भारत में धूमधाम से दीवाली का जश्न मनाया गया है. लेकिन इसी के साथ एक बार फिर से प्रदूषण और वायु गुणवत्ता पर बातचीत तेज हो गई है. कई शहरों में प्रदूषण खतरनाक लेवल तक पहुंच गया है. ऐसे में सभी के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) को समझना जरूरी हो गया है. AQI में जहां हरा रंग अच्छा संकेत देता है, वहीं लाल रंग खराब वायु गुणवत्ता को दिखाता है. लेकिन AQI असल में है क्या? और वायु प्रदूषण को कैसे मापा जाता है? धूल और मिट्टी के कण कैसे वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं? आइए जानते हैं.
AQI क्या है?
एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) एक तरह का स्केल है जो किसी विशेष क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता को मापने के लिए उपयोग किया जाता है. AQI का उद्देश्य यह बताना है कि हवा कितनी प्रदूषित है और यह लोगों के स्वास्थ्य पर कैसे असर डाल सकती है, खासकर उनके लिए जिन्हें सांस या दिल की बीमारी है. AQI में अलग अलग कलर कोड होते हैं, जैसे हरा (अच्छा) और लाल या बैंगनी (बहुत खराब), जो आम जनता को वायु गुणवत्ता के बारे में आसानी से समझने में मदद करते हैं. भारत सहित दुनिया भर की सरकारों और पर्यावरण एजेंसियों के पास AQI मॉनिटरिंग सिस्टम है, जो हवा की स्थितियों को मापने, रिपोर्ट करने और जनता को सूचित करने के लिए बनाए गए हैं.
AQI की कैटेगरी और उनका मतलब
AQI रीडिंग आमतौर पर छह कैटेगरी में आती हैं, ये सभी एक कलर कोड से जुड़ी होती है:
1. हरा (0-50): ये रंग अच्छा माना जाता है. इसका मतलब है कि हवा की गुणवत्ता संतोषजनक है, और स्वास्थ्य पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं है.
2. पीला (51-100): इसका मतलब होता है कि हवा की गुणवत्ता मॉडरेट है. हालांकि, कुछ संवेदनशील व्यक्तियों के लिए यह चिंताओं का कारण हो सकता है.
3. नारंगी (101-150): इस रंग का मतलब संवेदनशील समूहों के लिए अस्वस्थ होता है. सांस से जुड़ी समस्याओं वाले लोगों, बच्चों और बुजुर्गों को स्वास्थ्य पर प्रभाव महसूस हो सकता है, जबकि सामान्य जनसंख्या पर कोई असर नहीं होता है.
4. लाल (151-200): ये रंग खराब गुणवत्ता को दिखाता है. ऐसी हवा में सभी को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, और सेन्सिटिव लोगों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
5. बैंगनी (201-300): ये रंग बहुत अस्वस्थ हवा को दिखाता है. इसमें हेल्थ अलर्टस जारी होते हैं.
6. भूरा (301-500): ये हवा की खतरनाक गुणवत्ता को दिखाता है. ये एक इमरजेंसी स्थिति होती है. ज्यादातर लोगों के लिए ये खतरनाक साबित हो सकती है.
सीधे शब्दों में कहें तो, AQI जितना ज्यादा होता है, हवा की गुणवत्ता उतनी ही खराब होती है और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ जाती हैं. ये कलर कोडित सिस्टम इसलिए बनाया गया है ताकि आम जनता आसानी से हवा की गुणवत्ता के बारे में समझ सके.
AQI में क्या मापा जाता है?
AQI किसी एक चीज को नहीं दिखाता है. हमारे वातावरण में सामान्य रूप से पाए जाने वाले प्रदूषकों का एक सेट होता है. ये तब और बढ़ जाता है जब दिवाली या फसल जलाने जैसी घटनाएं होती हैं. इसमें कई सारी चीजें होती हैं. जैसे:
-पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5): PM2.5 कण बहुत छोटे होते हैं (लगभग 2.5 माइक्रोन डायमीटर में) और ये फेफड़ों में गहराई तक जा सकते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. जबकि PM10 कण थोड़े बड़े होते हैं (10 माइक्रोन तक) और ये अक्सर धूल और कंस्ट्रक्शन के काम से होते हैं. PM10 और PM2.5 दोनों खतरनाक हैं क्योंकि ये हमारे सांस लेने वाली नली में चले जाते हैं और कई सारी बीमारियों का कारण बनते हैं.
-ओजोन (O₃): ग्राउंड-लेवल ओजोन तब बनता है जब वाहनों, फैक्ट्रियों और दूसरे सोर्स से जो प्रदूषण पैदा होता है वो धूप में रिएक्ट करता है. ऊपरी वातावरण में ओजोन फायदेमंद होता है (यह हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से हमें बचाता है), लेकिन जमीन के लेवल पर होने पर ये सांस से जुड़ी कई समस्याओं का कारण बन सकता है और अस्थमा को बढ़ा सकता है.
-नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂): NO₂ मुख्यतः वाहन, पावर प्लांट, फैक्ट्रियों में जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा होता है. यह हमारे फेफड़ों के काम करने की क्षमता को खराब कर सकता है.
-सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): SO₂ मुख्यत कोयला और तेल के जलने से होता है. यह अस्थमा जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है.
AQI कैसे निकाला जाता है?
हमारी हवा में ये सब गैसें कितनी हैं और किस मात्रा में हैं, इसके हिसाब से AQI की गणना की जाती है. प्रत्येक प्रदूषक की एक लिमिट सेट की गई है. इन सभी लिमिट को लोगोंं की हेल्थ के हिसाब से देखा जाता है. उदाहरण से समझें, तो अगर सभी प्रदूषकों में PM2.5 की कंसंट्रेशन सबसे ज्यादा है, तो यह AQI लेवल को कंट्रोल करेगा. अगर NO₂ का लेवल ज्यादा है, तो यह AQI के लेवल को निर्धारित कर सकता है.
क्या धूल और मिट्टी से बढ़ता है प्रदूषण?
जी हां, धूल और मिट्टी के कण, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, हवा में प्रदूषण के प्रमुख घटक हैं. धूल PM10 लेवल को बढ़ा सकती है, जिससे सांस और आंखों में समस्याएं होती हैं. कंस्ट्रक्शन से उड़ने वाली धूल हवा में फैल जाती है और हवा की गुणवत्ता को और खराब कर सकती है. चूंकि PM10 AQI माप का हिस्सा है, धूल और मिट्टी के कण AQI रीडिंग को सीधे प्रभावित करते हैं.
त्योहारों के सीजन में क्यों बढ़ता है AQI?
दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान ये AQI बढ़ जाता है, इसके कई कारण हो सकते हैं:
1. पटाखे: पटाखे जलाने से भारी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक जैसे PM2.5, PM10 और अलग-अलग गैसें (SO₂ और CO) निकलती हैं. इन पटाखों से निकलने वाला धुआं और कण AQI को तेजी से बढ़ा देते हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में यह खतरनाक लेवल तक पहुंच जाता है.
2. वाहन: त्योहारों में लोग ज्यादा यात्रा करते हैं, जिससे व्हीकल एमिशन बढ़ता है, जो NO₂, CO और दूसरे प्रदूषकों में योगदान करता है.
3. फसल जलाना: उत्तर भारत में, खासकर पंजाब और हरियाणा में, फसल कटाई के बाद पराली जलाना आम बात है. इन जलती हुई फसलों का धुआं शहरों में आकर प्रदूषण स्तर को बढ़ाता है.
प्रदूषित हवा हमारे स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, और AQI हमें इस खतरे को समझने में मदद करता है. हवा की गुणवत्ता पर नजर रखना, घर के अंदर एयर फिल्टर का उपयोग करना और बाहर की एक्टिविटी को सीमित करने से हम खुद को सुरक्षित रख सकते हैं.