सैकड़ों साल पहले, प्रसिद्ध अंग्रेजी नाटककार विलियम शेक्सपियर ने लिखा था, "नाम में क्या रखा है?" जिसे हम गुलाब कहते हैं, किसी भी दूसरे नाम से उसकी सुगंध उतनी ही अच्छी होगी.” ठीक ऐसे ही भारत और इंडिया नाम को लेकर लगता बहस चल रही है. दरअसल, संसद के आगामी 'विशेष सत्र' में देश का नाम बदलने का प्रस्ताव रखे जाने की अफवाह उड़ाई जा रही है, हालांकि, इसे लेकर आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है. लेकिन संविधान निर्माता इस पर पहले ही चर्चा कर चुके हैं.
मूल मसौदे में नहीं था 'भारत' का उल्लेख
संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक,यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं कि मूल मसौदे में 'भारत' नाम का कोई उल्लेख नहीं था. संविधान का मसौदा डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था. 4 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में इसे प्रस्तुत किया गया था. लगभग एक साल बाद, 17 सितंबर, 1949 को, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें पहले उप-खंड में 'भारत' नाम सहित संशोधन, इसके अलावा राज्यों से संबंधित दूसरे मामूली बदलाव का सुझाव दिया गया था.
क्या कहा था नाम को लेकर?
प्रारंभिक प्रावधान पर संविधान सभा में विचार-विमर्श दो मुख्य मुद्दों पर केंद्रित था. जिसमें से एक मुद्दा 'इंडिया' और 'भारत' के बीच संबंध का था. 18 सितंबर, 1949 को - नव स्वतंत्र देश को एक के बजाय दो नाम देने के प्रस्ताव के बारे में बात की गई. अन्य विधानसभा सदस्यों द्वारा कई संशोधनों का सुझाव दिया गया, हालांकि किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया. डॉ अंबेडकर के बाद, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक नेता एचवी कामथ ने आयरिश संविधान से प्रेरणा लेते हुए, पहले उप-खंड के प्रासंगिक हिस्से को 'भारत, या अंग्रेजी भाषा में, इंडिया' से बदलने का प्रस्ताव करते हुए पहला संशोधन पेश किया.
उन्होंने इसे लेकर कहा, “आयरिश फ्री स्टेट आधुनिक दुनिया के उन कुछ देशों में से एक था जिसने स्वतंत्रता प्राप्त करने पर अपना नाम बदल लिया; और इनके संविधान का चौथा अनुच्छेद भूमि के नाम में परिवर्तन के बारे में बात करता है. आयरिश मुक्त राज्य के संविधान का वह अनुच्छेद इस प्रकार है: 'राज्य का नाम आयर है, या, अंग्रेजी भाषा में, आयरलैंड.' मुझे लगता है कि यह एक अधिक सुखद अभिव्यक्ति होगी कि 'भारत, या, अंग्रेजी भाषा में इंडिया'. मैं विशेष रूप से अंग्रेजी भाषा कहता हूं. जर्मन शब्द 'इंडियन' है और यूरोप के कई हिस्सों में, देश को अभी भी पुराने दिनों में 'हिंदुस्तान' के रूप में जाना जाता है और इस देश के सभी मूल निवासियों को हिंदू कहा जाता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. यह यूरोप के कई हिस्सों में काफी आम है. यह सिंधु नदी से प्राप्त प्राचीन नाम हिंदू से आया होगा.”
कुछ लोगों ने किया था ‘इंडिया’ नाम का विरोध
बता दें, यह बहस 17 नवंबर, 1948 को शुरू हुई, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि "भारत" या "इंडिया" को पहले आना चाहिए या नहीं. हालांकि, गोविंद बल्लभ पंत ने नाम पर चर्चा को बाद की तारीख के लिए स्थगित करने का सुझाव दिया था. लेकिन 17 सितंबर, 1949 को डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने अनुच्छेद 1 का अंतिम संस्करण प्रस्तुत किया, जिसमें "भारत" और "इंडिया" दोनों शामिल थे. कई सदस्यों ने इसे औपनिवेशिक शासन की याद दिलाने वाला मानते हुए "इंडिया" के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई थी. इसको लेकर जबलपुर के सेठ गोविंद दास ने "भारत" को पहले स्थान पर रखना पसंद किया, और कई सदस्य इस बात पर जोर देना चाहते थे कि "इंडिया" "भारत" का अंग्रेजी भाषा का विकल्प है.
पुराणों की भी की गई बात
इतना ही नहीं कुछ सदस्यों ने विष्णु पुराण और ब्रह्म पुराण जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों का उल्लेख किया, जिनमें "भारत" का उल्लेख किया गया है. उन्होंने सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग का भी उल्लेख किया, जिन्होंने देश को भारत कहा था.
संयुक्त प्रांत के पहाड़ी जिलों का प्रतिनिधित्व करते हुए हरगोविंद पंत ने स्पष्ट किया कि उत्तरी भारत के लोग "भारतवर्ष" को प्राथमिकता देते हैं और कुछ नहीं. उन्होंने विदेशी शासकों द्वारा थोपे गए नाम "इंडिया" की आलोचना की थी.
क्या कहा था डॉ आंबेडकर ने?
हालांकि, डॉ. अम्बेडकर ने बताया कि सदस्यों के बीच "भारत" नाम का कोई विरोध नहीं था. वे सभी केवल इस बात पर जोर दे रहे थे कि भारत या इंडिया का क्रम क्या होगा यानी पहले क्या लिखा जाना चाहिए और बाद में क्या. व्यापक चर्चा के बावजूद, सभा ने आखिर में डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रस्तावित शब्द को अपनाया, जिसमें "भारत" के बाद "इंडिया" था.