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देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका थीं फातिमा शेख, लड़ी थी शिक्षा की लड़ाई, गूगल ने डूडल बनाकर किया सम्मानित

गूगल ने आज भारतीय शिक्षिका और फेमिनिस्ट फातिमा शेख का डूडल शेयर किया है. आज फ़ातिमा की 191वीं जयंती है. फातिमा भारत की प्रमुख महिला समाज सुधारकों में से एक रहीं और इसलिए उन्हें गूगल ने यह खास सम्मान दिया है. हालांकि देश में बहुत ही कम लोग होंगे जो उनके बारे में जानते हैं. लेकिन हम आपको बता दें कि फ़ातिमा का ज्योतिबाराव फूले और सावित्रीबाई फूले से गहरा संबंध रहा है.

Google shared Doodle on Fatima Sheikh's Birth Anniversary Google shared Doodle on Fatima Sheikh's Birth Anniversary
हाइलाइट्स
  • गूगल ने शेयर किया फातिमा शेख का डूडल

  • भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका थीं फातिमा

गूगल ने आज भारतीय शिक्षिका और फेमिनिस्ट फातिमा शेख का डूडल शेयर किया है. आज फ़ातिमा की 191वीं जयंती है. फातिमा भारत की प्रमुख महिला समाज सुधारकों में से एक रहीं और इसलिए उन्हें गूगल ने यह खास सम्मान दिया है. 

हालांकि देश में बहुत ही कम लोग होंगे जो उनके बारे में जानते हैं. लेकिन हम आपको बता दें कि फ़ातिमा का ज्योतिबाराव फूले और सावित्रीबाई फूले से गहरा संबंध रहा है. दरअसल उनके साथ मिलकर ही फ़ातिमा ने देश में बच्चियों की शिक्षा के लिए काम किया और कहा जाता है कि वह भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका थीं. 

कौन थीं फातिमा शेख : 

फातिमा शेख का जन्म 1831 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ. उस जमाने में स्त्री शिक्षा का कोई महत्व नहीं था. महिलाओं को घरों की चारदीवारी में रखा जाता था और उन्हें पढ़ने की अनुमति नहीं थी. लेकिन ज्योतिबाराव फूले ने देश में शिक्षा की अलख जगाई.

उन्होंने दलित समुदायों और महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत से काम किए और इन सभी कामों में उनकी पत्नी सावित्रीबाई फूले ने उनका भरपूर सहयोग किया. लेकिन लोगों को यह मंजूर नहीं था और इसलिए फूले दंपति को घर से बेघर होना पड़ा. 

ऐसे में फातिमा और उनके भाई उस्मान ने फूले दंपति का साथ दिया. उन्होंने न सिर्फ उन्हें अपने घर में रहने की जगह दी बल्कि बच्चियों के लिए स्कूल चलाने की इजाज़त भी दी. यहीं से फ़ातिमा भी फूले दंपति के अभियान से जुड़ गईं. 

घर से शुरू की स्वदेशी लाइब्रेरी: 

फ़ातिमा ने सावित्रीबाई के साथ मिलकर अपने ही घर में स्वदेशी लाइब्रेरी की शुरू की. उन्होंने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के उन समुदायों को पढ़ाना शुरू किया, जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित रखा जाता था. 

इस काम के बदले में फ़ातिमा को भी काफू ज्यादा विरोध सहना पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटीं. उन्होंने घर-घर जाकर अपने समुदाय के दलितों को स्वदेशी लाइब्रेरी में आकर पढ़ने और भारतीय जाति व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए जागरूक किया. वह सत्यशोधक अन्दीलन का भी हिस्सा रहीं. 

भारत सरकार ने 2014 में फातिमा को पहचान दी और उनकी कहानी उर्दू पाठ्यपुस्तकों में शामिल की गई. और आज उनकी 191वीं जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है. 
 

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