हर साल एक सितंबर से 15 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा के तौर पर मनाया जाता है. जबकि 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. ये दिन हर भारतवासी के लिए गर्व का दिन है. सांस्कृतिक विविधता वाले देश में हिंदी दिवस की अहमियत बहुत ज्यादा है. इस मौके पर हम कविताओं की कुछ ऐसी लाइनों को लेकर आए हैं, जो आपके दिल को झकझोर देंगी. इन लाइनों का इस्तेमाल अक्सर लोग अपने स्टेट पर करते हैं या अपनी बात को कम्युनिकेट करने के लिए इन कविताओं की इन लाइनों का इस्तेमाल किया जाता है. चलिए आपको 10 कविताओं की ऐसी ही लाइनों के बारे में बताते हैं.
पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती
नदी पार नहीं होती नदी में धंसे बिना...
-नरेश सक्सेना
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है...
-अदम गोंडवी
सांप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूं-
उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डँसना
इतना विष कहां पाया?
-अज्ञेय
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है...
-गोपालदास नीरज
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा-
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए...
-केदारनाथ अग्रवाल
मुसलमान औ हिंदू हैं दो,
एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय
एक मगर उनकी हाला।
दोनों रहते एक न जब तक
मंदिर मस्जिद में जाते
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद
मेल कराती मधुशाला
-हरिवंश राय बच्चन
सपनों के लिए लाज़िमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नज़र होना लाज़िमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते
-पाश
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ—
‘यह तीसरा आदमी कौन है?’
मेरे देश की संसद मौन है।
-धूमिल
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
-नागार्जुन
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