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रामसेतु का इतिहास क्या है, पौराणिक महत्व से लेकर कानूनी विवादों तक सबकुछ जानिए

रामसेतु के महत्व हिंदू और मुसलमानों दोनों ही धर्मों की पौराणिक कथाओं में जिक्र है. जहां एक तरफ इसे वानर सेना द्वारा बनाया गया रामसेतु मानते हैं, वहीं मुसलमानों का मानना है कि एडम ने इस पुल का उपयोग आदम की चोटी तक पहुंचने के लिए किया था.

रामसेतु रामसेतु
हाइलाइट्स
  • कई बार विवादों में रहा रामसेतु

  • इसके लिए बनी कई परियोजनाएं

अक्षय कुमार की नई फिल्म, रामसेतु का टीज़र, 26 सितंबर को रिलीज हुआ है. जिसने एक बार फिर से भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर बने राम सेतु की चर्चा शुरू कर दी है. कई लोगों का मानना है कि ये रामायण में वर्णित लंका का पुल है, जिसे वानर सेना ने बनाया था. राम सेतु क्या है, यह कई विवादों और कानूनी मामलों में क्यों रहा है, और इसका पारिस्थितिक महत्व क्या है, चलिए इन सब के बारे में आपको बताते हैं. 

क्या है रामसेतु?
रामसेतु, जिसे एडम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है, भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की 48 किलोमीटर की रेंज है. इस ब्रिज की खास बात ये है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की पौराणिक कथाओं में इसका इस सेतु का जिक्र किया गया है. जहां एक तरफ हिंदुओं का मानना ​​​​है कि यह भगवान राम और उनकी सेना द्वारा लंका पार करने और रावण से लड़ने के लिए बनाया गया पुल (सेतु) है, वहीं इस्लामिक कथाओं के अनुसार, एडम ने इस पुल का उपयोग आदम की चोटी तक पहुंचने के लिए किया था. जहां वह एक पैर पर 1,000 वर्षों तक पश्चाताप में खड़ा रहा.

क्या है वैज्ञानिकों का मानना?
वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है जो टेक्टोनिक मूवमेंट और कोरल में रेत के फंसने से बनती है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, यह दावा करने के लिए "सबूत" पेश किए गए हैं कि पुल मानव निर्मित है. कई हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों का तर्क है पुल पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं है. यह वास्तव में भगवान राम द्वारा बनाया गया था.

कई बार विवादों में रहा रामसेतु
राम सेतु मुद्दा एक बड़े विवाद में तब फंस गया जब यूपीए सरकार के दौरान सेतुसमुद्रम परियोजना को हरी झंडी दिखाकर सेतु के चारों ओर ड्रेजिंग करने का प्रस्ताव दिया गया, जिसमें दक्षिणपंथी निकायों और तत्कालीन विपक्षी भाजपा ने इसे हिंदू भावनाओं पर हमला बताया. राम सेतु पर विभिन्न अध्ययनों का प्रस्ताव किया गया है, सबसे हाल ही में 2021 में, जब सरकार ने इसकी उत्पत्ति का पता लगाने के लिए एक पानी के नीचे अनुसंधान परियोजना को मंजूरी दी थी।

क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना?
सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना का उद्देश्य 83 किलोमीटर लंबे गहरे पानी के चैनल का निर्माण करके भारत और श्रीलंका के बीच एक शिपिंग मार्ग बनाना है, जिससे भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच यात्रा का समय भी कम हो जाएगा. जिससे जहाजों को अब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच यात्रा करने के लिए श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. इस परियोजना को 1860 के दशक से ही प्रस्तावित किए गए हैं. ये प्रोजेक्ट एनडीए I सरकार के तहत शुरू हुई, जिसमें वाजपेयी शासन ने 2004 में 3,500 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी थी. हालांकि, उद्घाटन 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किया गया था. इस परियोजना को अदालत में चुनौती दी गई, जहां विवाद बढ़ गया.

परियोजना ने लिया सांप्रदायिक रंग
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत में एक हलफनामे में रामसेतु के अस्तित्व को खारिज कर दिया था. इससे इतना हंगामा हुआ कि न केवल हलफनामा वापस ले लिया गया, बल्कि एएसआई के दो अधिकारियों को भी निलंबित कर दिया गया. तब से, इस परियोजना ने और अधिक सांप्रदायिक रंग ले लिया. आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने 2007 में गौतम सेन का एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें लिखा था, "राम सेतु चैनल को इस आधार पर खोदना कि न तो राम थे और न ही कोई ऐतिहासिक पुल, बस अपमानजनक है. यह एक पूरी सभ्यता को उसकी नींव के कुओं को नकार कर अनाथ करने के बराबर है."

पर्यावरण के कारण हुआ परियोजना का विरोध
सेतुसमुद्रम परियोजना का पर्यावरणीय आधार पर भी विरोध किया गया है, कुछ का दावा है कि यह समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाएगा, और शोल की रेखा के ड्रेजिंग से भारत का तट सुनामी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगा.

परियोजना की वर्तमान स्थिति
मार्च 2018 में, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के निष्पादन में राम सेतु प्रभावित नहीं होगा. फिलहाल रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में है.