेकिन इस दौरान कार्यकर्ताओं से बैठक भी करनी थी. इसलिए कर्पूरी ठाकुर ने एक तरीका निकाला. वो भारत-नेपाल बॉर्डर पर नदी पार करते और शाम को बैठक करते और जब उसके बाद फिर नेपाल लौट जाते.

पुलिस के आने की जानकारी देने के लिए टॉर्च का सहारा-
अगर इस बैठक के दौरान पुलिस आ गई तो क्या होगा? पुलिस ने बचने के लिए एक और तरीका निकाला गया. बैठक के आसपास ही कार्यकर्ता रहते थे और जब उनको शक होता था कि पुलिस आ रही है तो वो टॉर्च के इशारे से उनके आने की जानकारी बैठक में शामिल नेताओं को देते थे. ऐसा चलता रहा.

टॉर्च के इशारे के गलत समझ बैठे पासवान और ठाकुर-
भारत में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करना और उसके बाद नदी पार करके नेपाल चले जाने का सिलसिला चलता रहा. लेकिन एक बार एक बैठक में कार्यकर्ता के इशारे को समझने में गलती हुई तो रामविलास पासवान और कर्पूरी ठाकुर को दौड़कर भागना पड़ा. दरअसल एक बार बैठक चल ही रही थी कि एक कार्यकर्ता ने टॉर्च की रोशनी दिखाई. फिर क्या था. सभी नेता बैठकर छोड़कर दौड़ पड़े. किताब के मुताबिक कर्पूरी ठाकुर थककर इतना चूर हो गए कि उन्होंने कहा कि अब वह नहीं दौड़ सकते. फिर चाहे पुलिस ही क्यों ना गिरफ्तार कर ले.
जब अगले दिन कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान उस टॉर्च दिखाने वाले कार्यकर्ता से मिले तो उसने बताया कि उसने इशारा किया था कि पुलिस नहीं आ रही है. इससे कर्पूरी ठाकुर खूब नाराज हुए और उस कार्यकर्ता को खरी-खोटी सुनाई.

पासवान ने 17 बार देखी शोले फिल्म-
आपातकाल के दौरान रामविलास पासवान कुछ वक्त के लिए कोलकाता में भी छुपे हुए थे. इस दौरान उन्होंने 17 बार शोले फिल्म देखी. साल 1975 में रामविलास पासवान और आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को एक साथ पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जब गिरफ्तारी हुई तो सिद्दीकी ने खुद की पहचान ईसाई और पासवान को ब्राह्मण बताया. लेकिन एक पुलिसवाले पासवान को पहचान लिया और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. मीसा के तहत गिरफ्तार पासवान को एक साल की जेल की सजा हुई.

कर्पूरी ठाकुर से क्यों गुस्साए थे पासवान-
साल 1985 के विधानसभा चुनाव के बाद लालू प्रसाद समेत 18 यादव नेताओं ने डिप्टी स्पीकर के पद के लिए अनूप लाल मंडल के नाम की मुहिम चलाई. चौधरी चरण सिंह को इस विद्रोह की भनक लगी तो उन्होंने पासवान को पटना भेजा और कर्पूरी ठाकुर का मन की बात जानने की कोशिश की. पासवान से ठाकुर ने कहा कि अनूप लाल मंडल के पक्ष में हैं. लेकिन बाद में चरण सिंह ने पासवान को बताया कि कर्पूरी ठाकुर ने शिवानंद पासवान का नाम सुझाया था. किताब के मुताबिक पासवान ने कहा कि पहली बार मुझे कर्पूरी ठाकुर पर गुस्सा आया कि उन्होंने मुझसे झूठ क्यों कहा? इतना ही नहीं, बाद में पासवान को ये भी पता चला कि साल 1977 में जनता दल की सरकार में उनको केंद्रीय मंत्री बनाने के सिंह और राजनारायण के प्रस्ताव को कर्पूरी ठाकुर ने ठुकरा दिया था. इसके बाद पासवान ने कर्पूरी ठाकुर से दूरी बना ली.

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