इस साल महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू (Alluri Sitarama Raju) की 125 वीं जयंती मनाई जा रही है. सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश के भीमावरम शहर में स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की प्रतिमा का अनावरण किया और उन्हें याद किया. अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जा रही है जिसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी.
कौन है अल्लूरी सीताराम राजू?
दरअसल, अल्लूरी सीताराम राजू देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने पूर्वी घाट की जनजातियों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह के लिए खड़ा किया था. सीताराम राजू ने रम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया था. बता दें, रम्पा विद्रोह औपनिवेशिक सत्ता के अधिकार को चुनौती देने वाले सबसे तीव्र विद्रोहों में से एक के रूप में जाना जाता है. ये अगस्त 1922 से मई 1924 तक चला था.
अल्लूरी सीताराम राजू की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्लूरी न केवल आंध्र प्रदेश में बल्कि तेलंगाना, ओडिशा और कर्नाटक में भी पूजनीय हैं. और यही वजह है कि हाल ही में रिलीज हुई फिल्म RRR में उनके बारे में और इस महावीर योद्धा का पराक्रम वास्तविक जीवन में कैसा रहा था, इसके बारे में बताया गया है.
छापे के बाद छोड़ते थे पीछे एक नोट
इतना ही नहीं अल्लूरी सीताराम राजू को आंध्र प्रदेश के उत्तरी भाग में आदिवासी बैकवुड के रामपचोडावरम, अद्दतीगला, देवीपट्टनम और राजावोम्मंगी क्षेत्रों में पुलिस थानों से हथियार और गोला-बारूद जब्त करने के लिए भी जाना जाता है. उनका पैटर्न था की वे जाने से पहले, एक नोट भी छोटे थे कि वे अपने साथ क्या-क्या लेकर जा रहे हैं. इसका रिकॉर्ड कई थानों में है.
4 जुलाई का दिन क्यों महत्वपूर्ण है?
आपको बताते चलें कि 4 जुलाई के दिन अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती है. राष्ट्र के लिए निस्वार्थ सेवा का सम्मान करने के लिए इस दिन को चुना गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के भीमावरम में अल्लूरी की 30 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया. यहां हर शाम राष्ट्रगान के साथ साउंड एंड लाइट शो भी होगा.
भीमावरम में अल्लूरी ने अपने शुरुआती साल बिताए थे और यही वजह है इस जगह को उनकी मूर्ति के अनावरण के लिए चुना गया है.
कैसा रहा अल्लूरी का जीवन?
गौरतलब है कि अल्लूरी सीताराम राजू पहले अपने पिता के एक दोस्त द्वारा दिए गए 30 एकड़ के खेत में पैदीपुट्टा गांव में खेती करते थे. वे अपनी मां और भाई के साथ वहां काम करते थे. एक बार जब उनके पास हर्बल दवा के लिए कुछ आदिवासी आये तो उन्होंने उनके प्रति सहानुभूति जताई. अपने पिता के दोस्त की मृत्यु के बाद, अल्लूरी ने अपनी मां और भाई को भीमावरम भेज दिया और वे खुद आदिवासी समुदायों के साथ काम करने के लिए जंगलों में चले गए. वे सशस्त्र संघर्ष में विश्वास रखते थे और यही वजह है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के लिए बलिदान कर दिया.
इसके अलावा उन्होंने मद्रास वन अधिनियम, 1882 (यह क्षेत्र तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था) का विरोध किया. इसका ये फायदा हुआ कि जिन जनजातियों को पोडु (शिफ्ट खेती) में लिप्त होना पड़ रहा था उससे उन्हें निजात मिल गया.
ऐसे हुई मृत्यु
अल्लूरी का जन्म 4 जुलाई, 1897 को पश्चिम गोदावरी जिले के पलाकोडेरु मंडल के मोगल्लु गांव में हुआ था. उनके पिता वेंकट रामा राजू एक पेशेवर फोटोग्राफर थे, जिनकी मृत्यु आठ साल की उम्र में हो गई थी. उनकी माता सूर्यनारायणम्मा थीं. अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने भीमावरम के लूथरन हाई स्कूल, टेलर हाई स्कूल, नरसापुरम और मिशन हाई स्कूल, विशाखापत्तनम से पढ़ाई पूरी की थी.
हालांकि, कुल 27 साल की छोटी सी उम्र में ही अल्लूरी शहीद हो गए. अल्लूरी को 1924 में गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद 7 मई को उन्हें एक पेड़ से बांधकर कोय्यूरु में सार्वजनिक रूप से दी गई फांसी में गोली मार दी गई थी. अल्लूरी के अनुकरणीय साहस के लिए उन्हें मान्यम वीरुडु सम्मान दिया गया था.