scorecardresearch

Hindi Theatre day: हिंदी रंगमंच दिवस का क्या है इतिहास और महत्त्व, 3 अप्रैल को ही पहले हिंदी नाटक का हुआ था मंचन

Hindi Rangmanch Divas: बनारस में 3 अप्रैल 1868 की शाम पहली बार जानकी मंगल नाटक का मंचन हुआ था. इसमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने लक्ष्मण की भूमिका निभाई थी. दर्शकों ने उनके अभिनय को खूब सराहा था. 

एक नाटक में अभिनय करते कलाकार (फाइल फोटो) एक नाटक में अभिनय करते कलाकार (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • जानकी मंगल के मंचन से पहले लक्ष्मण की भूमिका निभाने वाला लड़का पड़ गया था बीमार 

  • कैंटोनमेंट का असेंबली रूम्स एंड थियेटर को बाद में रायल थिएटर के नाम से भी जाना गया

हिंदी रंगमंच दिवस हर साल तीन अप्रैल को मनाया जाता है. 3 अप्रैल 1868 को बनारस में पहली बार शीतलाप्रसाद त्रिपाठी कृत हिन्दी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ था. विश्‍व रंगमंच दिवस हर साल 27 मार्च को मनाया जाता है.

नाटक को देखने के लिए जुटे थे लोग
बनारस में 3 अप्रैल 1868 की शाम पहली बार नाटक का मंचन हुआ था. पूरी काशी नगरी में गहमागहमी का माहौल था. क्या सेठ, क्या साहित्यकार सभी वर्गों के लोग कैंटोनमेंट के असेंबली रूम की ओर चले जा रहे थे. सभी में उत्सुकता थी, महाराज काशी नरेश द्वारा आयोजित नया तमाशा थियेटर देखने की. उसी दिन भारत में पहली बार शीतला प्रसाद त्रिपाठी कृत हिंदी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ. इसी आधार पर बाद में तीन अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस घोषित किया गया.

प्रामाणिक तौर पर किया है पुष्ट 
1967 में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास में पहली बार इस नाटक के मंचन को प्रामाणिक तौर पर पुष्ट किया. इंग्लैंड के 'एलिन इंडियन मेल' के आठ मई 1868 के अंक में भी उस नाटक के मंचन की जानकारी प्रकाशित हुई थी. इसी आधार पर पहली बार शरद नागर ने ही हिन्दी रंगमंच दिवस की घोषणा 3 अप्रैल को की थी.

हिंदी रंगमंच की स्थापना में काशी नरेश ने निभाई थी अहम भूमिका
हिंदी रंगमंच की स्थापना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तत्कालीन काशी नरेश ईश्वरीनारायण सिंह ने निभाई. उस समय नाट्य क्षेत्र में ब्रितानी मॉडल प्रभावी थे. काशी की पारंपरिकता, आधुनिकता के दबाव से बचने की कोशिश में बीच का रास्ता खोज रही थी.  तब आगे आए काशी के महाराज ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह. उन्होंने अपने दरबारी कवि गणेश को इस पर काम करने को कहा. गणेश ने जो नाटक लिखा वह पारंपरिक और छंदबद्ध था. महाराज संतुष्ट नहीं हुए. वह ऐसी परंपरा शुरू करना चाहते थे जो अंग्रेजी नाट्य प्रस्तुति का मुकाबला कर सके. तब उन्होंने यह जिम्मेदारी सौंपी पंडित शीतलाप्रसाद त्रिपाठी को. उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत नाटक, पारंपरिक रामलीला और यूरोपीय नाट्य तत्वों को मिलाकर जानकी मंगल तैयार किया. बाबू उश्वर्यनारायण प्रसाद सिंह ने रामलीला के कलाकारों संग रिहर्सल शुरू किया. प्रस्तुति का स्थान चुना गया कैंटोनमेंट का असेंबली रूम्स एंड थियेटर. बाद में इसे रायल थिएटर के नाम से भी जाना गया.

भारतेंदु ने निभाई थी लक्ष्मण की भूमिका
प्रस्तुति के पहले लक्ष्मण की भूमिका निभाने वाला लड़का बीमार पड़ गया. नाटक को स्थगित करने की नौबत आ गई. तभी 18 वर्षीय युवा भारतेन्दु हरिश्चंद्र वहां पहुंचे. उन्होंने लक्ष्मण की भूमिका करने को कहा. महाराज ने संवाद याद होना असंभव बताया तो उन्होंने घंटे भर में याद कर सुना दिया. इसके बाद नाटक का मंचन किया गया. 

खुद नाटक लिखना शुरू कर दिया
भारतेन्दु के मन में हिंदी नाटक लेखन का उत्साह जगा और उन्होंने खुद नाटक लिखना शुरू कर दिया. अपना नाट्य दल भी बनाया. जिसमें राधाकृष्ण दास, रविदत्त शुक्ल, दामोदर शास्त्री, पं. चिंतामणि, पं. माणिक लाल जोशी आदि थे. उन्होंने वाराणसी और बलिया के ददरी मेले में नाट्य प्रस्तुतियां दीं. इसके बाद तो काशी में नाटक करने के लिए नाट्य संस्थाओं का बनना आरंभ हो गया.