scorecardresearch

कहानी उस शख्स की जिसने तीन दशक पहले शुरू की थी फूलों की खेती, आज पूरे हिमाचल को हो रहा 150 करोड़ का मुनाफा

पटियाला महाराज के महल में जिन जिन फूलों की डंडियों को बेकार और खराब मानकर बाहर फेंक दिया जाता था, आत्म स्वरूप ने उसी से कलम लगाकर 1990 - 91 में फूलों की खेती करना शुरू किया था.

तीन दशक पहले शुरू की थी फूलों की खेती तीन दशक पहले शुरू की थी फूलों की खेती
हाइलाइट्स
  • तीन दशक पहले शुरू की थी फूलों की खेती

  • गांव की 85 फीसदी जमीन पर होती है फूलों की खेती

बीते कुछ सालों में लोगों ने प्रकृति का ध्यान रखना छोड़ दिया है. लोग भूल चुके हैं कि धरती को बचाने के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ काफी महंगी पड़ सकती है. लेकिन हिमाचल प्रदेश में एक ऐसे किसान हैं, जिन्होंने जिंदगी भर केवल प्रकृति के बारे में ही सोचा है. बर्फ और हरे भरे देवदार के पेड़ों से घिरे विश्व विख्यात पर्यटन स्थल चायल के एक छोटे से गांव 'महोग' के एक किसान ने अपने प्रयास और नए प्रयोग से अपने क्षेत्र और प्रदेश में फूलों की खेती की नई इबारत लिखी. 67 वर्ष के आत्म स्वरूप ने तीन दशक पहले एक प्रयोग के तौर पर फूलों की खेती शुरू की थी. 

हिमाचल में है 150 करोड़ की खेती का कारोबार
आत्म स्वरूप के कड़े परिश्रम और फूलों में महारत के चलते उन्हें आज हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती का जनक कहा जाता है. उनके प्रयास के बाद ही हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती करने का सिलसिला शुरू हुआ और आज हिमाचल में 150 करोड़ रूपये के करीब फूलों की खेती का कारोबार है. आइए आपको इस किसान की कहानी बताते हैं, जिनके प्रयासों से ये सब मुमकिन हो पाया है.

तीन दशक पहले शुरू की थी फूलों की खेती
बात है 1989 की, आत्म स्वरुप की उम्र उस वक़्त लगभग 35 साल के आस पास थी. पूरा गांव और आस पास के गांव में वही रिवायती यानी की ट्रेडिशनल फसल उगाई जाती थी, जो पहले उनके माता पिता उगाया करते थे. टमाटर, आलू , शिमला मिर्च वगैरह लेकिन उस समय पास के ही गांव के एक व्यक्ति ने आत्म स्वरूप को फूलों की खेती करने की राय दी और कहा की फूलों की खेती भी होती है और फूलों को बेचा भी जाता है. आत्म स्वरुप ने उस समय पूछा की फूलों के बीज और खेती कैसे करनी है. 

कुछ ऐसे शुरू हुई फूलों की खेती
पटियाला महाराजा के महल में जिन फूलों को उगाया जाता है और माली जिन फूलों की डंडियों को बेकार और खराब मानकर बाहर फेंक देता था. उसी से कलम लगाकर 1990 - 91 में फूलों की खेती करना शुरू किया गया. पहले ही वर्ष लगभग 35 हज़ार की आमदनी हुई, लेकिन फूलों को चायल से कैसे राजधानी दिल्ली पहुँचाना है ये बड़ी चुनौती थी. धीरे धीरे फूलों की फसल को पहले चायल से बस के ज़रिये कंडाघाट पहुँचाया जाता था. उसके बाद बस से कालका रेलवे स्टेशन और फिर दिल्ली को जाने वाली ट्रेन में उसे दिल्ली तक पहुँचाया जाता था. धीरे धीरे फूलों की क़्वालिटी देखकर फूलों को खरीदने वालों की दिलचस्पी बढ़ने लगी. दिल्ली के एक ढेकेदार ने साल का ठेका किया और एक छोटे से खेत में फूलो का ठेका 90 हज़ार में किया. जिसके बाद आत्म स्वरुप को समझ आ गया की इसमें मुनाफ़ा है और फिर इन तीनों भाइयों ने मिलकर फूलों की खेती करने का फैसला किया.

गांव की 85 फीसदी जमीन पर होती है फूलों की खेती
आत्म स्वरूप ने बताया की महोग गांव में प्राकृतिक तौर पर फूलों के खेती के लिए पर्याप्त वातावरण है. जिसकी वजह से यहां पर फूलों के बढ़िया और बेहतरहीन खेती होती है. यहां पर कारनेशन, लिलियम, गुलदावरी, गिप्सोफिला, लिमोनियम, गलादालुस जैसे फूलों की खेती की जाती है. इस गांव की बात की जाए तो लगभग 85 फीसदी उपजाऊ जमीन पर सिर्फ फूलों की खेती ही की जाती है.

देश-विदेश से आते हैं शोधकर्ता
इन फूलों की खेती के लिए शोधकर्ता न सिर्फ भारत के अलग-अलग राज्य से आए हैं. बल्कि विदेश से भी शोधकर्ता इस जगह की आबोहवा पर रिसर्च करने के लिए पहुंचे है.  महोग गांव समेत अगर आस पास के पुरे दो दर्ज़न से ज़यादा गावों की बात की जाए तो लगभग 45 करोड़ का कारोबार इस इलाके से फूलों की खेती से होता है. जो सिलसिला इस गांव से शुरू हुआ था अब पूरे हिमाचल में लगभग 850 हेक्टेयर भूमि में सिर्फ फूलों की खेती होती है. फूलों की खेती में मुनाफा देख आज कल के युवा जो पढाई करके बाहर नौकरी के लिए मेट्रो सिटीज में जाते थे, वो फिर वापिस अपने गांव लौटकर अपने माता पिता की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे है.