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1989 की वो घटना जब आतंकवादियों ने दिनदहाड़े गृह मंत्री की बेटी को कर लिया था अगवा, सरकार को टेकने पड़े थे घुटने

55 साल की रूबैया सईद को 33 साल बाद उनके ही अपहरण मामले के लिए कोर्ट ने समन किया है. दरअसल उनके अपहरण के आरोपी यासीन मलिक को हाल ही में टेरर फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.

आतंकवादियों ने दिनदहाड़े गृह मंत्री की बेटी को कर लिया था अगवा आतंकवादियों ने दिनदहाड़े गृह मंत्री की बेटी को कर लिया था अगवा
हाइलाइट्स
  • 33 साल बाद अपने अपहरण के मामले में समन हुई रूबैया

  • हफ्ते भर के अंदर हिल गई थी सरकार

बात है साल 1989 की जब टीवी पर रामायण का दौर था. कंधार कांड शायह बहुत लोगों को याद हो, लेकिन इससे करीब 10 साल पहले एक ऐसी घटना हुई, जिसने देश की सरकार को हिला कर रख दिया. वो दौर था, जब पहली बार कोई मुस्लिम नेता देश का गृह मंत्री बना था. कई दलों के समर्थन से बनी वीपी सिंह की सरकार भी सत्ता में थी. कश्मीर भी आतंकवाद की आग में जल रहा था, की तभी अचानक एक दिन आतंकवादी देश के उस समय के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती की बहन रूबैया सईद को अगवा कर लेते हैं. फिर भारत सरकार को आतंकियों की मांग के आगे झुकना पड़ा था. ये शायद पहली ऐसी घटना होगी, जब कुछ छोटे-मोटे आतंकियों ने सरकार से अपनी बात मनवा ली थी. इस घटना ने घाटी में कुछ अलग ही मोड़ ले लिया. पांच आतंकियों की रिहाई के बाद आतंकियों के हौसले बढ़े और घाटी में आतंकवाद तेजी से फैल गया. 

33 साल बाद अपने अपहरण के मामले में समन हुई रूबैया
इस घटना को करीब 33 साल बीत चुके हैं, अब आप सोच रहे होंगे कि आज अचानक इस बात का जिक्र क्यों हो रहा है. आपको बता दें कि इस घटना के बाद से रूबैया घाटी और लाइमलाइट से दूर हैदराबाद में रही थी, वो पेशे से डॉक्टर हैं. इन सब से दूर होने के बावजूद एक बार फिर उनकी चर्चा यासीन मलिक के कारण हो रही है. रूबैया मामले में भी प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जेकेएलएफ का प्रमुख यासीन मलिक शामिल था. अब CBI की एक विशेष अदालत ने रूबैया को समन जारी कर 15 जुलाई को अदालत में पेश होने के लिए कहा है. दरअसल ये आदेश 1989 में उनके अपहरण से जुड़े मामले में आया है. ऐसा पहली बार होगा जब इस मामले में रूबैया को अदालत में पेश होने के आदेश दिए जा रहे थे. बता दें कि इस समन के कुछ घंटों पहले ही यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.

वैसे तो रूबैया के अपहरण का मामला दब गया था, लेकिन 2019 के टेरर फंडिंग मामले के आरोप में यासीन मलिक के पकड़े जाने के बाद यह फिर से सुर्खियों में आ गया. सीबीआई ने पिछले साल  जनवरी में विशेष लोक अभियोजकों मोनिका कोहली और एस. के. भट की मदद से रूबैया अपहरण मामले में मलिक सहित 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे. अब सीबीआई ने रूबैया सईद को अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में सूचीबद्ध किया है.

हफ्ते भर के अंदर हिल गई थी सरकार
बात है 1989 की जब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वी.पी सिंह की सरकार बने केवल एक हफ्ता ही हुआ था. सरकार पर रूपरेखा पर अभी काम शुरू ही हो रहा था कि घाटी में गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटियां रूबैया सईद के अपहरण की खबर आई. उस वक्त बेसिक फोन का जमाना था. लेकिन एक फोन से श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया. उस समय मेडिकल की छात्रा रुबैया सईद का श्रीनगर में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने 8 दिसंबर 1989 को अपहरण कर लिया था. सईद, भारत के पहले और एकमात्र मुस्लिम गृह मंत्री थे, जिन्होंने वीपी सिंह सरकार में दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक कार्यभार संभाला. पहले आतंकी 13 साथियों को रिहा करने की मांग कर रहे थे, लेकिन कुछ समय बाद वे पांच आतंकवादियों को छोड़ने की मांग करने लगे.

जब आखिरकार सरकार को झुकना पड़ गया.
इस सब के बाद सरकार के पास दो रास्ते थे, पहला रास्ता ये कि सरकार चुपचाप आतंकियों की बात मान ले, और दूसरा रास्ता था मिलिट्री एक्शन का, जिसमें रूबैया की जान खतरे में पड़ सकती थी. उसके बाद पीएम वीपी सिंह ने अपने खास मंत्रियों अरुण नेहरू, आरिफ मोहम्मद खान और इंद्र कुमार गुजराल की कमेटी बनाई. वहीं श्रीनगर में भी एक स्पेशल सेल बनी. इन मुश्किल हालातों से निकलने के लिए कई तरह के विकल्पों पर काम हुआ. लेकिन सरकार को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. अब सरकार पर कश्मकश में थी, क्योंकि रूबैया की जान को खतरा कानून-व्यवस्था पर धब्बा होता और अगर आतंकियों की बात मानी जाती तो ये साबित होगा की सरकार ने आतंकियों के सामने घुटने टेक दिए. आखिरकार सरकार को आतंकियों का कहना मानना पड़ा, और सरकार ने पांच खूंखार आतंकियों को छोड़ दिया. कुछ समय बाद रूबैया घर लौट आईं. वो करीब 122 घंटे आतंकियों की कैद में रहीं. ये वो घटना है कि जिसने कश्मीर के हालात के हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. वहीं अलगाववादी और आतंकवादियों का कद बढ़ गया, वो लोग ये जोर-शोर से प्रचारित करने लगे कि उन्होंने सरकार को झुका दिया. आतंकियों की रिहाई के बाद घाटी की सड़कों पर आतंकियों के लिए जबरदस्त समर्थन दिखाई दे रहा था. उस दिन घाटी में पहली बार खुलेआम आजादी के नारे सुनाई दिए.

इस घटना के बाद कई लोगों ने सरकार के इस कदम को कमजोरी बताया, लेकिन घाटी में आज भी हालात पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं.