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इस गांव में पहली बार किसी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर निकाली गई घुड़चढ़ी

अपना देश बदल रहा है. रूढ़िवादी परंपराएं ख़त्म हो रही हैं. हर‍ियाणा में बिना बाप की एक बेटी मिसाल बनी है. ढाणा लाडनपुर गाँव में उषा नामक की बेटी की घुडचढ़ी निकाली गई. गांव में पहली बार किसी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर घुड़चढ़ी निकाली गई. परिवार के साथ पूरे गाँव में ख़ुशी का माहौल दिखा. बेटी की घुड़चढ़ी देखने को पूरा गांव उमड़ा.

घोड़ी पर बैठी भ‍िवानी की उषा घोड़ी पर बैठी भ‍िवानी की उषा
हाइलाइट्स
  • हरियाणा में भिवानी के ढाणा लाडनपुर गाँव में निकाली गई बेटी की घुड़चढ़ी

  • परिवार के साथ पूरे गाँव में दिखा ख़ुशी का माहौल, बेटी भी घोड़ी से उतर कर नाच पड़ी

हरियाणा के भिवानी में बिन बाप की बेटी उषा देश की करोड़ों बेटियों के लिए नया उजाला बनी है. उषा ने अपनी शादी में सदियों पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुये घुड़चढ़ी निकाली. उषा और उसके परिजनों का कहना है कि ये सब बेटियों को बेटों के बराबर का दर्जा देने और खुले मन से आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिए किया है. 

आज देश के साथ हरियाणा की बेटियां हर क्षेत्र में अपना नाम कमा रही है. हरियाणा की फौगाट बेटियों पर फ़िल्म 'दंगल' बनी ज‍िसका एक डायलॉग 'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?' आज भी लोगों की जुबान पर है. बावजूद इसके कई क्षेत्रों, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बहुत सी बेटियाँ कई मामलों में रूढ़िवादी परंपराओं के चलते पिछड़ी हुई हैं. जिन्हें ख़त्म करने के लिए ढाणा लाडनपुर गाँव की बेटी और उनके परिजनों ने अनूठी पहल शुरू की. 

उच्च शिक्षा हासिल कर सरकारी नौकरी कर रही उषा ने अपनी शादी पर शादियों पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुये घुड़चढ़ी निकाली. उषा को घोड़ी पर बैठा देखने के ल‍िए पूरा गांव उमड़ पड़ा. उषा के परिजन नाच उठे. अपना इतना मान सम्मान और खुशी देख उषा अपने आप को रोक नहीं पाई. उषा भी इस गर्व और खुशी के पलों को यादगार बनाते हुये घोड़ी से उतरी और नाचने लगी.

उषा ने बताया कि उसके माता पिता ने कभी बेटा बेटी में भेदभाव नहीं किया. उषा ने कहा कि उनके गांव में ये नई पहल शुरू हुई है जो बेटियों को प्रोत्साहित करेगी. उसने कहा कि हर किसी को अपनी बेटी को शिक्षा के साथ हर वो चीज़ देनी चाहिए जिससे वो खुले मन से बेटों की बराबरी करते हुए आगे बढ़ सके. 

वहीं उषा की मां अपनी बेटी की शादी पर शुरू हुई इस पहल से बेहद खुश दिखीं. वहीं उषा के चचेरे भाई प्रीतम और चांद ने कहा कि उषा के पिता आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा दी गई शिक्षा और संस्कार से उषा आज इस मुक़ाम पर है और बेटियों का मनोबल बढ़ाने तथा प्रोत्साहन के लिए ये पहल शुरू की है.

सच कहते हैं कि संस्कार और शिक्षा ही एक इंसान को सभ्य व कामयाब बनाते हैं. ऐसा इंसान ही समाज में बदलाव करता है जिसका जीता-जागता उदाहरण उषा है. अब देखना होगा कि उषा की ये पहल समाज को सुधारने में कितनी सार्थक सिद्ध होती है. 

(भिवानी से जगबीर घनघस की र‍िपोर्ट)