भारतीय सेना की वीरता और साहस की दुनियाभर में मिसाल दी जाती है. इंडियन आर्मी में कई रेजिमेंट्स हैं. इसमें 24 अप्रैल 1915 को गठित गोरखा रेजिमेंट का जिक्र बार-बार होता है. आइए इस गोरखा रजिमेंट की बहादुरी की कहानी जानते हैं.
अंग्रेजों का नेपाल से हुआ था युद्ध
1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल से युद्ध किया था. हालांकि इस युद्ध में नेपाल को हार मिली थी, लेकिन नेपाल के गोरखा सैनिक बहादुरी से लड़े थे. कहा जाता है कि गोरखाओं की बहादुरी से सर डेविड ऑक्टरलोनी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोरखाओं के लिए अलग रेजिमेंट बना डाला. उस समय से लेकर अब तक गोरखा भारतीय फौज का अनिवार्य हिस्सा हैं.
'यदि कोई कहता है- मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है'
गोरखा समुदाय के लोग हिमालय की पहाड़ियों, खासकर नेपाल और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं. ये लोग बहुत ही बहादुर होते हैं. इनकी बहादुरी के किस्से इतिहास में मिलते हैं. भारत में कई जगह गोरखाओं को उनके निडर चरित्र को देखते हुए बहादुर कहकर भी बुलाया जाता है. भारतीय सेना के भूतपूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सैम मानेकशॉ तो कहते थे कि यदि कोई कहता है- मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है.
जर्मन सेनाओं पर बरपाया था कहर
दूसरे विश्व युद्ध में गोरखा रेजिमेंट ने जर्मन सेनाओं पर खूब कहर बरपाया था. कहा जाता है कि उस वक्त हिटलर इनकी बहादुरी देखकर दंग रह गया था. उसने कहा था कि दुनिया की सबसे बहादुर रेजिमेंट गोरखा रेजिमेंट है. गोरखाओं के बार में कहा जाता है कि वह आपने आसपास अपराध और अत्याचार को नहीं देख सकते हैं. वह सिविलियन जीवन में भी दुश्मनों से भिड़ जाते हैं.
गोरखा रेजिमेंट कहां-कहां है
भारत में कई शहरों में गोरखा रेजिमेंट के सेंटर हैं. इसमें वाराणसी, लखनऊ, हिमाचल प्रदेश में सुबातु, शिलांग के ट्रेनिंग सेंटर मशहूर हैं. गोरखपुर में गोरखा रेजिमेंट की भर्ती का बड़ा केंद्र है. भारत, नेपाल और ब्रिटेन के अलावा ब्रूनेई और सिंगापुर में भी गोरखा रेजिमेंट किसी न किसी रूप में है. भारतीय सेना में 7 गोरखा रेजिमेंटों में सेवारत 39 बटालियन हैं. छह रेजिमेंटों को ब्रिटिश भारतीय सेना से स्थानांतरित कर दिया गया था, जबकि एक स्वतंत्रता के बाद बनाई गई थी.
जय महाकाली, आयो गोरखाली का लगाते हैं नारा
गोरखा की पहचान खुखरी है जो एक तरह का धारदार खंजर होता है. युद्ध के दौरान गोरखा दुश्मन का सिर काटने के लिए इस खुखरी का इस्तेमाल करते हैं. गोरखा सिपाही जब भी दुश्मन पर हमले के लिए आगे बढ़ते हैं तो उनकी जुबान पर यह नारा होता है-जय महाकाली, आयो गोरखाली. कहा जाता है कि गोरखा अपने जवानों को मुसीबत में फंसा छोड़कर आगे नहीं बढ़ते हैं.