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Uttarakhand ECO Labs: उत्तराखंड में शुरू होगी अब जंगलों निगरानी, वन विभाग बनाएगा 42 ईको लैब्स

Uttarakhand Forest ECO Labs:उत्तराखंड वन विभाग ने नैनीताल, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, केदारनाथ, चंपावत, चकराता, जोशीमठ, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान सहित अलग-अलग जगहों पर ईको लैब्स बनाई हैं.

Uttarakhand ECO Labs (Representative Image) Uttarakhand ECO Labs (Representative Image)

उत्तराखंड जंगलों की निगरानी के लिए अब ईको लैब्स बनाई जा रही हैं. जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई मुश्किलों को देखते हुए ये कदम उठाया जा रहा है. राज्य में 42 इकोलॉजिकल लैब स्थापित की जा रही हैं. इन लैब्स से वन क्षेत्रों की निगरानी और अध्ययन किया जा सकेगा. 

दरअसल, दुनियाभर में वनों को जलवायु परिवर्तन के कारण अलग-अलग खतरों का सामना करना पड़ रहा है. उत्तराखंड की स्थिति इससे अलग नहीं है. बढ़ता तापमान, बारिश का बदलता पैटर्न और मौसम की वजह से बाढ़ और जंगल में आग जैसी परेशानिया देखने को मिल रही हैं. ये बदलाव प्राकृतिक चक्रों, जैसे प्रजातियों के फलने-फूलने और उनके रहने के पैटर्न को बाधित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, बुरांश और ब्रह्मकमल अब समय से पहले ही खिल जाते हैं. ये पर्यावरणीय तालमेल के बदलने का संकेत है.

वन करते हैं कार्बन स्टोरेज का काम
वन एक तरह से कार्बन स्टोरेज का भी काम करते हैं. पर्यावरण में हो रहे ये बदलाव इनकी क्षमता को कम कर सकते हैं. इससे जलवायु परिवर्तन और तेजी से हो सकता है. बदले हुए हालात में पनपने वाले कीट और प्रजातियां भी नुकसान को और बढ़ा देती हैं, जो स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के लिए खतरा बन जाते हैं. इन बढ़ती चुनौतियों के मद्देनजर, उत्तराखंड वन विभाग ने इन ईको लैब्स को बनाने का निर्णय लिया है. 

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मुख्य वन संरक्षक संजय चौधरी बताते हैं कि उत्तराखंड वन विभाग ने नैनीताल, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, केदारनाथ, चंपावत, चकराता, जोशीमठ, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान सहित अलग-अलग जगहों पर ईको लैब्स बनाई हैं. उत्तराखंड जैव विविधता के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक है, और यहां के जंगलों को 46 प्रकारों में बांटा गया है. इन लैब्स की मदद से वैज्ञानिक इन सभी का डेटा इकठ्ठा का सकेंगे.

कैसे काम करेंगी ईको लैब्स?
ईको लैब्स की मदद से अलग-अलग वनों के ऊपर स्टडी की जा सकेगी. इतना ही नहीं ये लैब्स पौधों और जानवरों की प्रजातियों की संरचना और विविधता को ट्रैक करेंगी. साथ ही अलग-अलग प्रजातियों पर पर्यावरण का क्या असर पड़ रहा है, इसकी भी मॉनिटरिंग होगी. साथ ही जंगलों में स्टोर हुए कार्बन की मात्रा में कहीं बदलाव तो नहीं हो रहा, इसको ट्रैक किया जाएगा.

इन लैब्स के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में 5 हेक्टेयर और मैदानी क्षेत्रों में 10 हेक्टेयर की जमीन निर्धारित की गई है. हर चार साल में मैदानी इलाकों में और हर पांच साल में पहाड़ी इलाकों में डेटा इकट्ठा किया जाएगा.    

जैसे-जैसे ये लैब्स अपना काम शुरू करेंगी, वे उत्तराखंड के जंगलों को लेकर एक ऑथेंटिक डेटा आ सकेगा. इससे यह स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी कि जलवायु परिवर्तन भारत के सबसे जैव विविध क्षेत्रों में से एक को कैसे प्रभावित कर रहा है. इन प्रयासों की मदद से, उत्तराखंड के वनों को सुरक्षित रखा जा सकेगा और जलवायु परिवर्तन को लेकर कदम उठाया जा सकेगा.  

(अंकित शर्मा की रिपोर्ट)