
गुजरात हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को साथ में रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. ये फैसला बनासकांठा जिले के एक मुस्लिम जोड़े से जुड़े एक मामले में अदालत ने सुनाया है.
दरअसल, इस जोड़े ने 2015 में शादी की और 2019 में उनका एक बेटा हुआ. महिला पालनपुर सिविल अस्पताल में नर्स के रूप में काम करती है. उसने 2017 में अपने बेटे के साथ ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने चली गई.
लड़की की शिकायत थी कि उनके पति और ससुराल वाले उन्हें जबरदस्ती ऑस्ट्रेलिया में ले जाना चाहते थे, लेकिन वह नहीं जाना चाहती थी.
पति ने की कोर्ट में शिकायत
इसके बाद पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए पालनपुर में एक फॅमिली कोर्ट में मुकदमा दायर किया और अदालत ने पत्नी को पति के साथ रहने का आदेश दिया. इस आदेश को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद जस्टिस जेबी पारदीवाला और निरल मेहता की बेंच ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पत्नी को पति के साथ रहने और दाम्पत्य अधिकार स्थापित करने का आदेश दिया गया था.
हाई कोर्ट ने सिविल प्रोसीजर कोड के आदेश XXI नियम 32(1) का हवाला दिया और कहा कि कानून के प्रावधान के पीछे का उद्देश्य यह है कि अगर पत्नी या पति साथ में रहने से इनकार करते हैं तो कोई भी व्यक्ति किसी महिला या उसकी पत्नी को साथ में रहने और वैवाहिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. ऐसे मामलों में कोई भी डिक्री या उन्हें दाम्पत्य अधिकारों (Conjugal Rights) को स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती.
क्या कहता है संविधान?
अगर पति या पत्नी साथ नहीं रहना चाहते हैं तो उन्हें कोई भी मजबूर नहीं कर सकता है. संविधान जिस सेक्शन 9 की बात करता है उसमें भी यही कहा गया है. एक केस में तमिलनाडू हाई कोर्ट ने पत्नी को साथ में रहने के लिए कहा था, लेकिन जब लेटर स्टेट में आर्डर आया तो इसमें उन्होंने कहा कि कोर्ट किसी को बाइंड नहीं कर सकता है. सेक्शन 9 के अंदर यह कहा गया है कि अगर आपको साथ में रहना है तो एक छत के नीचे रहना होगा. इस दौरान अगर पति या पत्नी को ऐसा लग रहा है कि रिलेशन ठीक नहीं चल रहा है और किसी भी तरह की कोई हिंसा जैसे मार पिटाई, दहेज़ की मांग आदि है और वो दोनों साथ में रह रहे हैं तो इन ग्राउंड पर अलग हुआ जा सकता है. अगर आपकी शादी हुई है तो आपको साथ में रहना होगा या आपको तलाक लेना होगा.
कोई भी जबरदस्ती दो लोगों को साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. क्योंकि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को जीने का अधिकार दिया हुआ है. कोई न्याय, कोई ऑर्डर किसी को साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. हां, ये जरूर है कि कुछ पैरामीटर्स हैं, जिसके बेसिस पर सही और गलत का निर्णय होता है, उसके आधार पर तय किया जा सकता है कि साथ रहना पड़ेगा या नहीं. इसका बेसिक प्रिंसिपल ये है कि अगर साथ रहने का माहौल है तो साथ रह सकते हैं और नहीं है तो तलाक लेकर एक दूसरे से अलग हो सकते हैं. पार्टनर हिंसा करेगा तो कोई कोर्ट साथ में रहने के लिए नहीं कह सकता.
पति की संपत्ति नहीं है पत्नी, कोर्ट नहीं कर सकता साथ रहने को मजबूर: SC
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी एक ऑर्डर में कहा था कि एक महिला अपने पति की संपत्ति नहीं है, पति उसे अपने साथ में रहने पर मजबूर नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा जिसमें एक पति ने कोर्ट से अपनी पत्नी को फिर से उसके साथ रहने के लिए आदेश देने की मांग की थी.
जस्टिस संजय किशन कौल और हेमंत गुप्ता की सुप्रीम बेंच ने इसपर कहा, "तुम क्या सोचते हो? क्या एक महिला कोई संपत्ति है कि हम ऐसा आदेश पारित कर सकते हैं? क्या पत्नी आपकी संपत्ति है कि उसे आपके साथ जाने के लिए निर्देशित किया जा सकता है?"
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