समाजवाद का नाम लेते ही लोहिया और जेपी का नाम जेहन में आता है. लेकिन मौजूदा दौर में जब समाजवाद की बात होती है तो सिर्फ और सिर्फ मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का नाम कानों में सुनाई देता है. खासकर उत्तर प्रदेश में, समाजवाद का मतलब ही मुलायम सिंह यादव है. हालांकि अब सियासत का वो सितारा हमारे बीच नहीं रहा. अब सिर्फ उनकी यादें ही बची हैं. मुलायम सिंह एक टीचर और पहलवान भी रहे. नेताजी के नाम से फेमस मुलायम सिंह यादव के कई पहलवानी दांव सियासत में भी मशहूर हुए.
मुलायम सिंह का बचपन-
22 नवंबर 1939 को यूपी के इटावा जिले के सैफई गांव में मूर्ति देवी और सुघर सिंह यादव के घर एक लड़का पैदा हुआ. जिसका नाम मुलायम सिंह यादव रखा गया. मुलायम अपने 5 भाई-बहनों में रतन सिंह से छोटे थे. जबकि अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल यादव और कमला देवी से बड़े थे. नेताजी की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई उनके गांव में ही हुई थी. हालांकि बाद में वो शहर गए और पढ़ाई की. मुलायम सिंह के पास बीए, एमए की डिग्री थी. उन्होंने केके कॉलेज इटावा, शिकोहाबाद और आगरा यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की.
पहलवान भी थे नेताजी-
मुलायम सिंह यादव को बचपन से कुश्ती का शौक था. मुलायम सिंह की गिनती इलाके के अच्छे पहलवानों में होती थी. एक बार नेताजी ने कुश्ती का दांव लगाकर मंच पर दारोगा को पटक दिया था. पढ़ाई के दिनों में एक बार कुश्ती और पढ़ाई का आमना-सामना भी हुआ था. एक कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव के अंग्रेजी के टीचर उदय प्रताप सिंह ने ये किस्सा सुनाया था. उस कार्यक्रम में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव दोनों मौजूद थे. उदय प्रताप सिंह ने बताया कि इंटरमीडिएट की छमाही परीक्षा में मुलायम सिंह के कम नंबर आए थे. इसलिए उन्होंने नेताजी को समझाया कि एग्जाम के दो महीने रह गए है. अगर अखबार में अपना रोल नंबर देखना है तो पढ़ाई पर ध्यान दो. टीचर ने मुलायम सिंह को साफ कह दिया था कि अगर कुश्ती लड़ोगे तो फेल हो जाओगे. उदय प्रताप सिंह ने आगे बताया कि मुलायम सिंह काफी समझाने के बाद भी नहीं माने. उन्होंने टीचर से कहा कि मुलायम सिंह कभी फेल नहीं होंगे.
बैलगाड़ी वाला किस्सा-
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सत्यभान सिंह ने मुलायम सिंह से जुड़ा एक किस्सा सुनाया था. एक बार नेताजी बैलगाड़ी से शहर जा रहे थे. उस दौरान चुंगी पर चवन्नी लगती थी. लेकिन नेताजी के पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने कहा कि आढ़ती से लेकर बाद में दे देंगे. लेकिन मुंशी नहीं माना और मुलायाम सिंह की गाड़ी रोक दी. मुलायम सिंह आढ़ती के पास गए और पैसे लेकर आए. उसके बाद मुंशी ने बैलगाड़ी जाने दी. जब नेताजी आढ़त पर पहुंचे तो उन्होंने आढ़ती से कहा कि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा तो पूरे प्रदेश की चुंगी माफ कर दूंगा. नेताजी की इस बात पर सब हंसने लगे. लेकिन उनकी बात सच साबित हुई और नेताजी मुख्यमंत्री बने.
नेताजी ने सियासत में रखा कदम-
नेताजी पढ़ाई के वक्त से ही राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित थे. 1960 के दशक में पहली बार मुलायम सिंह यादव राजनीति में आए. नेताजी को राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह सियासत में लेकर आए. साल 1960 के जून महीने में मैनपुरी के करहल जैन इंटर कॉलेज में कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ था. मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही मंच पर 'दिल्ली की गद्दी सावधान' कविता पढ़ रहे थे. इसपर वहां मौजूद एक दारोगा ने माइक छीन लिया. बगल में ही 20-21 साल का एक लड़का खड़ा था. वो लड़का फौरन मंच पर पहुंचा और दारोगा को उठाकर पटक दिया. इसके बाद लोगों ने समझाया और मामला शांत कराया. इसके बाद मुलायम सिंह यादव को पहचान और भी बढ़ गई. धीरे-धीरे नेताजी सियासत में सक्रिय हो गए. साल 1967 में पहली बार मुलायम सिंह यादव विधायक बने. उन्होंने हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह को हराकर 28 साल की उम्र में विधायक बने थे. लेकिन साल 1969 का विधानसभा चुनाव हार गए. उसके बाद साल 1977 में राज्य मंत्री बनाए गए. साल 1980 में मुलायम सिंह यादव को लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया. आगे चलकर लोकदल जनता दल बन गया. साल 1985 से 1987 तक जनता दल के अध्यक्ष भी रहे. साल 1992 में नेताजी ने समाजवादी पार्टी का गठन किया.
3 बार सीएम बने मुलायम सिंह-
मुलायम सिंह यादव 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. पहली बार साल 1989 में वो नेताजी सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन जल्द ही उनकी सरकार गिर गई. मुलायम सिंह ने हार नहीं मानी. साल 1993-95 में नेताजी एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. नेताजी को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका साल 2003 में मिला. इस बार मुलायम सिंह यादव 2007 तक इस पद पर बने रहे. 2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को सूबे की कमान सौंप दी. मुलायम सिंह यादव 8 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे थे.
प्रधानमंत्री बनने का सपना रह गया अधूरा-
मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री रहे. लेकिन प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना अधूरा रहा गया. नेताजी ने इसका जिक्र खुलेआम किया था कि वो पीएम बनना चाहते थे. लेकिन लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के कारण नहीं बन पाए. दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका आया, लेकिन किसी ना किसी वजह से नेताजी इस पद से दूर हो गए.
साल 1996 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई थी. बीजेपी के पास 161 सीटें थीं. अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली. लेकिन 13 दिन में सरकार गिर गई. अब सवाल खड़ा हुआ कि सरकार कौन बनाएगा. कांग्रेस के पास 141 सीटें थीं. सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई. वीपी सिंह ने ज्योति बसु का नाम आगे बढ़ाया. लेकिन पोलित ब्यूरो ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया. लेकिन हरकिशन सिंह सुरजीत ने मुलायम सिंह यादव के नाम को आगे बढ़ाया. लेकिन लालू यादव और शरद यादव ने इसका विरोध किया और नेताजी पीएम बनने से रह गए. एक बार साल 1999 में भी मुलायम सिंह का नाम पीएम पद के लिए सामने आया. लेकिन किसी कारण से उस बार भी नेताजी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए.
1990 में कार सेवकों पर चलवाई थी गोलियां-
साल 1990 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. 30 अक्टूबर को हजारों की संख्या में रामभक्त अयोध्या में इकट्ठा हुए थे. रामभक्त मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे. पुलिस ने पहले उनपर लाठीचार्ज किया और जब कारसेवक नहीं माने तो पुलिसवालों ने गोलियां चलाई. इसमें कई कारसेवक मारे गए. साल 2014 में मैनपुरी में मुलायम सिंह ने कबूल किया कि उनके आदेश पर ही गोलियां चलाई गई थीं.
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