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Violence Will Stop in Tripura: क्या है NLFT और ATTF, दोनों में 35 सालों से चल रहा था संघर्ष, गृह मंत्री अमित शाह ने कराया समझौता, अब त्रिपुरा में थमेगी हिंसा  

Peace Agreement: नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स उग्रवादी संगठन त्रिपुरा को अलग देश बनाने के लिए पिछले कई दशक से सशस्त्र संघर्ष में शामिल थे. अब समझौते के तहत ये दोनों उग्रवादी संगठन हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे और अपने हथियार डाल देंगे. इससे राज्य में शांति आएगी. 

Peace Agreement Peace Agreement
हाइलाइट्स
  • अब तक 10 हजार उग्रवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में हो चुके हैं शामिल 

  • त्रिपुरा साल 1949 में भारत में हुआ था शामिल

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा (Tripura) में अब खूनी संघर्ष देखने को नहीं मिलेगी. आम लोग चैन की सांस लेंगे. केंद्र की पहल रंग लाई है. 35 सालों से एक-दूसरे से संघर्ष कर रहे दो उग्रवादी संगठनों ने हाथ मिला लिया है. दोनों संगठनों ने सरकार के सामने हथियार डालने का फैसला किया है. इस समझौते में केंद्र और राज्य सरकार ने मुख्य भूमिका निभाई है. 

गृहमंत्री शाह की रणनीति ने दिलाई कामयाबी
पूर्वोत्तर राज्यों में शांति रहे, इसको लेकर केंद्र सरकार तरह-तरह के उपाय करती है. अब त्रिपुरा में गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) की रणनीति कामयाब हुई है. उनकी मौजदूगी में केंद्र, राज्य सरकार, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) के प्रतिनिधियों ने एकसाथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह समझौता पूर्वोत्तर के लिए 12वां और त्रिपुरा से संबंधित तीसरा समझौता है.

त्रिपुरा को अलग देश बनाने की कर रहे थे मांग
एनएलएफटी और एटीटीएफ त्रिपुरा को अलग देश बनाने के लिए पिछले कई दशक से सशस्त्र संघर्ष में शामिल थे. अब समझौते के तहत ये दोनों उग्रवादी संगठन हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे और अपने हथियार डाल देंगे. दोनों संगठन अपने सशस्त्र संगठनों को भंग कर देंगे. गृहमंत्री शाह ने कहा कि एनएलएफटी और एटीटीएफ ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा में आने और पूरे त्रिपुरा के विकास के प्रति अपनी कटिबद्धता व्यक्त की है. आपको मालूम हो कि त्रिपुरा साल 1949 में भारत में शामिल हुआ था. इससे पहले त्रिपुरा पर माणिक्य राजवंश का शासन था.

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328 कैडर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तैयार
गृहमंत्री शाह ने कहा कि समझौते के बाद एनएलएफटी और एटीटीएफ संगठनों के 328 कैडर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तैयार हैं. वे अब अपने परिवार के साथ रह सकते हैं. भारत का नागरिक बन सकते हैं. शाह ने कहा कि मोदी सरकार में समझौता सिर्फ कागज का टुकड़ा नहीं बल्कि दिल की भावना है और हमने इसे जमीनी स्तर पर प्रदर्शित किया है. उन्होंने कहा कि एनएलएफटी और एटीटीएफ को आश्वासन देते हैं कि हम समझौते का पूरी तरह से पालन करेंगे. 

12 अहम समझौतों पर किए हैं हस्ताक्षर
गृहमंत्री शाह ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति और समृद्धि लाने के लिए 12 अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें से तीन त्रिपुरा से संबंधित हैं. उन्होंने कहा कि इन समझौतों के कारण करीब 10,000 उग्रवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं. इन समझौतों से दोनों तरफ से हजारों लोगों के मौत के कारण को रोकने की बड़ी पहल की गई है. 

250 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की मंजूरी 
इस अवसर पर केंद्र सरकार ने त्रिपुरा की जनजातीय आबादी के समग्र विकास के लिए 250 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज को भी मंजूरी दी. इसी साल मार्च में त्रिपुरा के मूल निवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए इंडिजीनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायन्स यानी टिपरा मोथा, त्रिपुरा सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था. इस समझौते में त्रिपुरा के जनजातियों के इतिहास, भूमि और राजनीतिक अधिकारों, आर्थिक विकास, पहचान, संस्कृति और भाषा से संबंधित सभी मुद्दों का सौहार्दपूर्ण हल का वादा किया गया है. 

क्या है NLFT 
त्रिपुरा में NLFT के दो गुट सक्रिय हैं. एक का नेतृत्व विश्वमोहन देवबर्मन और दूसरे का परिमल देवबर्मन करते हैं. इस उग्रवादी संगठन का गठन साल 1989 में किया गया था. हालांकि गठन के बाद से यह संगठन कई टुकड़ों में बंट चुका है. साल 2001 में नयाबासी जमातिया ने एनएलएफटी (एन) का गठन किया था. एनएलएफटी (एन) ने बाद में साल 2024 में केंद्र के साथ समझौता कर लिया. विश्वमोहन देवबर्मन के नेतृत्व वाले एनएलएफटी के 88 कैडरों ने 2019 में आत्मसमर्पण कर दिया था. 

ATTF का कब हुआ था गठन
रंजीत देवबर्मन ने ATTF का गठन साल 1993 में किया था. इस संगठन में टूट नहीं हुई है लेकिन यह संगठन धीरे-धीरे कमजोर हो गया है. इन दोनों उग्रवादी संगठनों का उद्देश्य त्रिपुरा को अलग देश बनाना था. इसके लिए दोनों संगठन हथियारबंद संघर्ष में शामिल थे. केंद्र सरकार ने 1997 में एनएलएफटी और एटीटीएफ को गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया था. सरकार ने इन दोनों पर पाबंदी लगा दी थी. केंद्र सरकार ने 2019 में इन दोनों संगठनों पर लगी पाबंदी को पांच साल के लिए बढ़ा दिया था. इसे 2023 में फिर से पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया था.