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Inspirational: बिछड़ों को उनके परिवारों से मिलवा रहा है यह पुलिस अफसर, अब तक कर चुके हैं 846 लोगों की मदद, कोई 10 तो कोई 15 साल बाद मिला अपनों से

हरियाणा के असिस्टेंट सब-इंसपेक्टर (ASI) राजेश कुमार पिछले 8 सालों से बिछड़ो को अपनों से मिलवा रहे हैं. जो लोग बचपन में अपने परिवार से बिछड़ गए और सालों बाद उनसे फिर मिलने की उम्मीद छोड़ चुके थे, ऐसे लोगों की जिंदगी में राजेश उम्मीद का दिया बन रहे हैं.

ASI Rajesh Kumar (Photo: X/@ASIRajeshKumar2) ASI Rajesh Kumar (Photo: X/@ASIRajeshKumar2)
हाइलाइट्स
  • 846 लोगों को मिलवाया उनके परिवार से

  • 8 साल से कर रहे हैं यह काम

एक समय था जब लोग पुलिस के नाम से भी घबराते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में यह धारणा बदली है और इसका श्रेय ऐसे पुलिसकर्मियों को जाता है जो अपनी ड्यूटी से परे जाकर आम लोगों की मदद कर रहे हैं. इन्ही में से एक हैं हरियाणा के असिस्टेंट सब-इंसपेक्टर (ASI) राजेश कुमार. राजेश कुमार पिछले 8 सालों से बिछड़ो को अपनों से मिलवा रहे हैं. जो लोग बचपन में अपने परिवार से बिछड़ गए और सालों बाद उनसे फिर मिलने की उम्मीद छोड़ चुके थे, ऐसे लोगों की जिंदगी में राजेश उम्मीद का दिया बन रहे हैं. 

42 वर्षीय राजेश कुमार अब तक 846 बच्चों, पुरुष और महिलाओं को अपने परिवारों से मिलवाया है. बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो 10 साल पहले या 12-15 साल पहले अपनों से बिछड़े थे. द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राजेश ने दिल्ली की रहने वाली 26 वर्षीय लालमणि को 16 साल बाद अपने परिवार से मिलवाया. दिल्ली के रोहिणी के एक निजी स्कूल में पढ़ाने वाली लालमणि राष्ट्रीय राजधानी के दो आश्रय गृहों में पली-बढ़ी. वह सात साल की उम्र में खो गई थीं और फिर पुलिस ने उन्हें शेल्टर होम में छोड़ दिया. लालमणि को कोई उम्मीद नहीं थी कि वह कभी अपने परिवार से मिल पाएंगी. लेकिन जब उन्होंने राजेश कुमार के बारे में सुना तो एक बार किस्मत आजमाने की सोची. 

16 साल बाद मिलवाया परिवार से 
जब लालमणि ने राजेश कुमार से संपर्क किया, तो उन्हें अपने परिवार की एकमात्र याद यह थी कि उनकी मां की उंगली एक लोकल चावल मिलिंग मशीन से कट गई थी. राजेश कुमार ने इस मशीन के बारे में जानकारी हासिल की कि झारखंड में आमतौर पर यह मशीन इस्तेमाल होती है. उन्होंने झारखंड में अपने संपर्कों को सचेत किया और जब तक उनके वह सफल नहीं हुए लगातार कोशिशों में जुटे रहे. लालमणि 16 साल के लंबे समय के बाद झारखंड में अपने परिवार से फिर मिलीं. 

लालमणि और उसकी मां को मानव तस्करी रैकेट के तहत हाउसहेल्प के रूप में काम करने के लिए दिल्ली लाया गया था. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 2005 में, वे नौकरी की तलाश में दिल्ली आए थी. लालमणि को एक अलग घर में रखा गया. साल 2006 में एक दिन, लालमणि अपनी मां से मिलने के लिए घर से निकली और लापता हो गई. लालमणि ने एक एनजीओ की मदद से अपनी स्कूली शिक्षा और नर्सरी टीचर ट्रेनिंग पूरी की. वह अपने परिवार से मिलने के लिए अपने पैतृक गांव गईं और अब दिल्ली में अपनी नौकरी जारी रख रही हैं. 

कैसे हुई इस काम की शुरुआत 
राजेश कुमार पिछले आठ सालों से इस मिशन में जुटे हैं. दिसंबर 2024 में, हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने उन्हें उनके प्रयासों के लिए 'डीजीपी उत्तम सेवा पदक' से सम्मानित किया था. राजेश कुमार का यह मिशन साल 2015 में पंचकुला आश्रय गृह का एक दौरा करने के बाद शुरू हुआ. यह उनके आधिकारिक कर्तव्य का भी हिस्सा है. जब भी कोई बच्चा या लापता व्यक्ति अपने परिवार से मिल जाता है, तो यह ऐसे और कई अन्य परिवारों को आशा देता है. राजेश कुमार पंचकुला में हरियाणा पुलिस की एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट में तैनात हैं, जो स्टेट साइबर ब्रांच के तहत काम करता है. 

राजेश का कहना है कि दिसंबर 2015 में उन्होंने लापता बच्चों के माता-पिता का पता लगाने के लिए काम करना शुरू किया. अब उनके पास फेसबुक पर एक पेज है जहां लापता बच्चों के बारे में जानकारी डाली जाती है और यह 10 व्हाट्सएप ग्रुप्स का हिस्सा है, जिसमें पुलिस अधिकारी, एनजीओ सदस्य और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी सदस्य हैं. 

आधार कार्ड डिटेल्स बनीं मददगार 
हरियाणा की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ममता सिंह ने राजेश कुमार की तारीफ की और साथी ही, बताया कि आधार डिटेल्स ने कई बच्चों को उनके परिवारों के साथ पुनर्मिलन में मदद की है. साल 2024 में आधार की मदद से पांच लोगों को उनके परिवारों से फिर से मिलाया गया. पुलिस की टीम शेल्टर होम्स के लोगों का आधार कार्ड बनवाने की पहल कर रही है ताकि बायोमैट्रिक डिटेल्स से मदद मिल सके. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 21 साल के सतबीर सिंह को आधार की मदद से उनके परिवार से मिलवाया गया. सिंह हरियाणा के करनाल जिले में गांव शाम्बी के रहने वाले हैं. वह 10 साल के थे जब एक गुरुद्वारा गए और यहां से लापता हो गए. परिवारों को फिर से मिलाने के कुमार के प्रयासों के सफल होने पर, 2022 में पुलिस विभाग ने उन्हें मनीष कुमार का मामला भी सौंपा, जो 2013 में यमुनानगर से लापता हो गया था जब वह सिर्फ 10 साल का था, डांट के बाद मनीष ने अपना घर छोड़ दिया था।

उन्होंने कहा, “परिवार ने मुझे बताया कि मनीष के कूल्हे का ऑपरेशन हुआ है. मैंने उसकी तस्वीरें विशेष रूप से खोए और पाए गए बच्चों के लिए बनाए गए विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप्स में भेजीं. मुझे लखनऊ के एक शेल्टर होम से जवाब मिला. मैंने उनसे उसके कूल्हे की तस्वीर भेजने को कहा. जब मैंने यह तस्वीर उनके भाई राहुल के साथ साझा की, तो उन्होंने तुरंत अपने भाई को पहचान लिया." 

आत्मा को मिलती है संतुष्टि और शांति 
ज्यादा से ज्यादा लापता लोगों का पता लगाने के प्रयास में, कुमार आश्रय गृहों को फोन करते रहते हैं. 2018 में शिमला के एक चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट में ऐसे ही एक फोन कॉल के दौरान उन्हें पूजा शर्मा नाम की लड़की के बारे में पता चला. जब वह महज छह साल की थी तब वह लापता हो गई थी. अपने नाम और अपने पिता के नाम के अलावा, उसे याद था कि उसके घर के सामने बहुत सारे सूती धागे होते थे. 

इस जानकारी से कुमार को लगा कि वह पंजाब के लुधियाना या हरियाणा के पानीपत से हो सकती है. उन्होंने जांच की और पानीपत के मॉडल टाउन पुलिस स्टेशन में 2007 में एक लापता लड़की के बारे में दर्ज रिपोर्ट के बारे में पता चला. आख़िरकार, जुलाई 2018 में वह लड़की अपने परिवार से दोबारा मिल सकी. राजेश कुमार के काम की हर कोई सराहना करता है. राजेश कहते हैं कि इस काम को करके उनकी आत्मा को संतुष्टि और शांति मिलती है.