राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बॉर्डर (Delhi border) पर एक बार फिर पंजाब (Punjab), हरियाणा (Haryana) सहित अन्य राज्यों के सैकड़ों किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. ये किसान दिल्ली कूच (Dilli Chalo March) करने को लेकर अड़े हुए हैं. प्रदर्शनकारी किसानों और पुलिस के बीच बॉर्डर पर झड़प देखने को भी मिल रही है. किसान साल 2020 में भी इसी तरह का आंदोलन कर चुके हैं. किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने, लखीमपुर खीरी हादसे पर सख्त कार्रवाई करने, कर्ज माफी के मुद्दे समेत कई मांगों को लेकर सड़क पर उतरे हैं.
क्या है एमएसपी
एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य, यह वह राशि होती है, जिस पर सरकार और उनकी एजेंसियां किसानों से खाद्यान्न खरीदती हैं. सरकार किसानों से एमएसपी पर अनाज की खरीदारी कर विभिन्न योजनाओं के तहत जनता तक पहुंचाती है. एमएसपी तय होने से किसान उम्मीद करते हैं कि इससे कम बाजार में भी फसल का दाम नहीं मिलेगा.
एमएसपी तय होने से किसान बिचौलिए के चंगुल में आने से बचते हैं. फसल की सही कीमत मिल जाती है. पिछले पांच दशकों ने सरकार एमएसपी तय कर रही है. यदि कभी फसल का भाव बाजार में किसी कारण नीचे भी आ जाता है तो केंद्र सरकार उस फसल को एमएसपी पर ही खरीदती है. इससे किसानों को नुकसान नहीं होता है.
कैसे की जाती है तय
कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CACP) की सिफारिश पर हर साल MSP तय की जाती है. इसे तय करते समय फसलों की लागत और फसलों की पैदावार को ध्यान में रखा जाता है. सीएसीपी कीमत तय करके सरकार के पास भेजती है. इसके बाद सरकार इन सुझावों पर चर्चा के बाद एमएसपी की घोषणा करती है. केंद्र सरकार ने 1966-67 में सबसे पहले गेंहू के लिए एमएसपी का ऐलान किया था.
हर फसल की नहीं तय की जाती एमएसपी
हर साल फसलों की बुआई से फहले सरकार एमएसपी तय करती है. हालांकि सभी फसलों पर एमएसपी तय नहीं होती है. खरीफ और रबी सीजन से पहले 24 फसलों के लिए एमएसपी तय की जाती है. 14 खरीफ फसलों धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, मूंग, अरहर, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, सोयाबीन, नाइजरसीड (रामतिल) और कपास के लिए एमएसपी तय की जाती है. 10 रबी फसलों जैसे गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसो, कुसुम, टोरिया, जूट आदि के लिए एमएसपी दी जाती है. अधिकांश किसान एमएसपी देखकर ही फसलों की बुआई का फैसला करते हैं.
एमएसपी को लेकर कानून बनाने की कर रहे मांग
एमएसपी एक पॉलिसी है, यह कानून नहीं. इसके लिए किसान कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं. अभी अन्नदाताओं को डर सता रहा है कि सरकार कभी भी एमएसपी का सिस्टम खत्म कर सकती है क्योंकि ये सिर्फ एक पॉलिसी है. हालांकि पीएम मोदी (PM Modi) किसानों से कह चुके हैं कि सरकार एमएसपी सिस्टम को खत्म नहीं करेगी.
इसके तहत फसलों की खरीदारी जारी रहेगी. किसान इतने से संतुष्ट नहीं हैं. वे चाहते हैं सरकार एमएसपी पर एक कानून बनाए ताकि उन्हें गारंटी मिल जाए. वे चाहते हैं कि एमएसपी से कम कीमत पर फसल खरीद को अपराध घोषित किया जाए. इतना ही नहीं अन्य फसलें भी एमएसपी के दायरे में लाई जाएं.
एमएसपी की गारंटी देने में क्या आ रही परेशानी
फसल (Crop) की अच्छी क्वालिटी होने पर ही एमएसपी के तहत अभी खरीद की जाती है. यदि एमएसपी को लेकर कोई कानून बन गया तो अच्छी-खराब सभी फसलों की खरीदारी सरकार को करनी पड़ेगी. यदि किसी किसान की फसल सरकार तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा. हमारे देश में उपजाई जाने वाली सभी फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा.
क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट
एमएस स्वामीनाथन आयोग की एमएसपी पर की गई सिफारिशों को लागू करने की मांग किसान कर रहे हैं. इस आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें उनकी फसल लागत का 50 फीसदी ज्यादा देने की सिफारिश सरकार से की थी. इसे C2+50% फॉर्मूला कहा जाता है. विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान इसी फार्मूले के आधार पर एमएसपी गारंटी कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं.