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दिल्ली के हर रंग को समेटे हुए है मुगल गार्डन, जानें क्या है इसका इत‍िहास और इसकी खासियत

मुगल गार्डन (Mughal Garden)देश की राजधानी नई दिल्ली में राजपथ के पश्चिमी छोर पर बने राष्ट्रपति भवन के पीछे के हिस्से में स्थित हैं. 15 एकड़ में फैले इस बाग में ट्यूलिप, गुलाब, समेत विभिन्न फूलों की प्रजातियां हैं.

मुगल गार्डन का इतिहास मुगल गार्डन का इतिहास
हाइलाइट्स
  • बसंत ऋतु यानी फरवरी में खुलता है मुगल गार्डन 

  • 15 एकड़ में फैला है मुगल गार्डन

राष्ट्रपति भवन का केंद्र माने जाने वाला मुगल गार्डन (Mughal Garden)को 12 फरवरी यानी शनिवार  से आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा. मुगल गार्डन में हर साल 3-6 लाख लोग आते हैं. 138 तरह के गुलाबों के साथ, 10,000 से अधिक ट्यूलिप बल्ब और 70 विभिन्न प्रजातियों के लगभग 5,000 मौसमी फूलों के साथ मुगल गार्डन दिल्ली के हर रंग को समेटे हुए है. 

मुगल गार्डन देश की राजधानी नई दिल्ली में राजपथ के पश्चिमी छोर पर बने राष्ट्रपति भवन के पीछे के हिस्से में स्थित हैं. 15 एकड़ में फैले इस बाग में में ट्यूलिप, गुलाब, समेत विभिन्न फूलों की प्रजातियां हैं. इसका निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था. भारत की आजादी से पहले राष्ट्रपति भवन का नाम वायसराय हाउस हुआ करता था, जब कोलकाता राजधानी हुआ करती थी.  

बसंत ऋतु यानी फरवरी में खुलता है मुगल गार्डन 

यह गार्डन हर साल बसंत ऋतु यानी फरवरी के महीने में पर्यटकों के लिए खुलता है. यहां पर आप दुनियाभर के खूबसूरत रंग-बिरंगे फूलों को देख सकते हैं. अगर राष्ट्रपति भवन एक आर्किटेक्चर चमत्कार है, तो 15 एकड़ का मुगल गार्डन इसकी आत्मा है. मुगल गार्डन का एक हिस्सा, गुलाब की किस्मों के लिए जाना जाता है. यह 12 फीट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है. 

किसने करवाया था मुगल गार्डन का निर्माण ?

साल 1911 में जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कोलकाता से दिल्ली बनाई. रायसीना की पहाड़ी को काटकर वायसराय हाउस (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) का निर्माण कराया गया. इसे ब्रिटिश वास्तुकार सर एडिवन लूटियंस ने डिजाइन किया था, जिन्हें इंग्लैंड से भारत बुलाया गया था. वायसराय हाउस(जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहा जाता है)में फूलों का खास बाग बनाया गया था. 

मुगलों के नाम पर क्यों पड़ा?

दिल्ली वह जगह है जहां मुगल सम्राट फिरोज शाह तुगलक ने मुगल परंपराओं के स्पर्श के साथ 1,200 गार्डन बनवाए थे. दिल्ली के मुगल गार्डन दशकों से मुगल शासन के युग और संस्कृति को दर्शाते हैं. बाद में अंग्रेजों ने परंपराओं को अंग्रेजी सौंदर्यशास्त्र के साथ मिला दिया. शालीमार बाग, साहिबाबाद या बेगम बाग जैसे गार्डन भी वनस्पतियों के साथ शक्ति और प्रभुत्व का प्रतीक हैं. यही कारण है कि इसका नाम मुगलों के नाम पर पड़ा. मुगल गार्डन का डिजाइन ताजमहल के बगीचों, जम्मू और कश्मीर के बगीचों से प्रेरित है. 

मुगल गार्डन का आधुनिक इतिहास

भारत के राष्ट्रपतियों ने बगीचे को आत्मनिर्भरता और नवीनता के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किया. 1998 में, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने के आर नारायणन के अनुरोध पर एस्टेट में ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने के लिए यहां एक सिस्टम स्थापित किया.

2002 में अब्दुल कलाम ने आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी पौधों को प्रदर्शित करने वाले जड़ी-बूटियों के बगीचों के साथ यहां ऑफिशियल गार्डन बनाया. 

2008 में प्रतिभा सिंह पाटिल ने रोशनी नामक एक परियोजना शुरू की, जिसने एस्टेट को शहरी पारिस्थितिक स्थिरता (Ecological Sustainability)के लिए एक मॉडल बना दिया.

2015 में, प्रणब मुखर्जी ने बागवानी के लिए पुनर्नवीनीकरण पानी की आपूर्ति के लिए एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया 

राजेन्द्र प्रसाद ने आम लोगों खुलवाया था गार्डन 

सर एडविन लूटियंस ने साल 1917 की शुरुआत में मुगल गार्डन के डिजाइन को अंतिम रूप दिया था और यह साल 1928 में यह मुगल गार्डन बनकर तैयार हुआ था. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने आम लोगों के लिए इस गार्डन को खुलवाया था तब से आज तक हर साल बसंत ऋतु में इस गार्डन को आम लोगों के लिए खोला जाता है.

मुगल गार्डन अपने किस्म का अकेला ऐसा बाग है, जहां विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखने को मिलती है. इस बाग में मुगल नालियां, चबूतरों, पुष्पदार झाड़ियों को यूरोपीय क्यारियों, लॉन के साथ सुन्दर ढंग से मिश्रित किया गया है. मुगल गार्डन को चार भागों में बांटा गया है. चतुर्भुजकार बाग, लंबा बाग, पर्दा बाग और वृत्ताकार बाग.

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