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Explainer: प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर आया सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, जानें क्या था पूरा मामला

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया था कि यह सच है कि आजादी के करीब 75 वर्ष बाद भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को उस स्तर पर नहीं लाया जा सका है, जहां अगड़ी जातियों के लोग हैं. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उन कदमों की जानकारी मांगी थी, जो केंद्रीय नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का आकलन करने के लिए उठाए गए.

Supreme Court Supreme Court
हाइलाइट्स
  • प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए जारी की गई थी गाइडलाइंस 

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगे आंकड़े 

  • 19 मंत्रालयों में अनुसूचित जनजातियों की कुल संख्या मात्र 6.18 प्रतिशत

  • सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल 

सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इसके लिए कोई मापदंड तय नहीं कर सकती है और अपने पूर्व के फैसलों के मानकों में बदलाव नहीं कर सकती है. जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वे एम नागराज केस में संविधान बेंच के फैसले में बदलाव नहीं कर सकते हैं. 26 अक्टूबर 2021 को तीन जजों की पीठ ने मामले में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों के लिए उपस्थित अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए जारी की गई थी गाइडलाइंस 

सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले पर केंद्र और राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की हैं और ये याचिकाएं दो फैसलों से जुड़ी हैं. इन फैसलों में सरकारों को सरकारी नौकिरयों में प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए गाइडलाइंस जारी की गई थी. लेकिन इन्हें लागू करने में केंद्र और राज्य सरकारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को कहा था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन के मामले में अभी कुछ साफ नहीं है, जिस कारण कई भर्तियां रुकी हुई हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगे आंकड़े 

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया था कि यह सच है कि आजादी के करीब 75 वर्ष बाद भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को उस स्तर पर नहीं लाया जा सका है, जहां अगड़ी जातियों के लोग हैं. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उन कदमों की जानकारी मांगी थी, जो केंद्रीय नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का आकलन करने के लिए उठाए गए. पीठ ने सरकार से कहा कि एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए साल 2006 के नागराज मामले में संविधान पीठ के फैसले का पालन करने के लिए की गई कवायद की जानकारी उपलब्ध कराए.

19 मंत्रालयों में अनुसूचित जनजातियों की कुल संख्या मात्र 6.18 प्रतिशत

इसके बाद अदालत के सामने केंद्र ने आंकड़े पेश किए जिसके अनुसार सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या कम है. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ACG) बलबीर सिंह ने कोर्ट में  बताया कि 19 मंत्रालयों में ग्रुप ए, बी और सी श्रेणी की नौकरियों में अनुसूचित जातियों के कर्मचारियों की कुल संख्या 15.34 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जनजातियों की कुल संख्या 6.18 प्रतिशत है.

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल 

इसके आगे ACG सिंह ने कहा कि सरकार की तरफ से जमा किया गया डेटा नौकरियों में आरक्षित समुदायों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व से जुड़े सवालों का जवाब देता है. उन्होंने ये भी कहा कि अदालत को केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब केंद्र के फैसले में कोई मनमानी दिखाई दे. इसके आगे अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. वहीं, कोर्ट ने आंकड़ों पर सवाल उठाए और इसके आधार पर दी गई सरकार की दलील पर विरोध जताया.