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Himachal High Court का फैसला- तलाकशुदा पत्नी पर Adultery का आरोप लगाने वाले पति को देना होगा गुजारा भत्ता

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई भी पति अपनी तलाकशुदा पत्नी को इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता है कि उसका किसी दूसरे मर्द के साथ अवैध संबंध हैं. जानिए क्या है पूरा मामला.

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा महिला को सिर्फ इस आधार पर भरण-पोषण भत्ता देने से मना नहीं किया जा सकता है कि वह अडल्टरी (adultery) में रह रही है. दरअसल, एक व्यक्ति ने अपनी तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण भत्ता देने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि उसकी तलाकशुदा पत्नी किसी के साथ अडल्टरी में रह रही है. ऐसे में वह पत्नी को गुजाराभत्ता क्यों दे. लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया. 

क्या था पूरा मामला 
दरअसल, अडल्टरी (कथित तौर पर पत्नी की बेवफाई) के आधार पर फरवरी 2007 में पति के पक्ष में तलाक की डिक्री दी गई थी. जनवरी 2009 में, शिमला की एक जेएमएफसी अदालत ने अंतरिम भरण-पोषण का आदेश जारी कर पति को अपनी पूर्व पत्नी को प्रति माह ₹1,000 का भुगतान करने का निर्देश दिया. 

पति ने इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन जिला न्यायाधीश (वन), शिमला ने दिसंबर 2013 में उसकी रिविजन पेटीशन खारिज कर दी. मेंटेनेंस ऑर्डर को लागू करने के लिए, पत्नी ने CrPC की धारा 128 के तहत एक आवेदन दायर किया. जवाब में, पति ने याचिका पर आपत्ति दर्ज करते हुए तर्क दिया कि पत्नी सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है, जिसके मुताबिक अगर पत्नी अडल्टरी में रह रही है तो भरण-पोषण नहीं मिलता है. 

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पति ने दावा किया कि परित्याग, क्रूरता और व्यभिचार के आधार पर उसके पक्ष में तलाक की डिक्री दी गई थी और पत्नी की याचिका को खारिज करने की मांग की. अपने बचाव में, पत्नी ने कहा कि उसे तलाक के बारे में मई 2008 में ही पता चला और हालांकि उसने तलाक की डिक्री को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, लेकिन उसे जान से मारने की धमकी मिलने लगी तो वह केस आगे नहीं बढ़ा सकीं. इसके अलावा, पत्नी ने पति के अडल्टरी आरोप से भी इनकार कर दिया और अदालत से पति की आपत्तियों को खारिज करने की मांग की. 

ट्रायल कोर्ट ने दिया यह फैसला
इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि तलाक की डिक्री के बावजूद अंतरिम भरण-पोषण आदेश वैध था. अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पति ऑर्डर का तब तक पालन करने के लिए बाध्य है जब तक कि उसमें बदलाव न किया गया हो या उसे रद्द नहीं किया गया हो. इस कारण, पति की अचल संपत्ति के लिए कुर्की का वारंट जारी किया गया था. 

इसी आदेश को चुनौती देते हुए, पति ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि पत्नी अडल्टरी में रह रही है और सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है. दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि अडल्टरी के आधार पर तलाक की डिक्री पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं करती है क्योंकि धारा 125(4) उन पत्नियों पर लागू होती है जो अभी भी अपने पति के साथ विवाह में रहते हुए अडल्टरी करती हैं. यह उन पत्नियों पर लागू नहीं होता है जिनका तलाक हो चुका है. 

हाई कोर्ट का फैसला 
इस मामले में हाई कोर्ट ने शुरुआत में रोहताश सिंह बनाम रामेंद्री मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि अगर कोई पत्नी अडल्टरी में रह रही है, अपने पति के साथ रहने से इंकार कर दिया है, या आपसी सहमति से अलग रह रही है; तो वह अपने पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी. हालाँकि, ये शर्तें सिर्फ वैवाहिक संबंध जारी रहने तक ही लागू होती हैं, तलाक के बाद नहीं. 

हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वपन कुमार बनर्जी बनाम डब्ल्यूबी राज्य 2019 में इस फैसले का पालन किया, जिसमें यह माना गया था कि एक तलाकशुदा महिला उस व्यक्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है जिससे उसकी शादी हुई थी. इसे देखते हुए, हाई कोर्ट के जस्टिस राकेश कैंथला की बेंच ने पति के वकील की दलील को खारिज कर दिया.