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Haryana Siyasi Kisse: Bhupinder Hooda को क्यों कहा जाता है जायंट किलर, क्या है ताऊ Devi Lal से कनेक्शन, जानिए हरियाणा का ये सियासी किस्सा

Haryana Siyasi Kisse: भूपेन्द्र हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे थे लेकिन बार-बार हार का सामना करना पड़ रहा था. फिर ममेरे भाई की एक सलाह की वजह से भूपेन्द्र हुड्डा (Bhupinder Hooda Haryana) ने जायंट किलर का मुकाम हासिल किया.

Bhupinder Hooda Haryana (Photo Credit: Getty Images) Bhupinder Hooda Haryana (Photo Credit: Getty Images)
हाइलाइट्स
  • भूपेन्द्र हुड्डा के पिता रोहतक से सांसद रहे

  • भूपेन्द्र हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं

  • हुड्डा ने ही हरियाणा की सत्ता में 'लाल' का रसूख खत्म किया था

Haryana Siyasi Kisse: भूपेन्द्र हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) हरियाणा में कांग्रेस के बड़े नेता हैं. भूपेन्द्र हुड्डा हरियाणा (Bhupinder Hooda Haryana) के मुख्यमंत्री रहे हैं. हरियाणा में तीन लाल के परिवार के राज को भूपेन्द्र हुड्डा ने ही खत्म किया था.  

भूपेन्द्र हुड्डा के बेटे दीपेन्द्र हुड्डा (Deependra Hooda Congress) सांसद हैं और कांग्रेस के युवा नेताओं में से एक है. हुड्डा परिवार कांग्रेस में गांधी परिवार के काफी करीब है. भूपेन्द्र हुड्डा वो नेता हैं जिनके आगे भजन लाल (Bhajan Lal Haryana) की भी नहीं चली थी. 

भूपेन्द्र हुड्डा को जायंट किलर कहा जाता है. इसके पीछे भूपेन्द्र हुड्डा का हरियाणा के ताऊ देवी लाल (Devi Lal Haryana) से संबंध है. आइए जानते हैं कब और कैसे भूपेन्द्र हुड्डा को जायंट किलर कहा जाने लगा?

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भूपेन्द्र हुड्डा की राजनीति
ये बात तो 1991 की है लेकिन भूपेन्द्र हुड्डा की पॉलिटिक्स 1982 से शुरू होती है. भूपेन्द्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह दो बार रोहतक से सांसद रहे. बड़े भाई कैप्टन प्रताप सिंह 1972 में किलोई विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन हार गए.

भूपेन्द्र हुड्डा ने किलोई से ही 1982 का विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. इसके बाद साल 1987 में भी हुड्डा ने किलोई विधानसभा से ही किस्मत आजमाई लेकिन फिर से हार मिली. साल 1990 तक भूपेन्द्र हुड्डा का राजनीतिक सफर अच्छा नहीं रहा.

1991 में खुली किस्मत
साल 1991 में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे थे. भूपेन्द्र हुड्डा किलोई विधानसभा से अपनी दावेदारी ठोक रहे थे. उस समय कांग्रेस में सीट वितरण का काम हुड्डा के ममेरे भाई बिरेन्द्र सिंह कर रहे थे.

बिरेन्द्र सिंह ने भूपेन्द्र हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी. किलोई विधानसभा की सीट कृष्णमूर्ति हुड्डा को दे दी गई. वहीं भूपेन्द्र हु्ड्डा को रोहतक का टिकट मिला.

ऐसे बने जायंट किलर
रोहतक में भूपेन्द्र हुड्डा के सामने थे ताऊ देवी लाल. चौधरी देवी लाल दो बार उप प्रधानमंत्री और दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके थे. ऐसे में भूपेन्द्र हुड्डा के लिए मुकाबला आसान नहीं था.

जब 1991 के लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आया तो सभी हैरान रह गए. भूपेन्द्र हुड्डा ने देवी लाल को 30 हजार के बड़े मार्जिन से हरा दिया. उस समय देवी लाल को हराना बहुत बड़ी बात थी. इसके बाद भूपेन्द्र हुड्डा को जायंट किलर कहा जाने लगा.

दिल्ली में हुड्डा
सांसद बनकर भूपेन्द्र हुड्डा दिल्ली पहुंच गए. पॉलिटिक्स ऑफ चौधर में सतीश त्यागी लिखते हैं कि दिल्ली पहुंचकर भूपेन्द्र हु़ड्डा खुश थे. हुड्डा अक्सर कहा करते थे कि चंडीगढ़ का रास्ता दिल्ली होकर जाता है.

राजीव गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में कांग्रेस पूरी तरह से बदल गई. अब कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार से निकलकर नरसिम्हा राव (P. V. Narasimha Rao) और सीताराम केसरी (Sitaram Kesri) के पास पहुंच गया. ये कांग्रेस का राव-केसरी दौर था.

देवीलाल को हराने की हैट्रिक
साल 1996 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए. भूपेन्द्र हुड्डा को फिर से लोकसभा की सीट दी गई. एक बार फिर से चौधरी देवी लाल सामने थे. भूपेन्द्र हुड्डा देवी लाल को हराने में दोबारा कामयाब रहे.

साल 1997 में भूपेन्द्र हुड्डा को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया.  साल 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस में आ गईं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi)  ने सीताराम केसरी को कांग्रेस से बेदखल कर दिया. 

कांग्रेस में बड़ा रसूख
साल 1998 में लोकसभा चुनाव हुए. भूपेन्द्र हुड्डा ने लगातार तीसरी बार ताऊ देवी लाल को लोकसभा चुनावों में पटखनी दे दी. देवी लाल के खिलाफ जीत की हैट्रिक ने उनको कांग्रेस में अलग मुकाम दे दिया. 

हरियाणा में भूपेन्द्र हुड्डा बड़े नेता बन चुके थे. अब बस भूपेन्द्र हुड्डा को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना था. इसकी शुरूआत साल 2000 में हो गई. यहीं से भजन लाल और भूपेन्द्र हुड्डा का टकराव शुरू हो गया.