आपसी सुलह को बढ़ावा देने और विवाह और पारिवारिक मामलों से संबंधित विवादों के जल्दी निपटारे के लिए कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को लोकसभा में परिवार न्यायालय संशोधन विधेयक पेश किया. उन्होंने बिल को पेश करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में मौजूदा पारिवारिक अदालतों को वैधानिक कवर दिया जाए. बता दें, इन दोनों राज्यों में फैमिली कोर्ट मौजूद है.
हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में पहले से ही हैं फैमिली कोर्ट
गौरतलब है कि संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो गया है और इस विधेयक का उद्देश्य विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में पहले से ही जो फैमिली कोर्ट हैं उन्हें वैधानिक कवर देना है. यूं तो कानून और न्याय मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 715 फैमिली कोर्ट काम कर रहे हैं. लेकिन साल 2008 में, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड दोनों ने अपने-अपने राज्यों में फैमिली कोर्ट की स्थापना की थी.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, प्रक्रिया के अनुसार, फैमिली कोर्ट की स्थापना और उनके कामकाज संबंधित हाई कोर्ट के परामर्श से राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती है. लेकिन इन दोनों राज्यों ने अपने दम पर अदालतों की स्थापना की है और अपनी स्थापना के बाद से बिना किसी कानूनी अधिकार के काम कर रहे हैं.
अब दोनों राज्यों- नागालैंड और हिमाचल प्रदेश में जो फैमिली कोर्ट काम कर रहे हैं उनके अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
बताते चलें कि ये यह मामला पिछले साल ही हाईलाइट हुआ था जब हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में एक याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार ने परिवार न्यायालय अधिनियम को हिमाचल प्रदेश तक विस्तारित करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की थी और राज्य सरकार ने ऐसी अदालतें स्थापित करने के निर्देश बिना किसी कानूनी अधिकार के ले लिए थे.
बताते चलें कि इसी तरह का मुद्दा नागालैंड फैमिली कोर्ट का भी है. हिमाचल प्रदेश में ऐसे तीन फैमिली कोर्ट हैं जबकि नागालैंड में दो कोर्ट हैं.
पिछले साल, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने उस मामले में केंद्र को पक्षकार बनाया था जिसमें पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की स्थापना को चुनौती दी गई थी. और इसके बाद केंद्र ने कदम उठाते हुए दोनों राज्यों में मौजूद फैमिली कोर्ट के समर्थन के लिए इस बिल को पेश किया.
(कनु सारदा की रिपोर्ट)