scorecardresearch

Revised Criminal Reform Bills: 3 नए क्रिमिनल रिफॉर्म बिल में क्या है नया, पुराने नियमों में क्या-क्या हुआ है बदलाव, जानिए

केंद्र सरकार ने देश में आपराधिक सुधार के लिए लोकसभा में 3 नए क्रिमिनल रिफॉर्म बिल पेश किया. इससे पहले भी सुधार के लिए अगस्त में 3 बिल पेश किए गए थे. जिसे स्थाई समिति के पास भेज दिया गया था. समिति ने कई महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा. उसके बाद केंद्र सरकार ने एक बार फिर रिफॉर्म बिल पेश किया है. नए बिल में कई बदलाव किए गए हैं.

Parliament Parliament

देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के विंटर सेशन में लोकसभा में 3 नए क्रिमिनल बिल पेश किए. इसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 और भारतीय साक्ष्य बिल (BSB) 2023 शामिल हैं. गृह मंत्री ने कहा कि संसदीय पैनल ने विधेयकों में सुधार की सिफारिश की थी. सरकार ने संशोधन लाने की बजाय बदलावों को शामिल करते हुए नए विधेयक लाने का फैसला किया.

11 अगस्त को सरकार ने लोकसभा में 3 क्रिमिनल बिल पेश किये थे. जिसे स्थाई कमेटी को भेज दिया गया था. बीजेपी सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने विधेयकों में कई महत्वपूर्ण बदलान का प्रस्ताव दिया. इसके बाद सरकार ने नए क्रिमिनल बिल पेश किए हैं. चलिए आपको बताते हैं कि कमेटी ने क्या सुझाव दिया था और इसमें क्या बदलाव किया गया है.

हथकड़ी के इस्तेमाल पर बदलाव-
गंभीर अपराधों के आरोपी को भागने से रोकने और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के क्लॉज 43(3) में हथकड़ी के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है. संसदीय स्थायी समिति ने इस नियम का स्वागत किया. हालांकि पैनल ने सुझाव दिया कि इसे बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए. इसको 'आर्थिक अपराध' करने वाले आरोपियों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

पैनल ने इसलिए ये सुझाव दिया कि 'आर्थिक अपराध' टर्म का इस्तेमाल छोटे से लेकर गंभीर अपराधों तक में किया जाता है. इसलिए इस कैटेगरी में आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना उचित नहीं है. इसलिए पैनल ने क्लॉज 43(3) से 'आर्थिक अपराध' शब्द हटाने की सिफारिश की. 

इसके अलावा BNSS के क्लॉज 43(3) में हिरासत से भागे या मानव तस्करी और जालसाजी जैसे विशेष अपराध के आरोपियों को हथकड़ी लगाने का प्रावधान है.संसदीय पैनल की क्लॉज से 'आर्थिक अपराध' को हटाने की सिफारिश को नए विधेयक में शामिल किया गया है. 

पहले के BNSS में राज्य के खिलाफ अपराधों पर एक अलग से लाइन थी. जिसमें देश की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरे में डालने वाले अफराध भी शामिल थे. लेकिन नए बिल में 'राज्य के खिलाफ अपराध' के लिए हथकड़ी का इस्तेमाल अनिवार्य है. इसका मतलब ये है कि इस तरह से अपराध में गिरफ्तार करने के लिए हथकड़ी के इस्तेमाल को और भी विवेकाधीन बना दिया गया है. इसके अलावा कोर्ट में पेश किए जाने वाले व्यक्तियों के लिए हथकड़ी के इस्तेमाल का विस्तार किया गया है.

दया याचिकाएं-
पहले BNSS की धारा 273(1) में मौत की सजा काट रहे दोषियों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को दया याचिका दायर करने की इजाजत थी. मौत की सजा पाए दोषी 30 दिनों के भीतर राज्यपाल को दया याचिका दे सकता है. दया याचिका खारिज होने पर दोषी 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर सकता है. राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी कोर्ट में अपील नहीं की जा सकेगी. पहले के प्रावधान में ये भी जिक्र था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के सामने याचिका दायर करने से पहले इसे केंद्र या राज्य सरकार के गृह विभाग के साने पेश किया जा सकता है.

पैनल ने ऐसे न्यायिक कार्यों को कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ने के बजाय अर्ध-न्यायिक बोर्ड गठित करने का सुझाव दिया है. इसमें ये भी प्रस्ताव दिया गया है कि एक समय सीमा प्रदान की जाए, जिसके भीतर दया याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी. नए विधेयक में क्लॉज 473 को 472 में बदल दिया गया है.

इसके अलावा नए बिल में उस प्रावधान को हटा दिया गया है, जो दया याचिकाओं को समीक्षा के लिए राज्य सरकार के गृह विभाग या केंद्र को भेजने की इजाजत देता था. खंड 473(7) में कहा गया है कि अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी. संशोधित क्लॉज 472(7) राज्यपाल के आदेश को अपील योग्य नहीं बनाता है. इसका मतलब है कि चुनौती नहीं देने का दायरा बढ़ गया है.

प्रिवेंशन डिटेंशन पावर-
BNSS का क्लॉज 172(2) प्रिवेंशन एक्शन लेते समय पुलिस की शक्तियों का विस्तार करता है. इसके तहत पुलिस अधिकारियों को आदेश का विरोध करने, इनकार करने, अनदेखी करने या अवहेलना करने वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने या हटाने की इजाजत देता है. बाद में उन व्यक्तियों को  न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने ले जाने या छोटे मामलों में रिहा करने की भी इजाजत देता है.

हालांकि पैनल ने सुझाव दिया है कि इस तरह हिरासत की समय अवधि स्पेसिफाई किया जाना चाहिए और अस्पष्टता को दूर करने के लिए 'Release him when the occasion is past' को और भी स्पष्ट करने की जरूरत है.

नए बिल में इस प्रावधान में एक टाइम लिमिट जोड़ा गया है. इसमें कहा गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया जा सकता है या छोटे मामलों में 24 घंटे के भीतर रिहा किया जा सकता है. इसके अलावा पुराने BNSS के 'न्यायिक मजिस्ट्रेट' की जगह 'मजिस्ट्रेट' शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

कम्युनिटी सर्विस-
पहले के BNSS में सुसाइड की कोशिश, बिजली चोरी रोकने, सरकारी अफसरों की मानहानि और नशे में सार्वजनिक जगहों पर परेशानी पैदा करने के लिए दंडात्मक उपाय के तौर पर सामुदायिक सेवा को शामिल किया गया था. लेकिन यह 'सामुदायिक सेवा' की परिभाषा पर चुप था.

नए BNSS के क्लॉज 23 में सामुदायिक सेवा को परिभाषित किया गया है. इसका मतलब उस काम से है, जिसे कोर्ट किसी दोषी को सजा के तौर पर करने का आदेश दे सकती है, जिससे समुदाय को लाभ होता है. इसके बदले वो किसी भी पारिश्रमिक का हकदार नहीं होगा. 

ये भी पढ़ें: