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Geeta Phogat Birthday: गीता फोगाट@33...हरियाणा के छोटे से गांव से निकलकर देश का नाम क‍िया रोशन, गोल्ड जीतकर कायम की मिसाल

Happy Birthday Geeta Phogat: खेलने-कूदने की उम्र में गीता को खूब मेहनत करनी पड़ी. गीता अपनी बहन बबीता के साथ सुबह दौड़ने जाती और जमकर करसत करती. अखाड़े में भी घंटों प्रैक्टिस करती. इरादे मजबूत थे और हौसला भी बुलंद था और इसी की बदौलत गीता ने देश का नाम रोशन किया और कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतकर मिसाल कायम की.

Geeta Phogat Images Geeta Phogat Images
हाइलाइट्स
  • 33 साल की हो गई गीता फोगाट

  • समाज का ताना भी किसी कुश्ती से कम नहीं था

  • 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतकर रचा इतिहास

दंगल फिल्म में एक डायलॉग है-"सिल्वर जीतेगी तो आज नहीं तो कल लोग तन्ने भूल जावेंगे. अगर गोल्ड जीती तो मिसाल बन जावेगी और मिसालें दी जाती है बेटा भूली नहीं जाती". आमिर खान ने फिल्म में ये डायलॉग अपनी बेटियों के लिए कहा था. असल जिंदगी में उन्हीं में से एक गीता फोगाट का जन्मदिन (Geeta Phogat Birthday) है. गीता आज अपना 33वां जन्मदिन मना रही हैं.

छोटे से गांव में हुआ था गीता का जन्म
राजधानी दिल्ली से करीब 106 किलोमीटर दूर हरियाणा के भिवानी जिले के एक छोटे से गांव बिलाली में साल 1988 में गीता का जन्म हुआ था. उस वक्त बेटियों का होना किसी अभिशाप से कम नहीं माना जाता था. लड़कियां न के बराबर ही स्कूल जाती थीं. बेटे की चार में फोगाट दंपती चार बेटियों के पिता बन गए. चारों बहनों में गीता सबसे बड़ी हैं. बाद में गीता के पिता महावीर सिंह को एहसास हुआ कि बेटियां बेटों से कम नहीं होती. उस वक्त जहां लोग लड़कियों को स्कूल तक नहीं भेजते थे तब महावीर सिंह ने दोनों बेटियों को उस राह पर भेजने का फैसला किया जिसके बारे सोचना नामुमकिन जैसा था.

मेहनत के साथ-साथ समाज का ताना भी कुश्ती से कम नहीं था
खेलने-कूदने की उम्र में गीता को खूब मेहनत करनी पड़ी. गीता अपनी बहन बबीता के साथ सुबह दौड़ने जाती और जमकर करसत करती. अखाड़े में भी घंटों प्रैक्टिस करती. गीता लड़कों से भी मुकाबला करती थी. गीता आगे तो बढ़ रही थी लेकिन समाज के लोगों के तानों को झेलना भी किसी कुश्ती से कम नहीं था. गांव के बाकी लोगों ने अपनी बेटियों को गीता से दूर रखना शुरू कर दिया. कोई गीता के पिता से कुछ कहता तो वे यही कहते थे कि जब लड़की प्रधानमंत्री बन सकती है तो पहलवान क्यों नहीं.

इरादे मजबूत थे और हौसला भी बुलंद था...
साल 2000 में सिडनी ओलंपिक में जब कर्णम मल्लेश्वरी ने वेट लिफ्टिंग में कांस्य जीता तो महावीर सिंह पर इसका गहरा असर हुआ. उन्हें यह लगा कि जब कर्णम मेडल जीत सकती हैं तो मेरी बेटियां क्यों नहीं. यहीं से उन्होंने बेटियों को चैंपियन बनाने की ठानी. गीता का संघर्ष जारी रहा. ऐसे ही लोगों के लिए किसी ने बिल्कुल ठीक लिखा है कि इरादे मजबूत और हौसला बुलंद हो तो दुनिया की कोई ताकत आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. ठीक इसी तरह गीता को कोई नहीं रोक पाया. समाज के लोग ताने देते रहे...गीता आगे बढ़ती और न सिर्फ एक के बाद एक मेडल जीते बल्कि एक मिसाल कायम किया. हरियाणा के छोटे से गांव से निकलकर गीता ने पूरे देश का नाम रोशन किया.

कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतकर रचा इतिहास
अपने मेहनत और जज्बे के साथ-साथ पिता की कोचिंग की बदौलत गीता ने जालंधर में साल 2009 में आयोजित राष्ट्रमंल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता. साल 2010 में दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में फ्री स्टाइल महिला कुश्ती के 55 किलोग्राम कैटेगरी में गोल्ड मेडल हासिल जीता. ऐसा करने वाली गीता पहली भारतीय महिला बन गई. साल 2012 में गीता ने एशियन ओलंपिक टूर्नामेंट में गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया.