2022 में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव होने हैं. हर राज्य चुनाव की तैयारी में व्यस्त है. सभी राज्य जहां कोविड पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं कुछ पर्यावरण का भी ध्यान रख रहे हैं. ऐसे में गोवा में ग्रीन इलेक्शन की तैयारियां चल रही हैं. 40 विधानसभा सीटों वाला ये राज्य बिना किसी प्लास्टिक और प्राकृतिक सामग्री के पर्यावरण के अनुकूल तरीके से चुनाव कराएगा.
इस चुनावी मौसम में बांस के डिब्बे, टोकरियों से लेकर नारियल के गोले तक, गोवा में सभी चीजें स्थानीय और पर्यावरण के अनुकूल सभी चीजें होंगी. वोटिंग के दिन मतदाता बांस के बूथ में वोट डालेंगे और नारियल के पत्तों से बने बूथों में अपनी सेल्फी खींचेंगे. इंडिया टुडे से खास बातचीत में गोवा के मुख्य चुनाव अधिकारी कुणाल ने कहा कि यह चुनाव मॉडल चुनाव होगा क्योंकि इसमें प्राकृतिक उत्पादों का ही इस्तेमाल किया जाएगा.
सभी मतदान केंद्रों को प्राकृतिक उत्पादों से सजाया जाएगा
ये पूछे जाने पर कि चुनाव से प्लास्टिक हटाने का विचार कैसे आया? कुणाल ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर गोवा एक खूबसूरत जगह है. यहां बांस से लेकर नारियल तक कई चीजें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हैं. उन्होंने कहा कि राज्य का प्रकृति से गहरा संबंध है और हम राज्य आयोग में गोवा की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का इस्तेमाल करना चाहते थे. इसलिए हमने सोचा कि इसे करने के लिए राज्य के चुनाव से बेहतर अवसर क्या हो सकता है. मुख्य चुनाव अधिकारी कुणाल ने कहा, "बांस, नारियल, सीपियों के इस्तेमाल से गोवा भी स्वच्छ और हरा-भरा रहेगा, साथ ही यह जगह की शोभा भी बढ़ायेगा. गोवा में 1,722 मतदान केंद्र हैं और उन सभी को प्राकृतिक उत्पादों से सजाया जाएगा. यह स्थानीय शिल्प को बढ़ावा देगा, कार्बन फुटप्रिंट को कम करेगा और यह गोवा के चुनावों को अन्य राज्यों से अलग बनाएगा."
सैनिटाइजर, मास्क रखने के लिए नारियल के छिलके और बांस की ट्रे का इस्तेमाल
जब कोई मतदाता किसी मतदान केंद्र पर पहुंचेगा तो कौन सी चीजें उसका स्वागत करेंगी? ये पूछे जाने पर कुणाल ने कहा, "गो शब्द से ही पूरी मतदान प्रक्रिया ईको फ्रेंडली है. जैसे ही कोई मतदाता बूथ में प्रवेश करेगा, उसका स्वागत बांस की टोकरियों से किया जाएगा जिसमें पानी की बोतलें रखी जाएंगी. सैनिटाइजर और मास्क रखने के लिए नारियल के छिलके और बांस की ट्रे का इस्तेमाल किया जाएगा. साथ ही इस्तेमाल किए गए दस्ताने, मास्क फेंकने के लिए हम मतदान केंद्रों में बांस के डिब्बे रखेंगे."
उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश यह दिखाना है कि चुनाव के दौरान प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एक आदर्श चुनाव है. हमने इस प्रयास के लिए गोवा राज्य जैव-विविधता बोर्ड और गोवा राज्य हस्तशिल्प सहयोग के साथ करार किया है. वे कौन से स्थानीय उत्पाद हैं जिनका उपयोग आगामी तीन राज्यों के चुनावों में किया जाएगा? साथ ही उत्पादों के लिए राज्य चुनाव आयोग ने कितने स्थानीय कारीगरों से संपर्क किया है? इस सवाल के जवाब में कुणाल ने कहा, "इस बार हमारा जोर उन वस्तुओं पर है जो हमें स्थानीय स्तर पर मिलेंगी जैसे कि नारियल, पत्ते, बांस, शंख. हम पहले ही 500 स्थानीय कारीगरों को लगा चुके हैं जो मतदान केंद्र, टोकरियां, फोटो बूथ, सेल्फी बूथ बना रहे हैं."
500 स्थानीय कारीगर लगे हैं काम पर
उत्पाद समय पर तैयार हो यह सुनिश्चित करने के लिए सभी स्थानीय कारीगरों से बीएलओ (बूथ स्तर के अधिकारियों)ने संपर्क किया है. जब गोवा के मतदाता बूथ में कदम रखेंगे तो वे उन सभी चीजों से घिरा हुआ महसूस करेंगे जो गोवा को खास बनाती पर्यावरण के अनुकूल उपायों के अलावा आपने मतदाताओं में जागरूकता पैदा करने के लिए और क्या कदम उठाए हैं? ये पूछे जाने पर कुणाल ने कहा, "मतदाता जागरूकता पैदा करना एक लगतार चलने वाली प्रक्रिया है. हम नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर जागरूकता पैदा करना चाहते हैं. हाल ही में, हमने मतदाताओं में जागरूकता पैदा करने के लिए एक नेत्रहीन क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया था."
उन्होंने आगे कहा, "चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है और चुनाव में हमें लोकतंत्र की सफलता के लिए खिलाड़ी भावना, प्रतिबद्धता और भागीदारी की जरूरत होती है. हम जागरूकता पैदा करने से नहीं रुक रहे हैं. हमने मतदाताओं की सहायता के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 1950 स्थापित किया है. चुनाव आयोग कोविड को ध्यान में रखते हुए कदम उठा रहा है. आगामी चुनावों के लिए प्रति बूथ मतदाताओं की संख्या 1,500 से घटाकर 1,200 कर दी गई है."
(ऐश्वर्या पालीवाल की रिपोर्ट)