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KD Jadhav: गूगल ने डूडल बनाकर केडी जाधव को किया याद, जानिए कौन थे ओलंपिक में भारत को पहला पदक दिलाने वाले खाशाबा दादासाहेब जाधव ? 

खशाबा दादासाहेब केडी जाधव का जन्म 15 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के गोलेश्वर गांव में हुआ था. देश के लिए उन्होंने पहला ओलंपिक पदक जीता था. सर्च इंजन गूगल ने खास डूडल बनाकर उनके योगदान को याद किया है.

गूगल ने डूडल बनाकर केडी जाधव को किया याद. गूगल ने डूडल बनाकर केडी जाधव को किया याद.
हाइलाइट्स
  • 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में केडी जाधव ने जीता था पदक

  • जर्मनी, मैक्सिको और कनाडा के पहलवानों को हराया था

सर्च इंजन गूगल ने खास डूडल बनाकर खशाबा दादासाहेब केडी जाधव को उनके जन्मदिन पर याद किया है. जाधव का जन्म 15 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के गोलेश्वर गांव में हुआ था. 5 फुट 5 इंच के मझोले कद वाले केडी जाधव जब मैदान में उतरते थे तो बड़े-बड़े पहलवान डर जाते थे. उन्होंने कई दिग्गज पहलवानों को धूल चटाई है. भारत के लिए उन्होंने पहला ओलंपिक पदक जीता था.

पिता भी थे पहलवान 
केडी जाधव के पिता गांव के सबसे अच्छे पहलवानों में से एक थे. जाधव को उनकी एथलेटिक्स विरासत में मिली. तैराक और धावक के रूप में चमकने के बाद, 10 वर्ष की उम्र में ही जाधव ने अपने पिता के साथ पहलवान के रूप में प्रशिक्षण लेना शुरू किया. खाशाबा दादासाहेब जाधव स्वतंत्रता के बाद ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक हासिल करने वाले एथलीट थे. साल 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक हेलसिंकी में केडी जाधव ने पदक जीता था. जाधव ने जर्मनी, मैक्सिको और कनाडा के खिलाड़ियों को हराकर कांस्य पदक अर्जित किया था.
 
जाधव एक अच्छे तैराक और धावक भी थे
1952 से पहले ही कोल्हापुर के महाराज की नजर इस पहलवान की प्रतिभा पर पड़ी थी. उन्होंने लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों में जाधव की भागीदारी को निधि देने का फैसला किया. अंतरराष्ट्रीय कुश्ती नियमों के अभ्यस्त नहीं होने और अत्यधिक अनुभवी पहलवानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बावजूद, जाधव छठे स्थान पर रहे, जो उस समय के दौरान एक भारतीय पहलवान के लिए सर्वोच्च स्थान था. जाधव एक अच्छे तैराक और धावक भी थे

घुटने की चोट के कारण छोड़ना पड़ा करियर 
जाधव अपनी टैक्टिकल फाइट से लंबे कद-काठी वाले पहलवान को भी टिकने नहीं देते थे. जाधव ने अपने पिता व अन्य पेशेवर पहलवानों से प्रशिक्षण लेकर कई राज्य और राष्ट्रीय खिताब जीते थे. हालांकि, घुटने की चोट के कारण हेलसिंकी ओलंपिक में जीत के बाद जाधव अपने कुश्ती करियर को जारी नहीं रख सके. बाद में उन्होंने एक पुलिस अधिकारी के रूप में काम किया.

मरणोपरांत मिला पुरस्कार
केडी जाधव को अपने जीवनकाल में कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला. 14 अगस्त 1984 को उनका निधन हो  गया था. जिसके  बाद कुश्ती में उनके योगदान के लिए साल 2000 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.