हाल ही में सरकार ने देश की सभी दवा कंपनियों को रिवाइज्ड गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस को लागू करने का निर्देश दिया है. इन सख्त मानकों को अपनाकर कंपनियां ग्लोबल मानकों के बराबर आ सकती हैं. जिन कंपनियों का टर्नओवर 250 करोड़ रुपए हैं, उनको 6 महीने के भीतर नए बदलाव को लागू करना होगा. जबकि 250 करोड़ रुपए से कम के टर्नओवर वाली कंपनियों को एक साल के भीतर इन नए बदलावों को अपनाना होगा.
क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत-
ये बदलाव ऐसे समय में आया है, जब भारत खुद को जेनरिक दवाओं के ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर प्रमोट कर रहा है. ऐसे में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस में बदलाव करने की जरूरत क्यों पड़ी है. चलिए आपको बताते हैं.
इस वक्त देश में 10500 दवा कंपनियां हैं, जिसमें से सिर्फ 2000 कंपनियां ग्लोबल स्टैंडर्ड को पूरा करती हैं, जो डब्ल्यूएचओ जीएमपी सर्टिफाइड हैं. नए मानक ये सुनिश्चित करेंगे कि दवा कंपनियां स्टैंडर्ड प्रोसेस को फॉलो करें और क्वालिटी कंट्रोल उपायों को अपनाएं. इसके साथ ही इन मानकों से ये भी सुनिश्चित होगा कि कंपनियां कोई कोताही ना बरतें, ताकि भारत की दवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा.
क्या हुए नए बदलाव-
रिवाइज्ड जीएमपी गाइडलाइंस में क्वालिटी कंट्रोल उपायों, सही डॉक्यूमेंटेशन और क्वालिटी को मेनटेन करने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर फोकस किया गया है
नई गाइडलाइन में फार्मास्युटिकल क्वालिटी सिस्टम, क्वालिटी रिस्क मैनेजमेंट, प्रोडक्ट क्वालिटी रिव्यू और उपकरणों के वैलिडेशन की व्यवस्था है. इसका मतलब है कि कंपनियों को अपने सभी प्रोडक्ट्स की रेगुलर जांच करनी होगी. क्वालिटी और प्रोसेस को कंसिस्टेंसी को वेरिफाई करना होगा. किसी भी डिफेक्ट की जांच करनी होगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक्सपर्ट्स ने बताया कि उनमें से कुछ नियमों का पालन किया जा रहा था, लेकिन ग्लोबल स्टैंडर्ड के बराबर सही तरीके से डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया जा रहा था. एक अधिकारी ने बताया कि बिना उचित डॉक्यूमेंटेशन के कोई भी इसको मानने को तैयार नहीं था. अब नई गाइडलाइंस में इसको सुधारने की कोशिश की गई है.
नई गाइडलाइंस के तहत कंपनियों को दवाओं को स्टेबिलिटी चैंबर, उचित तापमान और हिम्यूडिटी में रखना अनिवार्य होगा. इसके साथ ही समय-समय पर विभिन्न मानकों के तहत परीक्षण भी करना होगा. इसके साथ ही कंपनियों के पास जीएमपी-रिलेटेड कंप्यूटराइज्ड सिस्टम होना चाहिए, जो सुनिश्चत करे कि प्रोसेस से संबंधित डाटा के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है.
इन बदलावों से क्या होगा-
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पूरे उद्योग में एक जैसी गुणवत्ता होने से दूसरे देशों के रेगुलेटर्स का भरोसा बढ़ेगा. इसके साथ ही घरेलू मार्केट में दवाओं की क्वालिटी में सुधार होगा. भारत की 8500 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में से ज्यादातर डब्ल्यूएचओ-जीएमपी सर्टिफाइड नहीं हैं. सरकार के इस फैसले को स्वागत किया जा रहा है और इसे जरूरी बताया जा रहा है.
कब से लागू होंगे बदलाव-
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया मुताबिक ये बदलाव एक अगस्त से शुरू हो गया है. इसका मतलब है कि बड़ी कंपनियों के पास बदलाव को लागू करने के लिए 6 महीने का समय है, जबकि छोटी कंपनियों के पास एक साल का वक्त है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि नया शेड्यूल M अब तक नोटिफाइड नहीं किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक एक दवा निर्मात ने कहा कि शुरुआत में जब मसौदे की गाइडलाइंस जारी की गई थी, तब इंडस्ट्री की तरफ से कहा गया था कि इन बदलावों को लागू करने के लिए करीब 36 महीने की जरूरत होगी. एक साल की समयसीमा बढ़ सकती है. भारत में ज्यादातर बड़ी कंपनियां पहले से ही ग्लोबल जीएमपी का पालन कर रही हैं. छोटी कंपनियों को पूरी तरह से बदलाव करना है. ऐसी कंपनियों की मदद के लिए फार्मास्युटिकल डिपार्टमेंट के पास एक स्कीम है, जिसके तहत क्रेडिट-लिंक्ड कैपिटल और इंटरेस्ट सब्सिडी देने की योजना है.
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