जिला प्रशासन के एक अधिकारी के मुताबिक मस्जिद तल पर बने इस वजू खाने में कई नल लगे, जिसमें वाराणसी नगर निगम का पानी आता है और वजू करने के लिए नमाजी इसमें अपना हाथ पाव धोते रहें हैं. दरअसल नल से आने वाले पानी से जब वजू होता है तो वही पानी इस कुंड में जमा हो जाता है. लगभग 25 x25 के इस कुंड के बीचो-बीच एक कुआं नुमा घेरा है जिसके भीतर शिवलिंग है ऐसा दावा हिंदुओं का है, पानी से इस भरे हुए वजू कुंड में न तो वह गोल घेरा दिखता है ना ही उसके भीतर कथित शिवलिंग. इसलिए ज्यादातर नमाज़ियों को ये मालूम ही नहीं कि इस घेरे में क्या है क्या है.
सिर्फ मस्जिद कमिटी के लोग जो साल में इसकी सफाई कराते है वही जानते हैं कि इसके भीतर शिवलिंग जैसा एक पत्थर है जिसे वो पुराना फव्वारा कहते हैं. कोर्ट कमिश्नर की टीम ने भी पहले इस कुंड के पानी को कम कराया फिर बाहर से उस गोल घेरे तक सीढ़ी लगाई गई और झांक कर देखा गया तो ये शिवलिंग जैसी आकृति मिली,जिसकी पूरी फोटोग्राफी की जा चुकी है.
साल भर में जब कभी सफाई होती है तब पूरा पानी निकाला जाता है,वायरल हो रहा वीडियो भी सफाई के वक्त का है...इस वजू कुंड में करीब डेढ़ से 2 महीने में इसका पानी भर जाता है जिसे पाइप के जरिए बाहर टैंकर तक लाया जाता है और फिर टैंकर उस पानी को ले जाता है जानकारी के मुताबिक सफाई के दिनों के अलावा कभी पूरा पानी नही निकाला जाता, 1-2 टैंकर पानी कम किया जाता है फिर जब उतना भर जाता है तो उसे निकाल लिया जाता. चूंकि इसमें मछलियां भी होती है इसलिए पूरा पानी सिर्फ साल 2 साल में 1 बार सफाई के लिए निकाला जाता है.
दरअसल इसमें पानी हर वक्त लगभग भरा होता है और वज़ू खाने के बीचों-बीच गोल कुआंनुमा एक गहरा कुंड है जिसमें शिवलिंग जैसी आकृति मिली है चुकी पानी भरा होता है इसलिए या गोल कुंड भी सालों भर पानी के भीतर डूबा रहता था. कोर्ट कमिश्नर की टीम ने जब मुआयना किया तो हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यहां भी मंदिर के प्रमाण हो सकते हैं इसलिए तल पर करीब 1 फुट छोड़कर बाकी पानी कम कराया गया, बाहर से लगाई गई सीढ़ियों के जरिए गोल घेरे तक पहुंचे विष्णु जैन ने सबसे पहले वहां जाकर देखा, विष्णु जी ने आज तक को बताया घेरे के भीतर कोई पानी का स्रोत नहीं था, न ही कोई पाइप लगाया गया था, नीचे तहखाने से भी उन्हें ऊपर जाती कोई पाइप नहीं दिखाई दी थी.
जबकि अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के वकील मेराजुद्दीन इस कुंड के भीतर फव्वारा है लेकिन वो नहीं जानते कि ये काम कैसे करता है क्योकि ये काफी पुराना है और तकनीकी विशेषज्ञ ही इस फव्वारे के function के बारे में बता सकते हैं. एक और नमाज़ी और इंतजामियां कमिटी से जुड़े रईस बताते हैं कि उन्होंने इस फव्वारे को चलते देखा है लेकिन ये नहीं जानते कि किस तकनीक पर काम करता है.
दूसरी तरफ हिंदू पक्ष का दावा है कि मुसलमानों के द्वारा जिसे फव्वारा बताया जा रहा है वहां फव्वारे का कोई सिस्टम है ही नहीं,ना तो कोई पाइप से वो जुड़ा है ना ही पुराने स्थापत्यकला के किसी फव्वारे का कोई चिन्ह है. सोहनलाल आर्य जो कि हिंदू पक्षकार हैं और उन्होंने खुद गोल घेरे में मौजूद शिवलिंग नुमा आकृति को देखा है उनके मुताबिक यह एक सम्पूर्ण शिवलिंग है,बिना किसी जोड़ का एक सम्पूर्ण पत्थर जिससे कुछ और नहीं जुड़ता हां इससे छेड़छाड़ की कोशिश जरूर हुई है.
बहरहाल इस कुंड को जानने और देखने वाले ये तो मानते हैं कि नगर निगम के नल 25x25 के इस कुंड के किनारे किनारे लगे है,जो वज़ू के लिए हैं लेकिन कुंड के बीचोबीच मौजूद उस गोल घेरे में स्वतः पानी का कोई स्रोत नहीं हैं, ना तो मस्जिद कमिटी की तरफ से वहां कोई पाइप मिला है ना ही कोई प्राकृतिक स्रोत.