महारानी दुर्गावती भारत की प्रसिद्ध वीरांगना थीं, जिन्होंने मध्यप्रदेश में शासन किया था. उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 में महोबा के किले में चंदेल राजपूत राजा सलीबहन के परिवार में हुआ था. 1542 में उनकी शादी राजा संग्राम शाह के गोद लिए बेटे दलपत शाह से हुई. दुर्गावती को आज भी उनकी बहादुरी और साहस के लिए याद किया जाता है. आज ही के दिन वह मुगलों से जंग के दौरान शहीद हुईं थी.
पति की मौत के बाद संभाली थी गोंडवाना की बागडोर
महारानी दुर्गावती की शादी के आठ साल बाद ही उनके पति की मौत गई और दुर्गावती ने गोंडवाना की बागडोर संभाली. इसमें उन्हें दीवान बेहर आधार सिम्हा और मंत्री मान ठाकुर ने भरपूर मदद की और हर एक चीज से वाकिफ कराया. महारानी ने अपने पूरे क्षेत्र में शांति, व्यापार और सद्भावना को बढ़ावा दिया.
जब दुर्गावती के पति की मौत हुई तब उनका बेटा नारायण महज तीन साल का था. कम उम्र में पति की मौत के कारण कई बार उन्हें लोगों की बुरी नजर का सामना करना पड़ा था लेकिन, हमेशा सभी लोगों को मुंह की खानी पड़ी थी. सूबेदार बाज बहादुर ने रानी पर नजर डाली तो युद्ध के दौरान उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया, जिसके बाद वह कभी लौटकर नहीं आया.
अकबर ने रानी के खिलाफ बनाई थी योजना
1562 में, अकबर ने मालवा शासक बाज बहादुर को परास्त किया और मालवा पर विजय प्राप्त की, इसे मुगल प्रभुत्व बना दिया और रानी की राज्य सीमा ने मुगल साम्राज्य को छु लिया था. रानी का सामना अब एक मुगल जनरल ख्वाजा अब्दुल मजीद आसफ खान से था, जिन्होंने रीवा के शासक रामचंद्र को परास्त किया था. उन्हें दुर्गावती के राज्य की समृद्धि ने लुभाया था और वह इसपर कब्जा करना चाहते थे. इतना ही नहीं इस योजना को बनाने वाले अकबर थे.
इसके बाद भी दुर्गावती ने तीन मुस्लिम राज्यों को एक बार नहीं बल्कि तीन बार बार-बार युद्ध में परास्त किया. इसके बाद सभी राज्य महारानी के सामराज्य से इतना डरे हुए थे की उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना बंद कर दिया. महारानी ने पूरे 16 साल तक राज संभाला.
कहा जाता है कि अकबर ने कई बार दुर्गावती के साम्राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन, उन्होंने हर बार झुक जाने के बदले युद्ध के मैदान को चुना. जब धीरे-धीरे कर उनके सभी सेनिकों को मार दिया गया तो महारानी ने मुगलों से जंग के दौरान कई शत्रुओं को पराजित कर 1564 में बलिदान दे दिया.
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