गया का तिलकुट देश के साथ साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध है. अब गया में वन विभाग के सहयोग से नक्सल प्रभावित इलाके के लोग महुआ तिलकुट बना रहे हैं. यानी जो लोग पहले महुआ से शराब बनाते थे, वो अब महुआ तिलकुट बना रहे हैं. यह तिलकुट गया के घने जंगलों में बनाई जा रही है. जो महिलाएं पहले देशी शराब निर्माण से जुड़ी थीं, आज वो इस प्रोजेक्ट से जुड़कर महुआ तिलकुट बनाने में जुटी हैं.
गया के प्रसिद्ध तिलकुट की सोंधी खुशबू विदेशों में भी छाई है. अब यह तिलकुट और भी पौष्टिक हो गई है. गया जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर बाराचट्टी प्रखण्ड के सोमिया गांव में महुआ तिलकुट का निर्माण किया जा रहा है. यह तिलकुट सामान्य तिलकुट से अलग है और इसकी पौष्टिकता भी अधिक होगी. महुआ तिलकुट की खास बात यह है कि इसमें चीनी या गुड़ का इस्तेमाल नहीं किया गया है. तिल को भून कर इसे महुआ के साथ मिलाकर कूटते हैं. इसके बाद महुआ तिलकुट तैयार किया जा रहा है.
नक्सल प्रभावित जिलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत जिला स्तर और पायलट प्रोजेक्ट के तहत गया के इन इलाकों में महुआ तिलकुट निर्माण किया जा रहा है. जहां विकास व मुख्यधारा की योजनाएं नहीं पहुंच सकी हैं. उन इलाकों में वन विभाग गया का अपना अरण्यक ब्रांड के साथ अब लोगों को महुआ तिलकुट मिलेगा. यह तिलकुट सामान्य तिलकुट से अलग होगा और पौष्टिकता भी अधिक होगी. यहां महुआ को सुखा कर तिल से मिलाकर नए फ्लेवर का महुआ तिलकुट बनाया जा रहा है.
वैकल्पिक आजीविका के लिए महुआ प्रोजेक्ट की शुरुआत
बिहार उत्पाद शुल्क महुआ फूल नियम 2006 के कारण बड़ी संख्या में वन में रहने वाले ग्रामीणों को पारम्परिक और सांस्कृतिक महत्व की वन उपज महुआ जमा करने से रोका जा रहा है तथा उसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसलिए इन ग्रामीणों को अपराधीकरण से बचाने और वनवासियों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए इस महुआ प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है.
प्रोजेक्ट अधिकारी शिव मालवीय बताते हैं कि इन महिलाओं को तिलकुट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था जिसके बाद महिलाएं अपने घरों में तिलकुट बनाने में जुटी हैं. इस गांव में हमने 20 महिलाओं को महुआ का तिलकुट बनाने का प्रशिक्षण दिया था. अभी 8 महिलायें महुआ तिलकुट बना रही हैं. हमारा टारगेट है कि अगले वर्ष 100 महिलायें इससे जुड़ेंगी. हमलोग वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. जो महिलायें ये तिलकुट बना रही हैं, उन्हें सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से मजदूरी दी जा रही है. अभी शुरुआत में ये महिलाएं लोहे के बर्तन में तिलकुल बना रही हैं. आगे चल कर इन्हें मिक्सर मिल जाएगा तो ये ज्यादा तिलकुट बना पाएंगी.
महुआ तिलकुट बना रही एक महिला रामवती देवी ने बताया, 'अभी हमलोग महुआ तिलकुट बना रहे हैं. इससे पहले हमलोग महुआ का शराब बनाते थे और बेचते थे. एक दिन वन विभाग के अधिकारी आए और हमलोगों से कहा कि अब से तुमलोग शराब नहीं बनाओगे. हम सभी लोगों को महुआ तिलकुट बनाने के लिए सिखाएंगे. फिर हमलोगों को महुआ तिलकुट बनाने के लिए बताया गया. तब हमलोग महुआ तिलकुट बना रहे हैं.'
रामवती कहती हैं, 'हमलोग पहले महुआ को जंगल से चुन कर लाते हैं और उसे धो कर सूखा देते हैं और तिल को भी धो कर सूखा देते हैं और आग पर भूनते हैं. उसके बाद कूट कर महुआ तिलकुट बनाते हैं.'
गया के वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) अभिषेक कुमार ने बताया कि जो महिलाएं इन जंगलों से महुआ चुनकर शराब निर्माण करने वाले लोगों को बेचा करती थीं. आज उन्हें इस प्रोजेक्ट से जोड़ा गया है ताकि वे अपराध से भी बचें. इसके लिए ग्रामीणों के बीच जाल का वितरण किया गया था ताकि पेड़ से महुआ इन जालों पर गिरे जिसे सूखाकर महुआ तिलकुट निर्माण में लाया जाए.
(पंकज कुमार की रिपोर्ट)