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Explainer: लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाना क्यों जरूरी है, क्या होगा फायदा, जानिए...

इस फैसले के पीछे एक बड़ी वजह लड़का-लड़की के भेद को कम करना भी है. इस फैसले के बाद लड़का-लड़की दोनों के लिए शादी की उम्र बराबर हो गई है. 1929 में शारदा एक्ट में पहली बार लड़कियों की शादी की मिनिमम एज 14 और लड़कों के लिए 18 साल तय की गई थी. उसके बाद से दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र में 3-4 साल का अंतर बना रहा.

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हाइलाइट्स
  • लड़का-लड़की के बीच अंतर होगा कम 

  • रूढ़िवादी सोच से मिलेगा छुटकारा

  • मैटर्नल मॉर्टेलिटी रेट और इंफैन्ट मॉर्टेलिटी रेट में आएगी गिरावट 

  • स्कूल ड्रॉप आउट रेट में आएगी कमी

  • कई लोग इसका कर रहे विरोध 

महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र बढ़ाने का कैबिनेट का फैसला जया जेटली के नेतृत्व वाले पैनल की सिफारिश पर आधार पर लिया गया है. इस टास्क फोर्स का गठन डब्ल्यूसीडी मंत्रालय द्वारा विवाह की उम्र और हेल्थ इंडेक्स जैसे मैटर्नल मॉर्टेलिटी रेट, इंफैन्ट मॉर्टेलिटी रेट और माताओं और बच्चों के बीच पोषण स्तर के साथ इसके संबंध की फिर से जांच करने के लिए किया गया था. जया ने कहा है कि यह सिफारिश जनसंख्या नियंत्रण (भारत की कुल प्रजनन दर पहले से ही घट रही है) के तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर आधारित है. आइए जानते हैं कि सरकार के इस फैसले के क्या मायने हैं.

लड़का-लड़की के बीच अंतर होगा कम 

इस फैसले के पीछे एक बड़ी वजह लड़का-लड़की के भेद को कम करना भी है. इस फैसले के बाद लड़का-लड़की दोनों के लिए शादी की उम्र बराबर हो गई है. 1929 में शारदा एक्ट में पहली बार लड़कियों की शादी की मिनिमम एज 14 और लड़कों के लिए 18 साल तय की गई थी. उसके बाद से दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र में 3-4 साल का अंतर बना रहा. ऐसा पहली बार हुआ है कि दोनों के लिए शादी की न्यूनतम आयु को एक समान रखा गया है.

रूढ़िवादी सोच से मिलेगा छुटकारा 

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इकोनॉमिस्ट सौम्यकांति घोष का कहना है कि शादी के लिए कानूनी उम्र बढ़ाना सामजिक रूप से भी जरूरी है क्योंकि इससे हमें इस रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलने में मदद मिलेगी कि महिलाएं समान उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं और इसलिए उन्हें जल्दी शादी करने की अनुमति दी जा सकती है. इससे उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलेगा और वह आर्थिक तौर पर इंडिपेंडेंट बनेंगी. 

मैटर्नल मॉर्टेलिटी रेट और इंफैन्ट मॉर्टेलिटी रेट में आएगी गिरावट 

इस फैसले का सबसे बड़ा फायदा यह बताया जा रहा है कि इससे बाल विवाह में कमी आएगी. अगर शादी 21 के बाद होगी तो लड़कियां इस उम्र के बाद ही प्रेग्नेंट होंगी. टीनएज प्रेगन्नेंसी में बहुत सारे कॉम्प्लीकेशंस होते हैं और मां और बच्चे, दोनों के जीवन को खतरा होता है. इसके साथ ही  एनीमिया और एक्सेसिव ब्लीडिंग के भी चांसेस रहते हैं. कैबिनेट के इस निर्णय के बाद मैटर्नल मॉर्टेलिटी रेट और इंफैन्ट मॉर्टेलिटी रेट में भी गिरावट देखने को मिलेगी.

स्कूल ड्रॉप आउट रेट में आएगी कमी

इस फैसले के बाद लड़कियों के स्कूल ड्रॉप आउट रेट में भी गिरावट आएगी क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अधिकतर लड़कियों को शादी के लिए कम उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. आंकड़ों के मुताबिक स्कूल ड्रॉपआउट्स में 9वीं और 10वीं क्लास की लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा होती है. सरकार के अनुसार इसका मुख्य कारण उनकी शादी ही होती है.

कई लोग इसका कर रहे विरोध 

वहीं समाज का एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले का विरोध कर रहा है. उनके अनुसार कम उम्र में होने वाले 70% विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वंचित समुदायों में होते हैं, और उनका मानना है कि यह कानून इन विवाहों को रोकने के बजाय इन समुदायों को दोषी बनाकर कटघरे में खड़ा कर देगा. उनके अनुसार इस तरह की  शादियां अधिकतर लड़कियों के उच्च शिक्षा तक पहुंच नहीं होने के कारण होती हैं.अगर शादी की उम्र बढ़ाने की बजाय उनकी शिक्षा तक पहुंच बढ़ाई जाए तो यह लड़कियों के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा.