ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले की एक आशा कार्यकर्ता मटिल्डा कुल्लू को फोर्ब्स इंडिया पत्रिका की W -Power 2021 सूची में जगह मिली है. इसी सूची में रसिका दुग्गल और सान्या मल्होत्रा जैसे प्रसिद्ध नाम शामिल हैं. 15 वर्षों से, कुल्लू सुंदरगढ़ के बड़ागांव तहसील के गरगदबहल गांव में काम कर रही हैं.
हर सुबह, 45 वर्षीया मटिल्डा कुल्लू के दिन की शुरुआत 5 बजे से होती है. वह घर के काम खत्म करती हैं, चार लोगों के परिवार के लिए दोपहर का भोजन तैयार करती है और मवेशियों को चारा खिलाती हैं. इसके बाद वह अपनी साइकिल निकालती हैं और गांव में घर-घर जाकर लोगों, महिलाओं और बच्चों के रेग्युलर चेकअप करती हैं.
गांव में कुल्लू 964 लोगों की देखभाल करती हैं. जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं, और वह उनके स्वास्थ्य रिकॉर्ड से अच्छी तरह वाकिफ हैं. 2005 में, सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन शुरू किया और कमजोर समुदायों को स्वास्थ्य देखभाल से जोड़ने के लिए इन श्रमिकों की भर्ती की. भारत में ऐसे एक लाख से अधिक कर्मचारी हैं.
ग्रामीणों को निकाला अंधविश्वास से बाहर:
जब कुल्लू ने बतौर आशा वर्कर काम शुरू किया तो देखा कि ग्रामीण बीमार पड़ने पर न तो किसी डॉक्टर या अस्पताल जाते हैं - बल्कि खुद का इलाज करने के लिए 'झाड़ फुंक' (काला जादू) पर विश्वास करते हैं. लेकिन कुल्लू ने एक-एक करके ग्रामीणों को समझाया. जिसके बदले में उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा. क्योंकि वह अनुसूचित जाति से आती हैं तो उन्हें जातिवाद और छुआछूत जैसी चीजें भी झेलनी पड़ी.
लेकिन अब उनके लगातार प्रयासों से तस्वीरें काफी ज्यादा बदली है. कुल्लू खुद लोगों के घर जाकर चेकअप करती हैं और कई बार ऐसा भी होता है जब गांव वाले कुल्लू के घर पर दवा लेने के लिए आते हैं. गर्भवती महिलाओं की मदद करने के लिए अक्सर वह आधी रात को भी जाती हैं.
उसके अन्य नियमित कार्यों में प्रसवपूर्व/प्रसवोत्तर जांच, टीकाकरण, स्वच्छता, स्वच्छता को बढ़ावा देना, पोलियो और अन्य टीके लगाना, सर्वेक्षण करना आदि शामिल हैं.
कोविड में किया दिन-रात काम:
कोविड -19 की शुरुआत से ही कुल्लू ड्यूटी के बाद भी काम कर रही हैं. लेकिन उन्हें सलैरी हर महीने महज 4,500 रुपये मिलती है. लेकिन उनका कहना है कि उन्हें अपने काम से प्यार है. कई बार बुरा भी लगता है कि उनका वेतन कम है. इसलिए वह साइड में सिलाई का काम भी करती हैं.
महामारी के दौरान भी कुल्लू और उनके जैसे अन्य आशा वर्कर्स ने दिन-रात काम किया. सबसे ज्यादा वे लोग ही रिस्क में थे क्योंकि वे सीधा लोगों के संपर्क में आ रहे थे. लेकिन फिर भी उनके योगदान के अनुरूप उन्हें न तो सराहना मिली और न ही वेतन.
फिर भी कुल्लू ने यह सुनिश्चित किया कि उनके इलाके में सभी संदिग्ध लोगों की कोरोना जांच हो. और वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू होने के बाद उन्होंने सभी को टीकाकरण के लिए मनाया. शुरुआत में परेशानी हुई लेकिन फिर लोग मानने लगे. आज उनके गांव में सभी लोग वैक्सीनेटेड हैं.