70 एकड़ में फैली गाज़ीपुर लैंडफिल साइट की शुरुआत साल 1984 में शुरू हुई थी. इसकी ऊंचाई कुतुब मीनार जितनी करीब 65 मीटर हो चुकी थी हालांकि अब ये घटकर 50 मीटर ऊंची है. साल 2024 में इसे खत्म करने का लक्ष्य था लेकिन अब इसे साल 2026 के लिए बढ़ा दिया गया है.
ये है वजह है जो डेडलाइन बढ़ानी पड़ी
साल 2019 गाजीपुर लैंडफिल साइट पर जमा कूड़े को हटाने का काम शुरू हुआ, तब 140 मेट्रिक टन कूड़ा वहां मौजूद था. दिल्ली एलजी की निगरानी में तय किया गया कि साल 2024 तक लैंडफिल साइट को खत्म करके यहां पर पार्क विकसित किया जाएगा पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं हो पाया.
दिल्ली नगर निगम के आंकड़े के मुताबिक 5 साल में करीब 46 मेट्रिक टन कूड़े का ही निपटारा हो पाया है. यही वजह है कि कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई कम हुई है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हो पाई है. अभी तक इस पर 84 मेट्रिक टन कूड़ा बचा है.
निगम के मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट पर अभी एक ही एजेंसी कूड़ा निस्तारण का काम कर रही है. कूड़ा निपटारा तेजी से करने के साथ ही दूसरी एजेंसी को काम पर लगाने की योजना प्रशासनिक व्यवधान के चलते परवान नहीं चढ़ पा रही है क्योंकि निगम में स्थाई समिति का गठन नहीं हुआ है.
इस वजह से नहीं हो पाया निगम समिति का गठन
अभी तक कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के लिए 1 ही एजेंसी काम कर रही है क्योंकि दूसरी एजेंसी के चयन की प्रक्रिया टेंडर की वजह से नहीं हो पाई है. और टेंडर इसलिए नहीं हो पाया है क्योंकि निगम की सबसे पावरफुल कमिटी स्टैंडिंग का गठन ही नहीं हो पाया है. दिल्ली नगर निगम एक्ट के मुताबिक कोई भी टेंडर सबसे पहले स्टैंडिंग कमिटी से अप्रूवल के बाद ही लाया जा सकेगा. यही वो वजह है जिससे गाजीपुर में मौजूद कूड़े का पहाड़ पूरी तरह से खत्म नहीं हो पा रहा. दिल्ली नगर निगम के पब्लिक रिलेशन अफसर अमित कुमार का कहना है कि गाजीपुर लैंडफिल साइट का 30 लाख टन कूड़े का निस्तारण करने के लिए दूसरी एजेंसी का चयन होना था जो स्थाई समिति के गठन न होने के चलते अटका है. लिहाजा कूड़ा निस्तारण की गति अभी तक धीमी है.
अर्बन एक्सपर्ट जगदीश ममगाई का कहना है कि आग लगने से गाजीपुर ही नहीं बल्कि मयूर विहार फेज 3 तक का पूरा इलाका प्रदूषित हो जाता है. कई रिसर्च में भूमिगत जल भी दूषित होने की बात सामने आई है. लैंडफिल साइट के करीब 7 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले बुरी तरह से प्रभावित होते हैं.
राम किंकर सिंह की रिपोर्ट