कैफे का जिक्र होते ही आप लाइट्स, खूबसूरत पेंटिग्स, और एक सुंदर सी जगह की उम्मीद करते होंगे लेकिन अगर हम आपको कचरे वाले कैफे के बारे में बताएं तो चौंक जाएंगे.. छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में आज से तीन साल पहले स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक मुहिम शुरू की गई थी. इसी मुहिम की देन है अंबिकापुर का गार्बेज कैफे ( Ambikapur Garbage Cafe) . इस कैफे में खाना पैसों से नहीं कचरे से मिलता है. गार्बेज कैफे (Garbage Cafe) को शुरू करने का मकसद शहर की स्वच्छता के साथ उन लोगों को रोजगार देना था जो सड़क पर कचरा चुनते हैं. अंबिकापुर के मेयर अजय तिर्की ने बताया कि भारत में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के डोर- टू-डोर क्लेक्शन की शुरूआत होने के बाद इस सेक्टर में हमने काफी कुछ नया करने की कोशिश की . गार्बेज कैफे इसी कोशिश की देन है.
गार्बेज कैफे में एक थैले कचरे के बदले खाना और आधा थैले कचरे के बदले नाश्ता मिलता है. अजय तिर्की ने बताया कि गार्बेज कैफे में हर दिन करीब 25 से 30 लोग कचरा लेकर आते हैं और खाना खाकर जाते हैं. अजय तिर्की ने कहा कि शहर की स्वच्छता को देखते हुए ही अंबिकापुर छत्तीसगढ़ का शहर बना जिसे अमृत योजना दी गई. इस योजना के तहत करीब 106 करोड़ की पेय जल की योजना मिली है जो करीब 35 से 36 साल तक काम आएगी.
गार्बेज कैफे खुलने के बाद कितने लोगों को रोजगार मिला वाले सवाल पर तिर्की ने बताया कि करीब 460 स्वच्छता दीदी गार्बेज कैफे के लिए काम करती हैं जो घर -घर जा कर कचरा इकट्ठा करती हैं, साथ ही स्वयं सहायता समूह भी पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है.
स्वच्छ भारत मिशन के शुरू होने के बाद शहर की साफ -सफाई को लेकर काफी कदम उठाए गए थे, लेकिन शहर में गंदगी ( खासतौर से प्लाटिक्स) खत्म नहीं हो पा रहे थे. इसके मद्देनजर टेक्निकल टीम के साथ बातचीत की गई और प्लास्टिक का इस्तेमाल सड़क निर्माण में करने की सलाह दी गई, बता दें कि राज्य में इस तरह का पहला रोड 8,00,000 प्लास्टिक बैग को मिलाकर बनाया गया. ऐसी सड़कें काफी मजबूत होती हैं. क्लेक्ट कर के लाए गए प्लास्टिक को ग्रेनुएल में बदला जाता है , फिर उसका इस्तेमाल रोड बनाने में किया जाता है. बता दें कि सारा काम नगर निगम करती है.
वहीं गार्बेज कैफे में गीला और सूखा कचरा लाया जाता है, इसे स्वयं सहायता समूह को बेचा जाता है , जो भी पैसे मिलते हैं उन्हें स्वच्छता दीदीयों में बांट दिया जाता है. वहीं गीले कचरे को खाद्य में बदल कर फार्म हाउस या लोकल लेवल के गार्डेन में बेच दिया जाता है. सभी खाद्य एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से अप्रूव हो कर जाते हैं.
अजय तिर्की ने बताया कि गार्बेज कैफे में हर तरह का खाना मिलता है. खाने में चावल, दाल, सब्जी, चटनी पापड़ और नाशते में लोग अपने मन मुताबिक चीजें आर्डर करके बनवा सकते हैं. तिर्की ने बताया कि सरकार ने अंबिकापुर मॉडल के नाम पर इस मुहिम को देश के हर शहर में लागू करने की बात कही है. बता दें कि अंबिकापुर गार्बेज कैफे के बाद देश के कई शहरों ने इस मॉडल को अपनाया भी है और सभी अच्छा कर रहे हैं.
अजय तिर्की ने बताया कि शहर की स्वच्छता के लिए हम गाय के गोबर का ब्रिक्स ( एक तरह की पतली लकड़ी) बनाने पर काम शुरू कर चुके हैं. जिसका इस्तेमाल शवों को जलाने में किया जा रहा है. इसकी बदौलत एक तरफ जहां शहर की गंदगी कम हो रही है तो वहीं लोगों को रोजगार भी मिला है. भविष्य में इनका मकसद हर तरह के कचरे का कहीं ना कहीं इस्तेमाल करना है. इसके लिए पूरी टीम काम शुरू कर चुकी है.