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Major Payal Chhabra: कलायत की बेटी मेजर पायल छाबड़ा ने हरियाणा का नाम किया रोशन, देश की पहली पैरा कमांडो बनीं, जानिए उनकी सफलता की कहानी

हरियाणा की रहने वाली मेयर पायल छाबड़ा देश की पहली महिला पैरा कमांडो बन गई हैं. वह जनवरी 2021 में भारतीय सेना में शामिल हुई थीं. मेजर पायल छाबड़ा केंद्र शासित प्रदेश लेह लद्दाख के आर्मी अस्पताल में विशेषज्ञ सर्जन के तौर पर सेवाएं दे रही हैं.

हरियाणा की रहने वाली मेयर पायल छावड़ा (Photo: Social Media) हरियाणा की रहने वाली मेयर पायल छावड़ा (Photo: Social Media)
हाइलाइट्स
  • देश की पहली महिला पैरा कमांडो बनीं पायल छाबड़ा

  • जनवरी 2021 में सेना में हुईं थीं शामिल

हरियाणा के शहर कलायत की रहने वाली मेयर पायल छाबड़ा ने देशभर में अपने राज्य का नाम रोशन किया है. मेयर पायल छाबड़ा ने सशस्त्र बल ( Armed forces ) चिकित्सा सेवाओं में डॉक्टर रहते हुए पैरा परीक्षा पास कर कमांडो बनने का गौरव हासिल किया है. मेजर पायल छाबड़ा केंद्र शासित प्रदेश लेह लद्दाख के आर्मी अस्पताल में विशेषज्ञ सर्जन के तौर पर सेवाएं दे रही हैं. पायल छावड़ा ने यह उपलब्धि हासिल करके युवाओं के लिए मिसाल कायम की हैं.

दौलत नहीं राष्ट्र सेवा चुनी

जनवरी 2021 में पायल छाबड़ा को अंबाला कैंट के आर्मी अस्पताल में कैप्टन के तौर पर पहली नियुक्ति मिली थी. पायल के परिवार ने कहा है कि उनके लिए राष्ट्र सेवा का संकल्प हमेशा से अहम रहा है. उनके बड़े भाई संजीव छाबड़ा ने कहा कि देश व विदेश के बहुत से नामी मल्टी स्पेशलिस्ट अस्पतालों ने बड़े ऑफर दिए थे, लेकिन उन्होंने इन ऑफर को ठुकरा दिया.

सेना में मिला मैरून बेरेट

भारतीय सेना में महिला सर्जन मेजर पायल छाबड़ा ने स्पेशल फोर्सेज का पैरा प्रोबेशन पास कर मैरून बेरेट (टोपी) प्राप्त की है. बता दें कि भारतीय सेना में नौ रंगों की बेरेट होती है जिनका अलग-अलग महत्व है. मैरून बेरेट सेना के स्पेशल फ्रंटियर फोर्सेज और रेजिमेंट सैनिकों को दिया जाता है.

आसान नहीं पैरा कमांडो की ट्रेनिंग

बता दें कि पैरा कमांडो बनने के लिए उम्मीदवारों को बेहद कठिन और जटिल ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. यूपी के आगरा एयरफोर्स ट्रेनिंग स्कूल में पैरा कमांडो का प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके लिए सेना के जवानों को उत्तम स्तर की शारीरिक और मानसिक फिटनेस का होना जरूरी है. पायल ने बताया कि पैरा कमांडो बनने का सफर आसान नहीं है. ट्रेनिंग की शुरुआत सुबह तीन से चार बजे के बीच हो जाती है. अमूमन 20 से 65 किलोग्राम वेट (पिठू) लेकर 40 किलोमीटर तक दौड़ना और ऐसे अनेक जटिल टास्क को पूरा करना पड़ता है.