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Natwar Singh Passes Away: इंदिरा, राजीव, मनमोहन सिंह के साथ किया काम... IFS की नौकरी छोड़ बने थे राजनेता, सोनिया गांधी से बिगड़े थे रिश्ते, जानिए कैसा रहा जीवन

K. Natwar Singh: राजस्थान के भरतपुर मे जन्मे नटवर सिंह ने 31 साल सिविल सर्वेंट की भूमिका निभाने के बाद राजनीति का रुख किया. हालांकि जब तक वह राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष तक पहुंचते, विवादों ने उन्हें घेर लिया. आइए डालते हैं उनके जीवन पर एक नजर.

पूर्व विदेश मंत्री के. नटवर सिंह (K Natwar Singh) का लंबी बीमारी के बाद शनिवार रात निधन हो गया. सिंह के परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी. उनकी उम्र 93 साल थी. सिंह ने अपनी आखिरी सांस गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में ली. वह पिछले दो हफ्तों से इस अस्पताल में भर्ती थे. 

आईएफएस से राजनीति का सफर
नटवर सिंह का जन्म राजस्थान के भरतपुर जिले में सन् 1931 में हुआ था. कांग्रेस सांसद रह चुके सिंह 2004-05 के दौरान मनमोहन सिंह की यूपीए (United Progressive Alliance) सरकार में विदेश मंत्री रहे थे. लेकिन राजनीति में आने से पहले वह एक सिविल सर्वेंट थे. सिंह 1953 में भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service) में शामिल हुए और 31 साल तक उसका हिस्सा रहे.

अपने कार्यकाल के दौरान सिंह ने चीन (1956-58), न्यू यॉर्क (1961-66) और यूनीसेफ (1962-66) सहित कई देशों और संस्थाओं में अलग-अलग भूमिकाओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. सिंह 1966 से 1971 तक प्रधानमंत्री इंदिराा गांधी के सचिवालय का हिस्सा रहे. साल 1980 से 1982 के बीच उन्होंने पाकिस्तान में भारत के राजदूत की भूमिका निभाई, जिसके बाद वह स्वदेश लौटकर विदेश मंत्रालय में सचिव के पद पर नियुक्त हुए. 1984 में पद्म भूषण मिलने के बाद उन्होंने विदेश सेवा से इस्तीफा दिया और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. 

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बतौर राजनेता नटवर सिंह राजीव गांधी के कैबिनेट में स्टील, कोयला एवं खदान और कृषि के राज्य मंत्री रहे. साल 1989 की हार के बाद जब कांग्रेस 1991 में फिर सत्ता में लौटी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ सिंह के रिश्ते बिगड़ गए. उन्होंने एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह के साथ मिलकर ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस बनाई लेकिन जब 1998 में कांग्रेस की बागडोर पूरी तरह सोनिया गांधी के हाथ में आई तो सिंह भी दोबारा ग्रैंड ओल्ड पार्टी में शामिल हो गए.     

भ्रष्टाचार का आरोप और इस्तीफा
सिंह 23 मई 2004 को मनमोहन सिंह की सरकार में विदेश मंत्री बने. अक्टूबर 2005 में जब सिंह आधिकारिक विदेश यात्रा पर थे तब पॉल वोल्कर की अध्यक्षता वाली स्वतंत्र जांच समिति ने 'फूड फोर ऑयल' कार्यक्रम (Food for Oil Program) में भ्रष्टाचार की अपनी जांच रिपोर्ट जारी की. यह संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम था, जिसके तहत इराक अनाज और दवाओं जैसी चीजों के बदले अपना तेल बेच सकता था. हथियारों का जखीरा बढ़ाना प्रतिबंधित था.

रिपोर्ट में कहा गया कि "भारत की कांग्रेस पार्टी" और नटवर सिंह का परिवार इस कार्यक्रम के गैर-संविदात्मक (भ्रष्ट) लाभार्थी थे. क्रोएशिया में तत्कालीन भारतीय राजदूत और के. नटवर सिंह के करीबी रह चुके अनिल मथरानी ने आरोप लगाया कि सिंह ने इराक की आधिकारिक यात्रा के दौरान जगत सिंह के लिए तेल कूपन खरीदे थे. 

इसी घोटाले के संबंध में नटवर सिंह ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रैली में अपने इस्तीफे की घोषणा की. इसी रैली में उन्होंने अपनी बेगुनाही का दावा किया. और सोनिया गांधी पर उनका बचाव न करने का आरोप लगाया. बीजेपी की रैली में ये बातें कहने के बावजूद वह भगवा पार्टी में शामिल नहीं हुए. इसके बजाय 2008 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (BSP) में शामिल होने का फैसला किया.

चार महीने बाद उन्हें बीएसपी से भी यह कहते हुए बेदखल कर दिया गया कि वह अनुशासनहीन हैं और उनमें बहुजन समाज आंदोलन के प्रति 'विश्वास की कमी' है. दूसरा पक्ष यह कहता है कि सिंह राज्यसभा सीट की मांग कर रहे थे. पार्टी में शामिल होते हुए भी उनसे इसका वादा किया गया था लेकिन मायावती ने इस मामले पर अपना मन बदल लिया था. 

2014 में आई आत्मकथा
अगस्त 2014 में सिंह की आत्मकथा, 'वन लाइफ इज़ नॉट इनफ' (One life is not enough) का लोकार्पण हुआ था. यह किताब उनके राजनीतिक करियर का बेबाक लेखा-जोखा है. किताब में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान कई संवेदनशील घटनाओं का खुलासा किया गया है. इसी किताब में नटवर सिंह ने सोनिया गांधी के साथ कई सालों के दौरान अपने बदलते रिश्तों का भी विवरण दिया है.